नई दिल्ली। भारत इस समय न्यायाधीशों की कमी से जूझ रहा है। आलम ऐसा है कि भारत की निचली अदालतोें में लगभग 2,91,63,220 मामले लंबित हैं। इस मामले में उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां प्रति न्यायाधीश लगभग 3,500 मामले लंबित हैं।
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सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश भर की जनसंख्या की तुलना में न्यायधीशों की कम संख्या वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार में लंबित मामलों की संख्या सबसे अधिक है। वहीं लगभग 2,91,63,220 लंबित मामलों में सिविल मामलों की संख्या 84,57,325 तथा क्रिमिनल मामलों की संख्या 2,07,05,895 है।
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देश की राजधानी दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक ऐसे राज्य हैं जहां न्यायाधीशों की संख्या अधिक होने के बावजूद लंबित मामलों की संख्या ज्यादा है। हालांकि मेघालय, छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ऐसे राज्य हैं, जहां न्यायाधीशों की संख्या कम होने के बावजूद लंबित मामलों की संख्या कम है।
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विधि आयोग की एक रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि प्रति 10 लाख जनसंख्या पर न्यायाधीशों की संख्या तकरीबन 50 होनी चाहिए। इस स्थिति तक पहुंचने के लिए पदों की संख्या बढ़ाकर तीन गुना करनी होगी। हालांकि अभी तक खाली पदें नहीं भरी जा सकी है।
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