24 अकबर रोड: विजय, पराजय और परिवर्तन के इतिहास को समेटे हुए एक पता

24 अकबर रोड: विजय, पराजय और परिवर्तन के इतिहास को समेटे हुए एक पता

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  • Publish Date - January 14, 2025 / 02:46 PM IST,
    Updated On - January 14, 2025 / 02:46 PM IST

(अनवारुल हक)

नयी दिल्ली, 14 जनवरी (भाषा) दिल्ली के लुटियंस जोन में स्थित ‘24 अकबर रोड’ की पहचान बीते करीब पांच दशकों से भले ही कांग्रेस के मुख्यालय की है, लेकिन यह पता कई ऐसे फैसलों, नीतियों और घटनाओं का गवाह है जो देश की सबसे पुरानी पार्टी के साथ भारत के लिए भी परिवर्तनकारी एवं ऐतिहासिक साबित हुए।

इस पते ने इंदिरा गांधी से लेकर मल्लिकार्जुन खरगे तक सात कांग्रेस अध्यक्ष देखे। यह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की दुखद हत्या, सीताराम केसरी की अध्यक्ष पद से विदाई, 1980 में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी, 1984 की प्रचंड जनादेश वाली जीत, 1991, 2004 और 2009 की गठबंधन वाली सरकार, 2014 और 2019 की करारी हार तथा 2024 की हार में भी भविष्य की उम्मीद समेत कई उतार-चढ़ाव वाले ऐतिहासिक पलों का साक्षी है।

अब कांग्रेस बुधवार को इस जगह से कुछ किलोमीटर दूर ‘9ए कोटला’ मार्ग पर अपना मुख्यालय स्थानांतरित कर रही है। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी नए मुख्यालय का उद्घाटन करेंगी। हालांकि पार्टी ने स्पष्ट किया है कि वह ‘24 अकबर रोड’ को खाली नहीं करेगी।

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई ने अपनी पुस्तक ‘24 अकबर रोड’ में कांग्रेस मुख्यालय से जुड़े इतिहास का विस्तृत उल्लेख किया है।

देश की आजादी के बाद से कांग्रेस का मुख्यालय ‘7 जंतर-मंतर रोड’ हुआ करता था लेकिन आपातकाल के बाद की चुनावी हार और फिर कांग्रेस के विभाजन के बाद बदली परिस्थितियों के बीच 1978 में यह पता बदल गया। उस समय मुश्किल दौर का सामना कर रहीं इंदिरा गांधी को उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस (आई) के राज्‍यसभा सदस्य जी. वेंकटस्‍वामी ने अपने आधिकारिक निवास ‘24, अकबर रोड’ को पार्टी के कामकाज के लिए दे दिया।

इसके बाद से लुटियंस जोन में सफेद रंग का यह बंगला कांग्रेस मुख्‍यालय बन गया।

महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘24 अकबर रोड’ पर कांग्रेस ने 1980 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सत्ता में वापसी की। वर्ष 1984 में उनकी हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 400 से अधिक सीटें जीतीं। इसके बाद के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सत्ता से विदाई हो गई।

वर्ष 1991 के चुनाव से पहले राजीव गांधी की हत्या हो गई, हालांकि पार्टी ने गठबंधन की बदौलत सत्ता में वापसी की और फिर ‘24 अकबर रोड’ पर पी वी नरसिम्हा राव के वर्चस्व का दौर शुरू हुआ। इसके कुछ साल बाद सीताराम केसरी अध्यक्ष बने, हालांकि ‘मंडल’ और ‘कमंडल’ के प्रभुत्व वाली राजनीति के उस दौर में कांग्रेस का ग्राफ नीचे की ओर जाने लगा। फिर कांग्रेस के भीतर सोनिया गांधी को पार्टी की कमान सौंपने की मांग तेज होने लगी।

इसके बाद, वर्ष 1998 में सोनिया गांधी की सक्रिय राजनीतिक पारी की शुरू हुई और केसरी की ‘24 अकबर रोड’ से विदाई हुई। कांग्रेस के विरोधी यह आरोप भी लगाते हैं कि केसरी के साथ पार्टी मुख्यालय में अपमानजनक व्यवहार किया गया।

सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार संभालने के बाद ‘24 अकबर रोड’ की धमक फिर से बढ़ने लगी और कांग्रेस का ग्राफ भी तेजी से उठने लगा।

वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बावजूद पार्टी ने 2004 के चुनाव में शानदार वापसी की और उसके नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सरकार बनी। 2009 के चुनाव में कांग्रेस का ग्राफ और बढ़ा तथा उसने खुद की 200 से अधिक सीटों और गठबंधन के सहयोगियों की बदौलत सत्ता बरकरार रखी।

वर्ष 2014 में कांग्रेस के लिए मुश्किल दौर शुरू हुआ और उस चुनाव में पार्टी अपने इतिहास में 44 सीटों के सबसे न्यूनतम आंकड़े पर सिमट गई। इसके अगले चुनाव में भी कांग्रेस की करारी हार हुई और उसे मात्र 52 सीटें मिलीं।

इस मुख्यालय पर कांग्रेस का आखिरी लोकसभा चुनाव 2024 का रहा जिसमें पार्टी की हार हुई, लेकिन उसने 99 सीटें हासिल कीं और यह उम्मीद पैदा हुई कि भारतीय राजनीति में वह अपना पुराना गौरव फिर से हासिल कर सकती है।

कांग्रेस का मुख्यालय ‘24 अकबर रोड’ पर रहते हुए इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव, सीताराम केसरी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने पार्टी की कमान संभाली।

कांग्रेस मुख्यालय बनने से पहले इस इमारत में 1961 से दो साल तक म्यांमार की लोकतंत्र समर्थक नेता और नोबेल शांति पुरस्कार पाने वालीं आंग सान सू की यहां रही थीं। सू की उस समय करीब 15 साल की थीं और अपनी राजनयिक मां के साथ यहां आई थीं। उस समय ‘24 अकबर रोड’ को ‘बर्मा हाउस’ के नाम से जाना जाता था।

वैसे, इस भवन का निर्माण अंग्रेजी हुकूमत में एडविन लुटियंस ने 1911 और 1925 के बीच करवाया था।

भाषा हक हक नरेश

नरेश