बिहार, ओडिशा और केरल के 11 जिलों पर बाढ़ और सूखे का खतरा : आईआईटी जलवायु रिपोर्ट |

बिहार, ओडिशा और केरल के 11 जिलों पर बाढ़ और सूखे का खतरा : आईआईटी जलवायु रिपोर्ट

बिहार, ओडिशा और केरल के 11 जिलों पर बाढ़ और सूखे का खतरा : आईआईटी जलवायु रिपोर्ट

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Modified Date: December 14, 2024 / 07:18 PM IST
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Published Date: December 14, 2024 7:18 pm IST

नयी दिल्ली, 14 दिसंबर (भाषा) पटना (बिहार), अलपुझा (केरल) और केंद्रपाड़ा (ओड़िशा) सहित तीनों राज्यों के कम से कम 11 जिले ऐसे हैं जहां पर बाढ़ और सूखा दोनों का ‘प्रबल खतरा’ है और इससे निपटने के लिए तत्काल उपाय किये जाने की जरूरत है।

यह खुलासा दो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) द्वारा संकलित जलवायु जोखिम मूल्यांकन रिपोर्ट में किया गया है।

यह रिपोर्ट भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी और मंडी द्वारा बेंगलुरु स्थित विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नीति अध्ययन केंद्र (सीएसटीईपी)के सहयोग से तैयार की गई है।

‘‘भारत के लिए जिला स्तरीय जलवायु जोखिम आकलन: आईपीसीसी मसौदे का उपयोग करते हुए बाढ़ और सूखे के जोखिम का मानचित्रण’’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 51 जिले ‘‘बहुत उच्च’’ बाढ़ के जोखिम का सामना कर रहे हैं, तथा 118 को ‘‘उच्च’’ जोखिम की श्रेणी में रखा गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक संवेदनशील क्षेत्रों में असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, ओडिशा और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक 91 जिलों को ‘‘बहुत अधिक’’ सूखे के जोखिम वाले क्षेत्रों में चिन्हित किया गया है जबकि 188 जिलों की पहचान ‘‘उच्च’’ सूखे के जोखिम वाले जिलों के तौर पर की गई है और इनमें मुख्य रूप से बिहार, असम, झारखंड, ओडिशा और महाराष्ट्र के जिले शामिल हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक चिंताजनक बात यह है कि पटना (बिहार), अलपुझा (केरल) और केंद्रपाड़ा (ओडिशा) सहित 11 जिलों में बाढ़ और सूखा दोनों का ‘‘बहुत अधिक’’ खतरा है और तत्काल स्थिति से निपटने के लिए उपाय करने की जरूरत है।

आईआईटी-गुवाहाटी के निदेशक देवेंद्र जलिहाल ने कहा, ‘‘भारत का कृषि समाज मानसून पर बहुत अधिक निर्भर है, जिससे जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियां, जैसे सूखा और अत्यधिक वर्षा और भी गंभीर हो जाती हैं। डीएसटी और एसडीसी के बीच सहयोग से तैयार की गई यह रिपोर्ट 600 से अधिक जिलों के लिए एक व्यापक जोखिम आकलन प्रदान करती है, जो प्रभावी शमन रणनीतियों के लिए अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।’’

अध्ययन में जलवायु संबंधी खतरों, जोखिम और संवेदनशीलता को एकीकृत किया गया है, ताकि आपदा जोखिम न्यूनीकरण में सहायता के लिए जिला स्तर पर जोखिमों का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जा सके। लोगों और आजीविका पर पड़ने वाले प्रत्यक्ष प्रभाव को उजागर किया जा सके, जिससे डेटा-आधारित अनुकूलन योजना का मार्ग प्रशस्त हो सके।

भाषा धीरज पवनेश

पवनेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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