केदारनाथ आपदा के 10 साल हुए पूरे, तबाही का मंजर यादकर आज भी कांप उठती है लोगों की रूह, जानिए 2013 के बाद कितना बदला धाम

10th anniversary of Kedarnath disaster : केदारनाथ त्रासदी को दस हो गये हैं, लोगों के जेहन में उस त्रासदी की भयावहता कायम है।

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  • Publish Date - June 16, 2023 / 03:24 PM IST,
    Updated On - June 16, 2023 / 03:24 PM IST

10th anniversary of Kedarnath disaster : देहरादून। आज केदारनाथ त्रिसदी को पूरे 10 साल हो चुके है। यह भयानक घटना आज भी भारतीयों के दिलों में डर की तरह बनी हुई है। उस भयंकर तबाही का नजारा शायद ही कोई भूल पाया हो। केदारनाथ प्रलय में चारों ओर सिर्फ लाशों का ढेर ही नजर आ रहा था। बता दें कि लगभग 5 हजार से ज्यादा शवों को बरामद किया गया था। उस वक्त भी चार धाम की यात्रा जारी थी और प्रतिदिन 20 से 25 हजार लोग दर्शन के लिए केदारनाथ पहुंच रहे थे। उस त्रासदी में कई होटल और मकान भी चपेट में आये, लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ था। आज जबकि केदारनाथ त्रासदी को दस हो गये हैं, लोगों के जेहन में उस त्रासदी की भयावहता कायम है।

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कैसा है 10 साल बाद केदारनाथ का नजारा

 

10th anniversary of Kedarnath disaster : 2013 में आए प्रलय के बाद आज केदारनाथ पूरी तरह बदल चुका है। लेकिन आंतरिक तस्वीरें आज भी वहां के लोगों की नजर के सामने आती रहती है। 16-17 जून 2013 को आई आपदा में हजारों मौतें हुईं थीं। इन 10 सालों में केदारपुरी का स्वरूप भव्‍य हो गया है और पूरी तरह बदल चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खास लगाव व विजन के बाद केदारपुरी भव्‍य हो गई है। इसी का नतीजा है कि इस साल केदारनाथ धाम के दर्शन के लिए रोजाना करीब 20 हजार भक्‍त पहुंच रहे हैं।

 

बता दें कि भोलेनाथ की नगरी केदारनाथ धाम को श्रद्धा और आस्था की नगरी भी कहा जाता है। हर साल लाखों की तादात में श्रद्धालु यहां बाबा का आशीर्वाद लेने आते हैं। आज 16 जून 2023 से ठीक दस साल पहले भोलेनाथ की यही धार्मिक नगरी प्रलय का ऐसा मंजर लेकर आई, जिसे देखकर और सुनकर हर कोई स्तब्ध रह गया। सबके मन में यही प्रश्न था कि केदार धाम इससे उबर पाएगा अथवा नहीं। हालांकि, आपदा के तुरंत बाद केदारनाथ के पुनर्निर्माण कसरत शुरू हो गई थी, लेकिन इनमें गति आई वर्ष 2014 से।

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जानें केदारनाथ आपदा की पूरी कहानी

केदारनाथ धाम में 2013 में जो आपदा आयी उसे विशेषज्ञ प्राकृतिक नहीं मान रहे थे। उनका यह कहना था कि यह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा है। मानव ने अपनी सुविधा के लिए नदियों-पहाड़ों का दोहन किया है जिसकी वजह से यह आपदा आयी। साल 2013 में जितनी बारिश हुई वह केदारनाथ के लिए असामान्य नहीं थी उतनी वर्षा वहां होती रहती है। उत्तराखंड के डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर ने बताया था कि सड़क निर्माण के लिए प्रयोग हो रहे विस्फोटकों के कारण पहाड़ ज्यादा गिरे हैं। मंदाकिनी पर बन रही दो परियोजनाओं में 15 से 20 किमी की सुरंगें निर्माणाधीन थीं। ये परियोजनाएं केदारनाथ के नजदीक हैं। इन सुरंगों को बनाने के लिए भारी मात्र में विस्फोटों का प्रयोग किया गया था, जिससे पहाड़ हिल गये और टूटने लगे। मंदाकिनी नदी में पहाड़ों के बड़े-बड़े टुकड़े गिरे और आमतौर पर शांत वेग से बहने वाली मंदाकिनी मानो क्रोधित हो बिफर गयी और हजारों लोगों के लिए काल बन गयी।

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केदारनाथ की भीमसिला ने की रक्षा

प्रलय के बाद भी मंदिर का उसी भव्यता के साथ खड़ा रहना किसी अचरज से कम नहीं था। आज भी लोग इसे किसी चमत्कार से कम नहीं मानते। हालांकि मंदिर को उस प्रलय से बचाने में भीम शीला ने अहम योगदान रहा, जिसकी लोग अब पूजा करने लगे।

बाढ़ और भूस्‍खलन के बाद बड़ी बड़ी चट्टाने मंदिर के पास आने लगी और वहीं रूक गई, जो अभी तक जस की तस है, लेकिन उसी में से एक चट्टान भी आई, जो मंदिर का कवच बन गई। इस चट्टान की वजह से ही मंदिर की एक ईंट को भी नुकसान नहीं पहुंचा। जिसके बाद इस चट्टान को भीम शिला का नाम दिया गया। यह चट्टान मंदिर के परिक्रमा मार्ग के बिल्कुल पीछे है।

 

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