वक्फ संबंधी समिति से 10 विपक्षी सांसद निलंबित, विपक्ष की बिरला से दखल की गुहार

वक्फ संबंधी समिति से 10 विपक्षी सांसद निलंबित, विपक्ष की बिरला से दखल की गुहार

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  • Publish Date - January 24, 2025 / 08:15 PM IST,
    Updated On - January 24, 2025 / 08:15 PM IST

नयी दिल्ली, 24 जनवरी (भाषा) वक्फ संशोधन विधेयक पर विचार कर रही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की बैठक में शुक्रवार को जमकर हंगामा हुआ और 10 विपक्षी सदस्यों को उनके आचरण के चलते समिति से एक दिन के लिए निलंबित कर दिया गया।

विपक्षी सदस्यों ने पाल पर कार्यवाही को एक तमाशा बनाने, मनमानी करने तथा नियमों के उल्लंघन करने का आरोप लगाया तथा दावा किया कि वह सरकार के शीर्ष स्तर के निर्देश पर काम कर रहे हैं।

विपक्ष के इन सांसदों के खिलाफ यह कार्यवाही ऐसे समय की गई जब समिति अब मसौदा रिपोर्ट को स्वीकार करने की दिशा में आगे बढ़ी है।

सूत्रों का कहना है कि समिति 29 जनवरी, 2025 को मसौदा रिपोर्ट स्वीकार कर सकती है।

निलंबन के बाद विपक्ष के सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखकर आग्रह किया कि वह पाल को समिति की कार्यवाही पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से संचालित करने के लिए निर्देशित करें तथा 27 जनवरी को प्रस्तावित समिति की अगली बैठक स्थगित की जाए।

समिति की शुक्रवार को हुई बैठक में हंगामा हुआ और विपक्षी सदस्यों ने पाल पर नियमों का उल्लंघन और मनमानी करने का आरोप लगाया। वहीं, पाल ने कहा कि विपक्षी सांसदों बैठक को बाधित करने के उद्देश्य से हंगामा किया। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस नेता कल्याण बनर्जी पर अपशब्दों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। पाल ने कहा कि उन्होंने बैठक को व्यवस्थित करने का प्रयास किया, इसे दो बार स्थगित किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

भाजपा सदस्य निशिकांत दुबे ने विपक्षी सदस्यों को निलंबित करने का प्रस्ताव रखा, जिसे समिति ने स्वीकार कर लिया।

निलंबित सदस्यों में कल्याण बनर्जी और नदीम-उल हक (तृणमूल कांग्रेस), मोहम्मद जावेद, इमरान मसूद और सैयद नासिर हुसैन (कांग्रेस), ए राजा और मोहम्मद अब्दुल्ला (द्रमुक), असदुद्दीन ओवैसी (एआईएमआईएम), मोहिबुल्लाह (सपा) और अरविंद सावंत (शिवसेना-यूबीटी) शामिल हैं।

विपक्षी सदस्यों का निलंबन उस दिन हुआ जब मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर का एक प्रतिनिधिमंडल वक्फ संशोधन विधेयक पर संयुक्त समिति के समक्ष मसौदा कानून के बारे में अपनी चिंताओं को साझा करने के लिए उपस्थित हुआ।

इन सांसदों के निलंबन के बाद विपक्षी सदस्यों ने बिरला को पत्र लिखा और एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया।

लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने कहा, ‘‘ऐसा कभी नहीं देखा गया कि जेपीसी से 10 विपक्षी सदस्यों को एकसाथ निलंबित कर दिया गया हो। संसद से विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया और अब वही प्रक्रिया समिति में देखने को मिली।’’

उन्होंने दावा किया कि बिना पहले नोटिस दिए समिति की बैठकों की तिथि घोषित की जाती है।

गोगोई ने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि पहले से निर्धारित रूपरेखा पर अमल किया जा रहा है और संसदीय प्रक्रियाओं व नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है।’’

तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने दावा किया कि विपक्षी सदस्यों का संसदीय समिति में अपमान किया गया और दिल्ली के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर रिपोर्ट को स्वीकार करने की जल्दीबाजी की गई।

उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय की निगरानी में इसकी जांच होनी चाहिए कि पाल (केंद्र) सरकार में शीर्ष स्तर पर किससे आदेश लेकर काम कर रहे हैं।

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ‘‘यह बहुत ही नाजुक मसला है। यदि सरकार द्वारा ‘बुलडोज’ करके संसद में इस विधेयक को पारित कराया गया तो इसका बहुत बुरा असर होगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है वो गलत है। वक्फ संपत्तियां बर्बाद हो जाएंगी।’’

ओवैसी ने कहा, ‘‘यह जो प्रक्रिया अपनाई गई है, उसका हम विरोध करते हैं। लोकसभा अध्यक्ष से आग्रह करते हैं कि वह इस मामले में दखल दें।’’

बिरला को लिखे पत्र में विपक्षी सदस्यों ने समिति के पिछले कुछ दिनों की कार्यवाही और संवाद का विस्तृत उल्लेख किया और दावा किया कि समिति की बैठक 24 जनवरी को बुला ली गई, जबकि विपक्षी सदस्यों ने कुछ दिनों बाद बैठक बुलाने का आग्रह किया था।

उन्होंने कहा, ‘‘विधेयक में प्रस्तावित संशोधन न केवल देश भर में वक्फ बोर्डों की विशाल भू संपदा से जुड़े हैं, बल्कि उच्च न्यायालयों/उच्चतम न्यायालय के न्यायिक आदेशों के संदर्भ में भी प्रासंगिक हैं। इस संबंध में विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए नियम और कानून भी चुनौती हैं, जिससे हितों का टकराव पैदा हो गया है।’’

उन्होंने कहा कि हितधारकों द्वारा समग्र रूप से उठाए गए इन मुद्दों को हल करने के लिए जेपीसी द्वारा एक व्यापक अध्ययन की अनिवार्य रूप से आवश्यकता है।

उनका कहना है, ‘‘इन परिस्थितियों में समिति के अध्यक्ष द्वारा बिना सोचे समझे जेपीसी की कार्यवाही में जल्दबाजी करना, छिपी हुई दुर्भावना से भरी एक पहेली के अलावा और कुछ नहीं है। हमारी राय है कि जेपीसी के अध्यक्ष के पास समिति के सदस्यों को निलंबित करने की शक्ति नहीं है।’’

उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष से आग्रह किया, ‘‘जेपीसी के अध्यक्ष को कार्यवाही को पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से संचालित करने का निर्देश दिया जाए। समिति के अध्यक्ष को 27 जनवरी को प्रस्तावित बैठक स्थगित कर देनी चाहिए ताकि विपक्षी सदस्यों को नियमों और प्रक्रिया से विचलित हुए बिना दलीलों/दावों को रखने के लिए पर्याप्त समय और अवसर मिल सके।’’

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 को अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने गत आठ अगस्त को लोकसभा में पेश किया था और इसके बाद इसे संयुक्त समिति को भेज दिया गया था।

वक्फ अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों पर ‘‘गंभीर और गहरी चिंता’’ व्यक्त करते हुए जम्मू-कश्मीर मुत्तहिदा मजलिस-ए-उलेममा (एमएमयू) के संरक्षक मीरवाइज उमर फारूक ने कहा है कि प्रस्तावित संशोधन वक्फ की स्वायत्तता और कामकाज के लिए खतरा पैदा करने वाले हैं।

संसदीय समिति को दिए गए एक लिखित प्रतिवेदन में एमएमयू ने कहा कि कलेक्टर को केवल आदेश पारित करके वक्फ संपत्तियों को सरकारी संपत्ति में बदलने की पूर्ण शक्ति दी गई है।

यह पहली बार है जब लगभग निष्क्रिय हो चुके अलगाववादी समूह हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के प्रमुख मीरवाइज ने पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद कश्मीर घाटी से बाहर कदम रखा है।

भाषा हक हक पवनेश

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