नई दिल्ली। असम में एनआरसी की जारी अंतिम लिस्ट में बड़ी तादात में गोरखा समुदाय के लोग भी अपना नाम दर्ज करवाने से चूक गए। गोरखा समुदाय के नेता के मुताबिक समाज के करीब 1 लाख लोगों को एनआरसी से बाहर रखा गया है। असम स्टेट कमेटी ऑफ द भारतीय गोरखा परिषद के अध्यक्ष नित्यानंद उपाध्याय के मुताबिक, ‘असम में करीब 25 लाख गोरखा समुदाय के लोग रहते हैं। एनआरसी में करीब एक लाख गोरखा लोग बाहर है जो समुदाय की कुल आबादी का चार फीसदी है।’
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बता दें शनिवार को जारी सूची में करीब 19.07 लाख लोगों को बाहर रखा गया है। सूची में बड़ी तादाद में गोरखा समुदाय के लोग भी अपना नाम दर्ज नहीं करवा सके। गोरखा समुदाय के राजनीतिक संगठन ने शनिवार को कहा कि असम में रह रहे उनके समुदाय के करीब एक लाख लोगों को एनआरसी से बाहर रखा गया है।
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हालांकि उपाध्याय ने यह नहीं बताया कि संगठन ने एक लाख गोरखाओं के लिस्ट में नहीं होने के आंकड़ें को कहां से जुटाया। उन्होंने कहा कि यह उन अनुमान के आधार पर एक अनुमान है जो जमीनी स्तर पर लोगों से मिल रहे हैं। वहीं युवा मामले के राष्ट्रीय सचिव नंदा किरती दीवान ने कहा कि एसोसिएशन जल्द ही ऐसे मामलों को फॉरेन ट्रिब्यूनल के समक्ष उठाएगी।
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हालांकि गृह मंत्रालय ने साफ किया है कि राज्य में करीब 400 फॉरेन ट्रिब्यूनल की व्यवस्था की जाएगी, जिन लोगों के नाम लिस्ट में नहीं वो ट्रिब्यूनल में आवेदन कर सकते हैं।
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गोरखा समुदाय के अलावा राज्य में ऐसे सैकड़ों लोग हैं जो लिस्ट में अपना नाम दर्ज नहीं करवा सके। अखिल भारतीय यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के पूर्व विधायक अताउर रहमान मजहरबुइया, उनके बेटा और बेटी भी एनआरसी में अपना दर्ज नहीं करवा सके। एनआरसी को लेकर मजहरबुइया ने गहरी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि लिस्ट से उनके नाम के बहिष्कार पर इसकी सत्यता पर बादल मंडरा रहे हैं।
गुंडे बदमाशों का जुलूस
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