भोपालः नगरीय निकाय चुनाव के पहले बीजेपी सरकार ने एक बड़ा सियासी दांव खेला है। प्रमोशन में रिजर्वेशन के मामले में नाराज चल रहे सर्वणों को साधने के लिए सवर्ण आयोग के गठन का ऐलान कर दिया है। रीवा में गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम के बाद सीएम ने एक बार फिर भोपाल में ये ऐलान किया है कि सरकार एसटी, एससी, ओबीसी और अल्पसंख्यक आयोग की तर्ज पर सवर्ण आयोग बनाएगी, जो सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए काम करेगा। हालांकि कांग्रेस इसे पॉलिटिकल प्रोपेगेंडा बता रही है।
मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव से पहले बीजेपी सरकार ने सवर्णों को साधने की कवायद तेज कर दी है। सीएम शिवराज सिंह ने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए सवर्ण आयोग बनाने का फैसला किया है। दरअसल जातीय समीकरण के मुताबिक प्रदेश में 22 फीसदी आबादी सवर्णों की है, इनमें से ज्यादातर बड़े शहरों में बसते हैं। वोट बैंक के लिहाज से देखे तो इनका झुकाव जिस पार्टी की ओर होगा, उसे चुनाव में फायदा होना स्वाभाविक है। दरअसल तीन साल पहले ब्ड शिवराज की ओर से प्रमोशन में आरक्षण की पैरवी की गई थी। नतीजतन सपाक्स अस्तित्व में आया, जिसके चलते 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सत्ता से दूर हो गई थी। लिहाजा बीजेपी अब ऐसी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है।
कांग्रेस इसे सिर्फ पॉलिटिकल प्रोपोगेंडा बता रही है। पूर्व मंत्री पीसी शर्मा का कहना है कि बीजेपी सरकार वोट की जुगाड़ में फिर प्रोपोगेंडा फैला रही है। जबकि सरकार को ना सिर्फ गरीब सवर्णों बल्कि हर उस वर्ग के लिए काम करना चाहिए, जिसकी कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण आर्थिक रूप से कमर टूट गई है।
दरअसल 29 सितंबर 2020 को कैबिनेट की बैठक में पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली थी, जिस पर मैहर से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने कहा था कि सरकार सवर्ण आयोग का गठन भी करें।जाहिर है अब सवर्ण आयोग के गठन के फैसले पर सियासी रस्साकशी चुनावों के दौरान भी देखने को मिलेगी।