अब की बार भाइयों की कलाई पर सजेंगी बांस से बनीं अनूठी राखियां, छत्तीसगढ़ी महिलाओं का देखेंगे हुनर तो रह जाएंगे हैरान

अब की बार भाइयों की कलाई पर सजेंगी बांस से बनीं अनूठी राखियां, छत्तीसगढ़ी महिलाओं का देखेंगे हुनर तो रह जाएंगे हैरान

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  • Publish Date - July 14, 2020 / 08:53 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:48 PM IST

धमतरी । जिले के स्वसहायता समूहों की महिलाएं अब बांस तथा गोबर से राखी तैयार कर रही हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है कि वृहत पैमाने पर महिलाएं भाइयों के लिए नवाचारी राखियां तैयार कर रही हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिली सराहना के उपरांत उत्साहित महिलाएं बड़े पैमाने पर चार तरह की राखियां बना रही हैं, जिन्हें बाजार में 20 रूपए से 200 रूपए तक बेचा जाएगा। जिला पंचायत की सीईओ नम्रता गांधी ने बताया कि कलेक्टर जयप्रकाश मौर्य के निर्देशानुसार आद्य बंधन नाम से राखियां महिला समूहों के द्वारा तैयार किया जा रहा है, जिसमें बच्चों की राखियां, बांस की राखियां, गोबर की राखियां तथा कुमकुम-अक्षत बंधन (भाभी और भाई के लिए) राखियां बनाई जा रही हैं।

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जिला पंचायत की सीईओ ने बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के ‘बिहान’ अंतर्गत धमतरी के ग्राम छाती स्थित मल्टी युटिलिटी सेंटर में इसके लिए वृहत पैमाने पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। ग्राम छाती के अलावा नगरी विकासखण्ड के ग्राम छिपली तथा कुरूद के ग्राम नारी के कुल 20 समूहों की 165 महिलाएं प्राप्त कर सतत् राखी तैयार करने में जुट गई हैं। अब तक 1200 नग राखियों के लिए इन समूहों को ऑर्डर मिल चुका है। उन्होंने बताया कि इन राखियों की खासियत यह है कि बच्चों की राखी को क्रोशिया के एम्ब्रायडरी धागों से तैयार किया जा रहा है, जिसे ओज राखी का नाम दिया गया है।

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पर्यावरणीय सुरक्षा को दृष्टिगत करते हुए बांस के बीज से बनी राखियां बनाई जा रही हैं। इसी तरह भाभी-ननद के लिए कुमकुम अक्षत राखी और बांस की जोड़ीदार राखी बनाई जा रही है। बच्चों के लिए बनाई गई ओज राखी मुलायम इरेजर, शार्पनर, की-चेन, छोटा भीम, गणेशा, सेंटाक्लॉज जैसी सुन्दर एवं सुगढ़ कलाकृतियों को शामिल किया गया है। भाई-बहन के साथ-साथ ननद-भाभी के रिश्ते को मजबूत बनाने कुमकुम अक्षत राखी के जोड़े तैयार किए गए हैं। बांस की हस्त निर्मित राखी, बीज राखी, भाभी-ननद राखी तथा बच्चों की नवाचारी राखी से निश्चित तौर पर महिलाओं का आत्मबल बढ़ेगा, वहीं वे स्वालम्बन की ओर अग्रसर होंगी।