बीजापुर: राज्य के सुदूर वनांचल बीजापुर जिले में शासकीय कोसा बीज केन्द्र, नैमेड़ में रेशमकीट पालन और कोसाफल उत्पादन का काम करने वाले आयतू कुड़ियम कुछ साल पहले तक अपने खेत में खरीफ की फसल लेने के बाद सालभर मजदूरी की तलाश में लगे रहते थे, परंतु आज वह न सिर्फ कुशल कीटपालक के तौर पर अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं, बल्कि गांव के अन्य लोगों को भी इसमें शामिल कर रहे हैं।
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छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले का यह आदिवासी किसान अब ग्राम पंचायत नैमेड़ में स्थित शासकीय कोसा बीज केन्द्र कीटपालक समूह का प्रतिनिधित्व करते हुए कीटपालन और कोसाफल का उत्पादन व संग्रहण कार्य कर रहा है। पिछले कुछ सालों में आयतू को लगभग ढाई लाख रूपए की अतिरिक्त आमदनी हुई है।
शासकीय कोसा बीज केन्द्र नैमेड़ में वर्ष-2008-09 में मनरेगा योजना अंतर्गत 28 हेक्टेयर में बड़ी संख्या में साजा और अर्जुन के पौधे रोपे गए थे। रेशम विभाग के द्वारा यहां रेशमकीट पालन का कार्य करवाया जा रहा है। साल 2015 में आयतू ने श्रमिक के रूप में काम शुरू किया था, वह धीरे-धीरे कोसाफल उत्पादन का प्रशिक्षण लेना भी शुरू कर दिया। साथ ही उसने गांव के अन्य श्रमिकों को अपने साथ समूह के रूप में जोड़कर कीटपालन कार्य शुरू कर दिया। इनके समूह के द्वारा उत्पादित कोसाफल को विभाग के ककून बैंक के माध्यम से खरीदा जाता है। जिससे इन्हें सालभर में अच्छी-खासी कमाई हो जाती है।
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कुशल कीटपालक बनने के बाद कोसाफल उत्पादन से मिली नई आजीविका से जीवन में आये बदलाव के बारे में श्री आयतू कहते हैं कि रेशम कीटपालन के रूप में मुझे रोजी-रोटी का नया साधन मिला है। कोसाफल उत्पादन से जुड़ने के बाद अब मैं अपने परिवार का भरण-पोषण अच्छे से कर पा रहा हूं और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला पा रहा हूं।