रायपुर: धान के बाद छत्तीसगढ़ में अगर कोई मुद्दा सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहता है तो वो है नक्सलवाद, जिसकी आग में बस्तर दशकों झुलस रहा है। हर बार ये दावा किया जाता है कि बस्तर की शांति और विकास में बाधक नक्सलियों को जड़ उखाड़ फेंका जाएगा। साल बदले..सरकारें बदली, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। जनताना सरकार अब नई रणनीति के साथ राज्य सरकार को चुनौती दे रहे हैं। सिलगेर तनाव के पीछे नक्सली हाथ का दावा करने वाली सरकार के मुखिया भूपेश बघेल ने खुद स्वीकार किया है कि नक्सली नहीं चाहते कि आदिवासियों को सरकारी पट्टा मिले। सीएम के बयान के बाद विपक्ष एक बार फिर हमलावर है। लेकिन सवाल है कि जल जंगल जमीन की लड़ाई करने वाले नक्सली क्यों नहीं चाहते कि आदिवासियों को उनका हक मिले? आखिर इसके पीछे नक्सलियों की मंशा क्या हैलेकिन सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि अब सरकार बस्तर के भोले-भाले आदिवासियों को ये बात कैसे समझाएगी?
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का ये बयान ऐसे वक्त में आया है, जब नक्सल मोर्चे पर सिलगेर में पुलिस कैंप को लेकर आदिवासी और सुरक्षाबल आमने-सामने है। गुरुवार को सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म पर पत्रकारों से चर्चा के दौरान सीएम ने नक्सलियों को आदिवासियों का दुश्मन बताया, उन्होंने कहा कि बस्तर के आदिवासियों को राज्य सरकार वनाधिकार पट्टा देना चाहती है। लेकिन नक्सली ऐसा होने नहीं दे रहे। राज्य सरकार वन अधिकार पत्र के माध्यम से वनवासियों को उनके जमीन का अधिकार देने का काम कर रही है, लेकिन इस योजना में सबसे बड़ा रोड़ा नक्सली बने हुए हैं।
आदिवासी क्षेत्रों में जल जंगल और जमीन की लड़ाई पर मुख्यमंत्री भूपेश का बयान सामने आने के बाद नक्सलवाद को लेकर एक बार फिर सियासी वार-पलटवार शुरू हो गए। बीजेपी ने तंज कसते हुए कहा कि बस्तर में सरकार का नहीं नक्सलियों का राज चल रहा है। अगर नक्सलियों के कारण विकास नहीं हो रहा, तो ये छग सरकार की बहुत बड़ी हार है। दूसरी ओर कांग्रेस नेताओं का दावा है कि विकास और विश्वास के जरिये ही बस्तर से नक्सल समस्या को जड़ से खत्म किया जा सकेगा, जिसके लिए भूपेश सरकार ढृढ़ संकल्पित है।
बीते कई दिनों से सिलगेर में आदिवासियों का विरोध का सुर्खियो में है, जिसके बारे में सरकार का दावा है इसके पीछे नक्सली हैं। अब सरकार का ये खुलासा है कि आदिवासियों को वनाधिकार देने में सबसे बड़ी बाधा नक्सली ही है। नक्सलियों के आदिवासी के हक की लड़ाई पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाता है। नक्सली इलाके में विकास विरोधी है ये तो कई बार साबित हो चुका है, लेकिन वो आदिवासियों को उनका हक नहीं देने दे रहे। ये बात आदिवासियों के बीच कैसे पहुंचाई और स्थापित की जाएगी?