लोकसभा चुनाव 2019- पार्षद से सीधे सांसद बन सकते हैं शंकर लालवानी, ढाई लाख मतों से ज्यादा की बनाई बढ़त

लोकसभा चुनाव 2019- पार्षद से सीधे सांसद बन सकते हैं शंकर लालवानी, ढाई लाख मतों से ज्यादा की बनाई बढ़त

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  • Publish Date - May 23, 2019 / 06:51 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:37 PM IST

इंदौर। मालवा और निमाड़ की मिट्टी सोना उगलती है। मिनी मुंबई कहे जाने वाला इंदौर रंगबिरंगी संस्कृति और समृद्ध परंपराओं की धरोहर भी संभाले हुए है। इंदौर लोकसभा सीट की गिनती मध्य प्रदेश की राजनीति की प्रमुख सीटों में होती है। इस बार लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इस सीट से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। उनके इनकार करने की वजह टिकट देने में भाजपा की ओर से हील-हवाला किया जाना था। बड़ी माथापच्ची के बाद बीजेपी ने यहां से तीन बार पार्षद रह चुके शंकर लालवानी को टिकट दिया है। लालवानी का मुकाबला यहां कांग्रेस उम्मीदवार पंकज संघवी से था। शंकर लालवानी ने निर्णायक बढ़त बनाते हुए दिन के 12बजे तक तकरीबन 2 लाख 63 हजार वोटों की बढ़त बना ली है।
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मालवा-निमाड़ की 8 सीटों पर 7वें और आखिरी चरण में मतदान हुआ था। इसमें मध्य प्रदेश की 8 सीटों में से इंदौर संसदीय सीट भी शामिल थी। इंदौर में इस बार 69.66 फीसदी रिकॉर्ड मतदान हुआ था। इससे पहले 1967 के चुनाव में सर्वाधिक 64.80 फीसदी वोटिंग प्रतिशत रजिस्टर्ड हुआ था। 2014 के चुनाव में इंदौर संसदीय सीट पर 62.25 फीसदी वोटिंग हुई थी।

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लोकसभा चुनाव 2019 : प्रत्याशी

इंदौर से भाजपा ने शंकर लालवानी को टिकट दिया था। उनके सामने कांग्रेस के पंकज संघवी मैदान में थे। शंकर लालवानी को साल 1993 में विधानसभा क्षेत्र-4 की जिम्मेदारी मिली थी। इसके तीन साल बाद 1996 में हुए नगर निगम चुनाव में उन्हें जयरामपुर वार्ड से टिकट मिला था, जिसमें वो अपने भाई और कांग्रेस प्रत्याशी प्रकाश लालवानी को हराकर पार्षद बने थे। इसके अलावा वो इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। शंकर लालवानी को मैदान में उतारकर बीजेपी ने सिंधी समाज को भी साधने की कोशिश की थी। वहीं अच्छी साख होने के चलते कांग्रेस ने पंकज संघवी को टिकट दिया था। वैसे पंकज संघवी 1998 में भी ताई के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ चुके थे। तब ताई को 4 लाख 40 हज़ार 47 वोट मिले थे और पंकज संघवी को 3 लाख 90 हजार 195। हार का अंतर सिर्फ 49 हजार 852 वोटों का था। लेकिन इस बार मोदी लहर ने पंकज संघवी को कापी पीछे धकेल दिया है।
8 विधानसभा सीटें

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8 विधानसभा सीटें
इन्दौर लोकसभा में 8 विधानसभा सीटे शामिल हैं, इन सीटों में देपालपुर, राऊ, सांवेर, के अलावा इंदौर-1, इंदौर-2, इंदौर-3, इंदौर-4, इंदौर-5 सीटें शामिल हैं।

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इंदौर लोकसभा सीट 1984 तक कांग्रेस का गढ़ थी, जिसे 1989 में बीजेपी ने भेदा और सुमित्रा महाजन ने पहली बार चुनाव जीता, उन्होंने पहली बार में ही जीत हासिल की थी। इसके बाद से इस सीट से उन्हें कभी निराशा नहीं मिली। वो इंदौर से लगातार 8 बार चुनाव जीत रहीं थी। 1957 में यहां पहला लोकसभा चुनाव हुआ था। तब से 1984 तक यहां ज्यादातर कांग्रेस ने जीत हासिल की। 2014 में उन्होंने कांग्रेस के सत्यनारायण पटेल को 4 लाख से भी ज्यादा वोटों से हरा कर जीत हासिल की थी।

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इंदौर सीट पर सबसे बड़ा फैक्टर मराठी समाज का वोट बैंक है। ये मराठी वोट बैंक हर बार एक तरफा सुमित्रा महाजन के खाते में आता रहा है। लेकिन इस बार ताई के चुनाव लड़ने से इंकार करने के बाद ये वोट बीजेपी के पक्ष में जाते दिखे। कांग्रेस की नजर शहर के सवा दो लाख से ज्यादा मराठी वोटों पर थी। कांग्रेस का मानना था, कि इनमें से अधिकांश वोट व्यक्तिगत रूप से महाजन को मिलते थे, लेकिन पार्टी ने ताई का जो अपमान किया है, उससे मराठी समाज को ठेस पहुंची है। लिहाजा ये वोट इस बार कांग्रेस के पक्ष में आएंगे। हालांकि ये फैक्टर काम नहीं आया है। शंकर लालवानी ताई की ही पसंद थे,इसलिए ये वोट में कांग्रेस सेंध नहीं लगा पाई। सिंधी समाज ने इंदौर में बीजेपी को एकतरफा मत किया लगता है।

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इंदौर मध्य प्रदेश की उन सीटों में से है, जिस पर पूरे देश की नजर थी। माना जा रहा है कि इस बार का मुकाबला कांटे का है, लेकिन बीजेपी ने सारे कयासों को झुठला दिया है। बता दें कि स्पीकर सुमित्रा महाजन की 8 बार की जीत ने पिछले 30 साल से इंदौर को भाजपा का मजबूत गढ़ बना दिया है। विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा यहां कमजोर हुई थी, विधानसभा सीटों में से चार सीट कांग्रेस जीती है। लेकिन विधानसभा चुनाव से इतर वोटर ने यहां मोदी को बड़ी जीत देने में भूमिका निभाने का काम किया गया है। 2019 के इंदौर लोकसभा सीट पर कुल 22,02,105 मतदाता थे। चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के चुनाव में यहां 21,15,303 मतदाता थे, इसमें से 10,08, 842 महिला और 11,06,461 पुरुष मतदाता थे।