बहुचर्चित लाला त्रिपाठी हत्याकांड में न्यायालय ने सुनाया फैसला, इंजीनियर बनने निकला युवक बन गया था गैंगस्टर

बहुचर्चित लाला त्रिपाठी हत्याकांड में न्यायालय ने सुनाया फैसला, इंजीनियर बनने निकला युवक बन गया था गैंगस्टर

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  • Publish Date - July 23, 2019 / 12:19 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:16 PM IST

उज्जैन । बहुचर्चित लाला त्रिपाठी हत्याकांड में न्यायालय ने फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने दोनों पक्षों के सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। सभी गवाहों के पक्षद्रोही होने के कारण सभी आरोपियों को कोर्ट ने बरी कर दिया है। लाला त्रिपाठी हत्याकांड में अभियोजन आरोप साबित करने में नाकाम साबित हुआ है। बता दें कि 1 नवंबर 2015 को दो पक्षों में गैंगवार हुआ था। दोनों पक्षों की ओर से गैंगवार में हुई थी तीन लोगों की हत्या हुई थी। इसी गैंगवार में लाला त्रिपाठी, रवि पचौरी और अजय अवार्ड की हत्या कर दी गई थी।

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लाल त्रिपाठी खुद एक निगरानीशुदा बदमाश रहा है। लाला के हत्याकांड के पीछे एक लंबी कहानी है । विश्वास त्रिपाठी उर्फ लाला, शिक्षक पिता और वकील मां का यह बेटा किसी समय इंजीनियर बनने की चाह रखता था। गैंगस्टर कैसे बन गया। लाला के अपराध की दुनिया में कदम रखने का सिलसिला एक कसम से शुरू हुआ था। तीन कत्ल करने के बाद वह सुर्खियों में आया।

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दरअसल एक समय चर्चित रहे डाकू खड़कसिंह ने करीब 25 साल पहले जमीन पर कब्जा करने के लिए पड़ोसी किसान सलीम की हत्या कर दी थी। इसका का बदला लेने के लिए शहर के व्यस्ततम इलाके में कुछ ही अरसे बाद खड़कसिंह का मर्डर कर दिया गया था। खड़कसिंह की मौत के बाद जमीन विवाद को सुलझाने के लिए उस समय के पार्षद अखिलेश व्यास, राजू गौड़ सहित चार लोग उसकी पत्नी सुगनबाई से मिलने गए थे। हालांकि बेहद चौंकाने वाले घटनाक्रम में सुगनबाई ने चारों को गोली मारकर ढेर कर दिया था। अखिलेश की हत्या से लाला जो कि उसका बड़ा समर्थक था उसके मन में बदले की भावना पनपने लगी थी।

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इसके बाद साल 1997 में लाला ने अपने साथियों के साथ सुगनबाई के तीन बेटों को उस समय मौत के घाट उतार दिया जब वो कोर्ट पेशी पर आ रहे थे। एक साथ तीन हत्याओं से लाला का नाम अपराध की दुनिया में तेजी से उठा। इसका फायदा उठाते हुए लाला प्रापर्टी के धंधे में चला गया । इस बीच उस पर हफ्ता वसूली, अपहरण और हत्या के आरोप भी लगे और वह एक गैंग का संचालन करने लगा।

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साल 2000 में लाल ने राजनीति में कदम रखा और पार्षद बन गया। पार्षद बनने के बाद लाला विधायक बनने का सपना देखने लगा। वर्ष 2008 विधानसभा चुनाव में लाला निर्दलीय चुनाव भी लड़ा। इसी चुनाव में हुए विवाद के बाद गहरे दोस्त नन्‍नू से दुश्मनी हो गई। इसके बाद नन्‍नू की हत्या कर दी गई। इसी मर्डर का बदला लेने के लिए फिर खूनी तांडव रचा गया। लाला कई सालों तक फरार रहा। इस दौरान वह तीन साल तक बैंकाक में भी रहा। वर्ष 2012 में पुलिस के हत्थे चढ़ने के बाद से जेल में था। 10 अक्टूबर 2014 को उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। कुछ माह पूर्व ही वह जमानत पर जेल से बाहर आया था। इसके बाद से ही नन्नू गुरु गुट के लोग उसे मारने की फिराक में थे। आखिरकार लाला का भी वही अंजाम हुआ जो वह दूसरों का किया करता था।

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