एक नहीं जवानों से भरी दोनों बसें थी नक्सलियों के निशाने पर, जिनकी तलाश में निकली थी टीम वो बैठे थे घात लगाकर, ROP के बाद कैसे कामयाब हुए नक्सली?

एक नहीं जवानों से भरी दोनों बसें थी नक्सलियों के निशाने पर, जिनकी तलाश में निकली थी टीम वो बैठे थे घात लगाकर, ROP के बाद कैसे कामयाब हुए नक्सली?

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  • Publish Date - March 23, 2021 / 05:35 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:56 PM IST

नारायणपुर: नक्सलियों ने मंगलवार को एक बड़ी घटना को अंजाम दिया है। दरअसल नक्सलियों ने डीआरजी जवानों से भरी बस को निशाना बनाया, जिससे पांच जवान शहीद हो गए। वहीं, 12 जवान घायल हो गए, जिसमें से 7 गंभीर जवानों को रायपुर रेफर किया गया है। राजधानी रायपुर के अस्पताल में घायल जवानों का उपचार जारी है। इस घटना के बाद एक बार फिर इंटेलिजेंस को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल ये भी है कि आखिर जवानों की वापसी का समय नक्सलियों को कैसे पता चला? तो चलिए हम आपके तमाम सवालों का जवाब इनसाइड स्टोरी बताते हैं।

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दरअसल पुलिस को नक्सली मूवमेंट की सूचना मिली थी, जिसके बाद 22 मार्च को जवानों दो की टीम दो दिवसीय ऑपरेशन दंतेवाड़ा जिले के बोदली और नारायणपुर जिले के कड़ेमेटा के लिए निकली थी। इस टीम में डीआरजी के 90 जवान भी शामिल थे। मंगलवार दोपहर जवानों की टीम जंगल से लौटकर कड़ेमेटा कैंप पहुंची। इसके बाद डीआरजी नाराणयपुर के जवानों को बस से जिला मुख्यालय के लिए रवाना किया गया। वहीं, शाम लगभग 4.15 बजे जवानों की बस को घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने कड़ेनार कैंप से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर मरोड़ा गांव के पास निशाना बनाया और ब्लास्ट किया। इसके बाद जवानों से भरी बस ​अनियंत्रित होकर गड्ढे में जा गिरी।

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वहीं, जब IBC24 के रिपोर्टर ने घटना को लेकर जानकारी ली, तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। दरअसल नक्सलियों को पुलिस की वापसी और हर एक मूवमेंट की जानकारी थी, इसीलिए वे सही समय पर घात लगाकर बैठे हुए थे। हैरानी की बात ये है कि नक्सली एक नहीं बल्कि जवानों से भरी दोनों बसों को उड़ाने की तैयारी करके बैठे हुए थे, लेकिन वे अपने पूरे मंसूबे में कामयाब नहीं हो पाए। बता दें कि जवानों से भरी दो बसें कैंप से रवाना हुई थी। एक बस में 62 और दूसरी बस में 28 जवान सवार थे। नक्सलियों के निशाने वो बस आई, जिसमें 28 जवान सवार थे। वहीं, अगर 62 जवानों से भी बस नक्सलियों के निशाने पर आती और एक और आईईडी मिलता तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि शहीदों के आंकड़ें कहीं ज्यादा होते।

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जानकारी यह भी है कि जवानों को उन्हीं नक्सलियों ने निशाना बनाया है, जिन्हें खोजने के लिए पुलिस की दो टीमें जंगलों में निकली हुई थी। अब सवाल ये उठता है कि क्या पुलिस को गलत जानकारी दी गई? क्या जवानों को निशाना बनाने के लिए ही नक्सलियों ने पुलिस तक गलत जानकारी पहुंचाई थी। एक बड़ा सवाल ये भी है कि रोड ओपनिंग की कार्रवाई होने के बाद भी नक्सली अपने मंसूबों पर कैसे कामयाब हो गए?

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