रायपुर: नशे के खिलाफ जारी IBC24 की मुहिम के तहत हम आपको राजधानी में नशे के एक-एक अड्डे के साथ-साथ लॉकडाउन के दौरान नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाते नशे की पार्टी कराने वाले क्वींस क्लब और उससे जुड़े रसूखदारों की भी हर खबर दिखाते रहे हैं। हमारी टीम ने क्वींस क्लब के रसूखदार संचालकों की जितनी भी पड़ताल की। हमें हर कदम पर रसूख के दम पर नियमों की अनदेखी और सिस्टम की मिलीभगत के साफ-साफ संकेत मिले। रसूखदारों संचालकों का अब तक बचते रहना इसका सबसे बड़ा सुबूत है। आज हम क्वींस क्लब से जुड़ा सांठगांठ और जमीन की अदला-बदली से जुड़ा बड़ा खेल बताने जा रहे हैं, जो फिर से ये साबित करता है कि रसूखदारों और जिम्मेदार विभागों के चंद लोगों के कितनी तगड़ी सांठ गांठ है। जिसका किसी भी पीड़ित की शिकायत तक का कोई मोल नहीं है।
रायपुर के पुरैना में जब विधायक कॉलोनी और इसके लिए क्वींस क्लब बनाने का फैसला किया गया तभी जमीन की अदला-बदली का ऐसा नायाब खेल खेला गया, जो रसूख और सांठगांठ की अलग ही कहानी बयां करती है और बताती है कि क्लब और कॉलोनी के बनने के दिनों से ही इसमें रसूखदार और सांठगांठ का खेल खेला जा रहा है। दरअसल हाउसिंग बोर्ड की तरफ से जो प्लान तैयार किया गया, उसे पूरा करने के लिए जगदीश अरोरा और हरबक्श सिंह बत्रा की जमीन लेने की जरूरत दिखाई गई। बोर्ड चाहता तो सीधे जमीन अधिग्रहण की कार्रवाई कर सकता था, लेकिन जमीन की अदला-बदली का प्रस्ताव तैयार किया गया। इसके लिए 2006 में तत्कालीन सहायक अभियंता एच के वर्मा ने जगदीश अरोरा को पत्र लिख कर जमीन अदला बदली का प्रस्ताव रखा और यही पर एक बड़ा खेल खेला गया।
दरअसल जिस जमीन के लिए अकेले जगदीश अरोरा को पत्र लिखा गया, उस पर मोहनलाल अरोरा और सोमवती अरोरा का भी स्वामित्व था। भू अधिकार, ऋण पुस्तिका और राजस्व विभाग के रिकार्ड में बाकायदा तीनों के नाम दर्ज थे, लेकिन सहायक अभियंता ने कभी तीनों भू-स्वामियों को पत्र नहीं लिखा। बल्कि जगदीश अरोरा को ही भूमि का अकेला मालिक मानते हुए साल 2015 में अधिगृहित जमीन के बदले हाउसिंग बोर्ड ने अपनी बेशकीमती जमीन उसके नाम कर दी। ऐसा करना और करवाना दोनों अपराध की श्रेणी में आते हैं। खुद भू-स्वामी मोहनलाल अरोरा ने 2013 में कलेक्टर के सामने आपत्ति दर्ज कराई थी, लेकिन कहीं उनकी सुनवाई नहीं हुई। 2014 में उनकी मौत के बाद उनके बेटे सुमित अरोरा ने भी हाउसिंग बोर्ड और पुलिस थाने की इस गलत काम की जानकारी दी, लेकिन रसूख और सांठ गांठ के खेल के आगे कहीं उसकी सुनवाई नहीं हुई।
अधिवक्ता ओम प्रकाश निर्मलकर ने बताया कि पुलिस, बोर्ड और जिला प्रशासन से निराश होकर सुमित ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जेएमएफसी कोर्ट में भी उसे निराशा हाथ लगी। उसके बाद उसने सेशन कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, यहां उसकी बात सुनी गई। सेशन कोर्ट ने माना कि दो सहस्वामियों की मृत्यु के बाद एक स्वामी द्वारा जमीन की अदला-बदली का विलेख करा लेना स्पष्ट रूप से छल का अपराध बनाता है। लिहाजा पुलिस एफआईआर कर इसकी जांच करें। इसके बाद तेलीबांधा थाना में 2018 में जगदीश अरोरा और हाउसिंग बोर्ड के तत्कालीन सहायक अभियंता एच के वर्मा के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया। लेकिन आज 2 साल बाद भी इस मामले में कोई खास कार्रवाई नहीं हो सकी है। जगदीश अरोरा तो अग्रीम जमानत पर बाहर है, लेकिन अब तक एच के वर्मा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
तेलीबांधा टीआई विनीत दुबे ने बताया कि जाहिर है लॉकडाउन के दौरान तमाम नियम कानूनों को ठेंगे पर रखकर क्वींस क्लब के संचालकों ने वहां पार्टी करवाई, शराब पिलाई, बार खोलें, लेकिन सब कुछ सामने होने के बाद भी जिला प्रशासन बाकी दूसरी कार्रवाई करना तो दूर बार लाइसेंस तक रद्द नहीं कर सका है। अब नया खुलासा बताता है कि क्वींस क्लब के निर्माण के समय से ही कैसे और किस स्तर पर रसूख और सांठ गांठ का खेल खेला गया है। इसमें रसूखदार तो शामिल हैं हीं, अधिकारियों की मिलीभगत भी प्रतीत होती है और शायद यही रसूख और संरक्षण आज भी क्वींस क्लब के संचालकों को कार्रवाई से बचा रहा है।