रायपुर: इस घोर कोरोना संक्रमण काल में अपनी जान बचाने के लिए रायपुर के राजधानी अस्पताल भर्ती मरीजों पर दोहरा प्रहार हुआ। अस्पताल के ICU में हुए अग्निकांड में 6 मरीजों की जान चली गई। घटना ने पीड़ित परिवारों को लापरवाह सिस्टम की अनदेखी का एक और गहरा दंश दिया। हालांकि पुलिस का, जिम्मेदार विभागों का दावा है कि जांच जारी है…कोई भी दोषी बख्शा नहीं जाएगा। पुलिस ने अस्पताल प्रबंधन से लेकर संबंधित विभागों को नोटिस देकर कुछ जानकारियां भी मांगी हैं, लेकिन इस अग्निकांड के बाद अस्पतालों को लेकर जिम्मेदारों के लिए कुछ गंभीर सवाल सामने हैं।
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कोविड संक्रमण काल में शनिवार को रायपुर के पचपेड़ी नाका स्थित राजधानी के सुपर स्पेशेलिटी अस्पताल में आग में झुलसकर 6 मरीजों की मौत के बाद अब भी परिजन न्याय के आस में भटक रहे हैं। गंभीर अग्निकांड के बाद स्वास्थ्य विभाग के जम्मेदारों का कहना है कि फिलहाल उनका ध्यान कोविड के हालात को संभालने पर है उन्हें भी जांच रिपोर्ट का इंतजार है।
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इधर,चौतरफा बढ़ते दबाव के बाद अब पुलिस भी रायपुर के राजधानी अस्पताल पर शिकंजा कसने का दावा कर रही है। रायपुर पुलिस ने अस्पताल को नोटिस भेज कर प्रबंधकों के नाम पते मांगे हैं, जिसके मिलते ही मामलें में बेनामी FIR को नामजद FIR किया जाएगा। इसके अलावा पुलिस ने कार्रवाई का दायरा बढ़ाकर फायर सेफ्टी, बिजली विभाग, जिला मुख्य स्वास्थ एवं चिकित्सा अधिकारी कार्यालय, FSL विभाग को पत्र लिख कर जानकारी मांगी है।
मामले में 6 लोगों की जलने और दम घुटने से मौत के बाद भी संचालकों के खिलाफ अभी तक नामजद FIR दर्ज ना होने को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप और सफाई का दौर भी शुरू हो चुका है।
हालांकि इसके बाद भी जिम्मेदारों ने कोई सबक नहीं लिया है। सबसे गंभीर सवाल ये कि इस अस्पताल अग्निकांड में जान गंवाने वाले 6 लोगों के परिजनों को, प्रदेश के अब तक ये नहीं पता कि आखिर इस अग्निकांड का जिम्मेदार कौन है? जिम्मेदारों के लिए भी सवाल कम नहीं हैं…शॉपिंग कॉप्लेक्स जैसी बिल्डिंग का नक्शा किस प्रायोजन से पास हुआ? बड़ी बिल्डिंगों में खिड़की और फायर एक्जीट और पार्किंग होना अनिवार्य है, लेकिन राजधानी अस्पताल में ऐसा क्यों नहीं था? SDRF और अग्निशमन विभाग के लिए भी सवाल है कि राजधानी अस्पाल की बिल्डिंग में फायर सेफ्टी मानकों का जमकर उल्लंघन कैसे हो रहा था? अग्निशमन विभाग ने मापदंडों को लेकर फायर आडिट किया या नहीं? या तो बिना फायर एनओसी के चलता रहा या की SDRF के अधिकारी आफिस में बैठे बैठ ही हर साल फायर आडिट में क्लीयरेंस देते रहे। स्वास्थ्य विभाग के लिए भी सवाल है कि क्या प्रबंधन क्षमता से अधिक मरीजों को भर्ती कर रहा था? क्या जरूरी स्टाफ पूरी संख्या में था?