भोपाल: बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में बीजेपी की पाठशाला लगी है, जिसमें पार्टी अपने कार्यकर्ताओं की क्लास लेकर उनको होमवर्क याद दिलाएगी। दो दिन के प्रशिक्षण शिविर में तमाम विधायकों और कार्यकर्ताओं को पार्टी की नीतियों, विचारधारा के साथ कार्य, व्यवहार और समन्वय का ज्ञान बांटा जाएगा। ये पहली बार होगा जब सिंधिया समर्थक विधायक भी शामिल हो रहे हैं। ऐसे में सवाल है कि आखिर बार-बार विधायकों को पाठ क्यों पढ़ाया जा रहा? क्या प्रशिक्षण शिविर के जरिए बीजेपी निकाय चुनाव के साथ-साथ 2023 की तैयारी में जुटेगी?
बीजेपी विधायकों के प्रशिक्षण शिविर की शुरुआत से पहले गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इस बयान के जरिए बीजेपी को गंगाजल और पाला बदलने वाले विधायकों को पवित्र तो करार दे ही दिया। एक साल पहले विधायकों ने पाला भले ही बदला हो लेकिन दिल और दिमाग से वो बीजेपी को कितना अपना पाएं है ये जानना जरुरी है।
नरोत्तम मिश्रा और ओ पी एस भदौरिया के बयान तो साफ बता रहे हैं कि विधायक पूरी तरह से बीजेपी को अपना चुके हैं, लेकिन कांग्रेस के हमले की धार कम नहीं हुई है। शिविर शुरु होने से ऐन पहले पार्टी प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने ट्वीट किया कि भाजपा का प्रशिक्षण शिविर बिकाऊ को टिकाऊ बनाने का, भ्रष्टाचार करने का, नगरीय निकाय चुनाव को देखते हुए झूठ बोलने का, झूठी घोषणाएं करने का, मलाई कैसे खाने का, पावर दिखाने का,माफियाओं को कैसे संरक्षण देने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। जाहिर तौर पर कांग्रेस अभी भी बिकाऊ और टिकाऊ के मुद्दे को कमजोर नहीं होने देना चाहती।
इस प्रशिक्षण शिविर के जरिए बीजेपी निकाय चुनाव के साथ साथ 2023 की तैयारी में भी जुट गई है। दो दिन के शिविर में सात सत्र होंगे जिनमें विधायकों का कार्यकर्ताओं के साथ संवाद, आम जनता के बीच विधायक की छवि, आरएसएस और दूसरे संगठनों के साथ रिश्ते, सहयोगी स्टॉफ, कार्यालय के इंतजाम जैसे मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। कार्यकर्ताओं से पूछा जाएगा कि केंद्र और राज्य की योजनाओं के प्रचार के लिए उन्होंने क्या किया? लोगों को सरकारी योजनाओं का फायदा मिले इसके लिए शिविर लगवाए कि नहीं सोशल मीडिया पर कितने सक्रिय है? जनता को तुरंत मदद पहुंचाने के लिए क्या तरीका है? दरअसल बीजेपी के बड़े नेता विधायकों को अभी से बता देना चाहते हैं कि यदि 2023 में जीत कैसे हासिल होगी?
वैसे बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती नगरीय निकाय चुनाव में अपना रिकॉर्ड बरकरार रखने की है। क्योंकि नगरीय निकाय चुनाव को कांग्रेस जितनी गंभीरता से ले रही है उससे साफ है कि इस बार बीजेपी के लिए राह आसान रहने वाली नहीं।