रायपुरः वर्धा में छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रदेश पदाधिकारियों का तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आज समापन हो गया। ट्रेनिंग सत्र के आखिरी दिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी शामिल हुए। सीएम ने कांग्रेस पदाधिकारियों को मंत्र दिया कि अहिंसा का कोई विकल्प नहीं है, उन्होंने नक्सलवाद पर काबू पाने के लिए आदिवासियों का विश्वास जीतने पर भी जोर दिया। हालांकि विपक्ष को उनका मंत्र ज्यादा पसंद नहीं आया, लेकिन सवाल ये है कि आखिर सरकार बनने के दो साल बाद कांग्रेस पदाधिकारियों को गांधी के इस विचार की जरुरत क्यों पड़ी? क्या कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव से पहले अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को सत्ता के अहंकार से दूर रखना चाहती है? सवाल ये भी कि क्या वर्धा में आयोजित प्रशिक्षण शिविर का मकसद कांग्रेस के नए स्वरूप की कवायद है?
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तस्वीरें वर्धा की हैं, जहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ कांग्रेस पदाधिकारियों के तीन दिवसीय ट्रेनिंग सत्र के आखिरी अपने विचार साझा कर रहे हैं। गांधी आश्रम सेवाग्राम में छत्तीसगढ़ सरकार की गांधी के विचारों पर सुराजी योजनाओं की जानकारी देते हुए सीएम ने बताया कि उनकी सरकार कैसे गांव किसान और गाय जैसे क्षेत्र पर काम कर गांधी के सपनों को पूरा कर रही है। ट्रेनिंग सत्र की समाप्ति के बाद मीडिया से चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि अंहिसा का कोई विकल्प नहीं है। इसलिए उनकी सरकार पिछले 2 साल में नक्सलवाद से निपटने नक्सल मोर्चे पर आदिवासियों का विश्वास जीतने के साथ विकास पर जोर दे रही है।
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वर्धा में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल गांधी के विचार और सिद्धांतों पर अमल की बात कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि वर्धा में आयोजित प्रशिक्षण शिविर का मकसद कांग्रेस के नए स्वरूप की कवायद है। आखिर इसके क्या राजनीतिक मायने हैं? क्या बीजेपी से निपटने के लिए कांग्रेस में कैडर बेस बनाने की तैयारी की शुरुआत तो नहीं है। शिविर में इस बार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का शामिल हुए हैं। क्या कांग्रेस उन्हें लेकर कोई विशेष रणनीति पर काम कर रही है? दरअसल मौजूदा वक्त में भूपेश बघेल कांग्रेस में सबसे ऊर्जावान और ओबीसी वर्ग से आने वाले एक मात्र सीएम हैं, जिस तरह कांग्रेस उनका उपयोग कर रही है। तो क्या भूपेश कांग्रेस के खेवनहार बनने की दिशा में बढ़ रहे हैं, जिसकी पृष्ठभूमि वर्धा में तैयार हुई? जाहिर है कई सवाल हैं, जो कांग्रेस के प्रशिक्षण शिविर को लेकर उठ रहे हैं। सवाल है तो सियासत होना भी जरूरी है।
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कांग्रेस के प्रशिक्षण शिविर और मुख्यमंत्री के बयान को लेकर बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने आरोप लगाया कि कांग्रेस केवल गांधी का खाती है, गाती है, लेकिन उन्हें अपनाती नही। जिस पर कैबिनेट मंत्री रविंद्र चौबे ने पलटवार करते हुए कहा कि गांधी पर कुछ कहने का अधिकार भाजपाइयों का नहीं। वो पहले गोडसे मुर्दाबाद बोले, वहीं नक्सलवाद के मुद्दे पर भी दोनों पक्ष एक दूसरे को जमकर हमला बोला।
माना कि सियासत में बहुत से मुद्दे उठाए और उछाले जाते हैं, लेकिन क्या हर मुद्दे पर सियासत होनी चाहिए। कम से कम नक्सवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर तो बिल्कुल भी नहीं, लेकिन अफसोस नक्सलवाद के नासूर पर चर्चा के दौरान भी वार-पलटवार का सिलसिला अक्सर मूल मंथन से ध्यान भटका देता है, जिसकी ना तो जरूरत है और ना ही उचित। बहरहाल, गांधी के विचार और सिद्धांतों पर अमल की चर्चा से पार्टी और प्रदेश कितना लाभान्वित होता है ये देखना दिलचस्प होगा।
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