रायपुर : छत्तीसगढ़ में बीते कई दशकों से हाथी और इंसानों के बीच टकराव जारी है। इसे रोकने के लिए 2019 में लेमरू हाथी रिजर्व प्रोजेक्ट बनाया गया। एलिफेंट कॉरिडोर को लेकर भले अब तक कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं हुआ हो, लेकिन विवाद जरूर शुरू हो गया है। विवाद की वजह बना है वन विभाग का नया प्रस्ताव, जिसमें लेमरू का करीब 80 फीसदी एरिया कम करने की बात कही गई है। इस मुद्दे को लेकर विपक्ष सरकार पर आरोप लगा रही है। वहीं सत्ता पक्ष का अपना तर्क है। अब सवाल ये है कि लेमरू एलिफेंट कॉरिडोर के एरिया पर विवाद क्यों हो रहा है? आखिर कांग्रेस के विधायक इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री बघेल को पत्र क्यों लिख रहे हैं?
पत्थलगांव और कोरबा की ये तस्वीरें केवल एक बानगी है उस सालों पुरानी समस्या की, जिससे उत्तर छत्तीसगढ़ के लोगों का जीना मुहाल हो रखा है। जी हां हर साल हाथियों के उत्पात से ग्रामीणों को नुकसान उठाना पड़ता है। इसी समस्या को दूर करने 2019 में लेमरू एलीफेंट प्रोजेक्ट तैयार किया गया था। अब इसी प्रोजेक्ट पर विवाद शुरू हो गया है। विवाद की वजह वन विभाग के अवर सचिव का पत्र है, जिसमें लेमरू प्रोजेक्ट के एरिया को 1 हजार 995 वर्ग किलोमीटर से घटाकर 450 वर्ग किलोमीटर करने का जिक्र है। क्षेत्र को छोटा करने सरगुजा के सात विधायकों की सहमति के साथ मंत्री टीएस सिंहदेव की सहमति होने का उल्लेख किया है।
26 जून को लिखे इस पत्र का उल्लेख करते हुए अब मंत्री टीएस सिंहदेव ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखा है, जिसमें लिखा है कि उन्होंने कभी लेमरू प्रोजेक्ट को छोटा करने की मांग नहीं की, बल्कि सुझाव दिया है कि यूपीए शासन काल में “NO GO AREA’ के निर्णय को फिर से लागू किया जाए। सिंहदेव के अलावा सरगुजा संभाग के कई विधायकों ने लेमरू एलिफेंट रिजर्व को लेकर मुख्यमंत्री को अलग-अलग पत्र लिखा है। हालांकि सरकार का दावा है कि प्रोजेक्ट पर कहीं कोई विरोधाभास की स्थिति नहीं है। क्षेत्रफल घटाने-बढ़ाने पर अंतिम फैसला होना बाकी है।
उत्तर छत्तीसगढ़ के जशपुर, बलरामपुर, सूरजपुर और कोरबा जिले में प्रस्तावित लेमरु हाथी रिजर्व के नए प्रस्ताव पर उठे विवाद में अब विपक्ष भी कूद पड़ा है। बीजेपी नेताओं ने आरोप लगाया कि कांग्रेस नेता उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए लेमरू प्रोजेक्ट का क्षेत्र छोटा करने की बात कर रहे हैं। साथ ही राज्य सरकार की मंशा पर भी सवाल उठा रही है।
दरअसल 2011 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने ही एलिफेंट रिजर्व बनाने का निर्णय लिया था। तब इस योजना को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। 2019 में कांग्रेस सरकार ने इसे 1995 वर्ग किमी एरिया में बनाने की सहमति दी। अब वन विभाग इसे 450 वर्ग किमी में सीमित करने की तैयारी कर रही है। बहरहाल प्रदेश में बीते दो दशक से ज्यादा से मानव और हाथी के बीच संघर्ष जारी है। हाथी बेकाबू होकर जंगलों से बाहर आ रहे है और मासूम जिंदगियां इनके पैरों तले कुचली जा रही है। इंसानों और हाथियों के इसी संघर्ष को रोकने के लिये लेमरू हाथी रिजर्व प्रोजेक्ट तैयार किया गया। लेकिन वो फिलहाल विवादों के बवंडर में उलझा हुआ है।