सीएम ने किया राज्य स्तरीय परपंरागत वैद्य सम्मेलन का शुभारंभ, प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हुए हजारों वैद्य

सीएम ने किया राज्य स्तरीय परपंरागत वैद्य सम्मेलन का शुभारंभ, प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल हुए हजारों वैद्य

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  • Publish Date - November 24, 2019 / 01:44 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:29 PM IST

रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि छत्तीसगढ़ के परंपरागत वैद्यों के ज्ञान को लिपिबद्ध करने, जड़ी बूटियों के संरक्षण- संवर्धन तथा वैद्यों के ज्ञान का लाभ पूरे समाज तक पहुंचाने के लिए छत्तीसगढ़ में ट्रेडीशनल मेडिसिन बोर्ड का गठन किया जाएगा । मुख्यमंत्री ने आज राजधानी रायपुर स्थित पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के सभागार में “राज्य स्तरीय परम्परागत वैद्य सम्मेलन सह प्रशिक्षण” कार्यक्रम में यह घोषणा की। यह आयोजन छत्तीसगढ़ राज्य योजना आयोग, राज्य औषधि पादप बोर्ड, लघु वनोपज संघ तथा वन विभाग के संयुक्त तत्वाधान में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने की। छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के अध्यक्ष श्री भरत साय और मुख्यमंत्री के सलाहकार श्री प्रदीप शर्मा विशेष अतिथि के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित थे।

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परंपरागत औषधि बोर्ड वैद्यों के ज्ञान का दस्तावेजीकरण, लिपिबद्ध करने का कार्य करेगा। यह बोर्ड का प्रमुख कार्य रहेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में हजारों वर्षों से वैद्य द्वारा जड़ी-बूटियों से परंपरागत ढ़ग से इलाज किया जा रहा है, लेकिन यह परंपरा आज पिछड़ गई है, क्योंकि हमने अपने ज्ञान का दस्तावेजीकरण नहीं किया और ज्ञान बांटा नहीं । वैद्य के साथ ही उनका ज्ञान भी समाप्त हो गया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ वन संपदा से परिपूर्ण है और हमारे वनों में वनौषधियों का विशाल भंडार है। ग्रामीण बहुमूल्य जड़ी-बूटियों को हाट- बाजारों में पसरा में औने पौने दाम पर बेच देते हैं। राज्य सरकार का यह भी प्रयास है कि लोगों को जड़ी बूटियों का सही मूल्य मिले ।

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सीएम बघेल ने कहा कि जिस तरह से एलोपैथिक डॉक्टर एमबीबीएस के बाद मेडिसिन में एमडी या सर्जरी में एमएस कर विशेषज्ञता हासिल करते हैं, उसी तरह कौन से वैद्य किस विशेष बीमारी का इलाज करने में दक्ष है, इसकी भी जानकारी संकलित की जानी चाहिए । छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थल सिरपुर में सुप्रसिद्ध रसायनज्ञ नागार्जुन रहते थे। यहां मेडिसिन कैसे बनाई जाती थी, इसके भी प्रमाण मिले हैं। आज वैद्यों के ज्ञान और जड़ी बूटियों के संरक्षण और संवर्धित करने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ के किस क्षेत्र में कौन सी जड़ी बूटी प्रमुखता से मिलती है, यह जानकारी भी संकलित की जानी चाहिए। हो सकता है अमरकंटक में जो वनौषधि मिलती है, वह बस्तर में ना मिलती हो। मुख्यमंत्री ने कहा कि सदियों से छत्तीसगढ़ की पहचान म्यूजिक, मेडिसिन और मेटालर्जी रही है। सरगुजा से बस्तर तक थोड़ी थोड़ी दूर पर संगीत और लोक नृत्य की अलग-अलग समृद्ध परंपरा है। सिरपुर में धातुकर्म के प्रमाण मिले हैं।

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वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा कि वैद्य के अनुभव का लाभ जन-जन तक पहुंचे, इसी उद्देश्य से आज राजधानी रायपुर में राज्य स्तरीय परंपरागत वैद्य सम्मेलन एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के गौरवशाली और समृद्ध परंपराओं को पुनर्जीवित करने का काम किया है । हरेली त्यौहार से इसकी शुरुआत हुई थी, तीजा, पोरा, भाई दूज और गौरी-गौरा के त्यौहार उत्साह से मनाए गए। अरपा-पैरी के धार’ गीत को राजगीत का दर्जा प्रदान किया गया। छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पथ को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जाएगा। उन्होंने वैद्यों को यह जानकारी भी दी, कि छत्तीसगढ़ में संचालित विभिन्न स्वास्थ्य योजनाओं को एकीकृत कर डॉ खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना प्रारंभ की गई है।

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राज्य स्तरीय परम्परागत वैद्य सम्मेलन सह प्रशिक्षण कार्यक्रम में वनों में पाये जाने वाले औषधीय पौधों का महत्व तथा उपयोगिता और लोक स्वास्थ्य परम्पराओं का 21वीं सदी की स्वास्थ्य व्यवस्था में स्थान, औषधीय पौधों पर वर्तमान में हो रहे शोध कार्यों आदि विषयों पर विचार-विमर्श किया गया।
कार्यक्रम में राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष अजय सिंह, प्रमुख सचिव वन मनोज कुमार पिंगुआ, प्रधान मुख्य वन संरक्षक राकेश चतुर्वेदी, राज्य औषधी पादप बोर्ड के मुख्य कार्यपालन अधिकारी पी.व्ही. नरसिम्ंहाराव, छत्तीसगढ़ राज्य वैद्य संघ के सचिव निर्मल कुमार अवस्थी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यशाला में व्याख्यान देने के लिए जे.एन.यू. नईदिल्ली, सी.सी.आर.ए.एस. नई दिल्ली, एफ.आर.एल.एच.टी. बैंगलोर, क्षेत्रीय कार्यालय, एन.एम.पी.बी. जबलपुर, आई.जी.के.वी. रायपुर, आयुष विभाग छत्तीसगढ़ तथा सीजीसर्ट रायपुर से विषय विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया है। इस कार्यशाला में राज्य भर से लगभग एक हजार वैद्य शामिल हुए।