छत्तीसगढ़ सरकार ने पूरा किया वादा, 50 से बढ़कर 52 लघु वनोपजों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी | Chhattisgarh government fulfilled the promise

छत्तीसगढ़ सरकार ने पूरा किया वादा, 50 से बढ़कर 52 लघु वनोपजों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी

छत्तीसगढ़ सरकार ने पूरा किया वादा, 50 से बढ़कर 52 लघु वनोपजों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:44 PM IST, Published Date : June 28, 2021/4:36 pm IST

रायपुर। छत्तीसगढ़ की वर्तमान सरकार द्वारा राज्य के निवासियों से यह वादा किया गया था कि सरकार गठन के तत्काल बाद तेंदूपत्ता एवं अन्य लघु वनोपजों के संग्रहण दर में वृद्धि की जायेगी तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी करने के लिए वनोपजों की संख्या भी 7 से बढ़ाकर 50 की जाएगी। अपने वादों को न केवल पूरा करते हुए बल्कि इससे भी आगे बढ़कर प्रथम वर्ष में ही 52 लघु वनोपज प्रजातियों का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्रय करना प्रारंभ कर दिया गया है।

छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार का वनवासियों के हित में अहम निर्णय लेते हुए लघु वनोपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी वृद्धि की गयी। वर्ष 2018 में तेंदूपत्ता का संग्रहण दर 2500 रूपए प्रति मानक बोरा था, उसे बढ़ाकर 4000 रूपए प्रति मानक बोरा कर दिया गया। इससे पहले वर्ष 2019 में ही 13 लाख तेंदूपत्ता संग्राहकों को 225 करोड़ रूपए की अतिरिक्त आय हुई। अन्य लघु वनोपज में जहां वर्ष 2018 में मात्र 7 वनोपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर संग्रहण किया जाता था, उसे बढ़ाकर 52 लघु वनोपज के क्रय की व्यवस्था न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की गयी, न केवल वनोपजों की संख्या में वृद्धि की गई, बल्कि ग्राम एवं हाटबाजार स्तर पर 3500 महिला स्व-सहायता समूहों का गठन करते हुए और उनके प्रशिक्षण हेतु प्रशिक्षित एवं प्रोत्साहित करते हुए अधिक से अधिक वनोपज क्रय हेतु प्रोत्साहित किया गया। न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी वर्ष 2018 की तुलना में वृद्धि की गयी, जिसका प्रत्यक्ष परिणाम यह हुआ है कि लगभग 6 लाख लघु वनोपज संग्राहकों द्वारा बिचौलियों के औने-पौने दाम में लघु वनोपज न बेचते हुए ग्राम एवं हाट बाजार स्तर पर गठित समितियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर वनोपजों का विक्रय किया गया।

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इसी तरह वर्ष 2018 में जहां 1600 करोड़ रूपए का ही कुल वनोपज क्रय किया गया था, उसे बढ़ाकर 2100 करोड़ रूपए का क्रय किया गया, जो कि वर्ष 2018 की तुलना में 32 प्रतिशत की वृद्धि प्रतिवर्ष हुई है। इस तरह राज्य में लघु वनोपजों की संख्या एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि के फलस्वरूप 13 लाख से अधिक गरीब तथा आदिवासी लघु वनोपज संग्राहकों को प्रतिवर्ष 501 करोड़ 70 लाख रूपए की राशि की अतिरिक्त आय हो रही है। दरों में वृद्धि से अतिरिक्त आय होने वाले 17 मुख्य प्रजातियों में तेन्दूपत्ता, महुआ फूल, इमली (बीज सहित), महुआ बीज, चिरौजी गुठली, रंगीनी लाख, कुसुमी लाख, फूल झाड़ृ, गिलोय, चरोटा बीज, धवई फूल, बायबिडिंग, शहद, आंवला (बीज रहित), नागरमोथा, बेल गुदा तथा गम कराया शामिल है।

छत्तीसगढ़ राज्य में लघु वनोपजों का अनुमानित उत्पादन 1200 करोड़ रूपए प्रतिवर्ष से अधिक का है, परंतु अधिकांश लघु वनोपज व्यापारियों द्वारा क्रय कर अन्य राज्यों में प्रसंस्करण हेतु भेज दिया जाता था। इमली, लाख इत्यादि वनोपज का भी न तो प्राथमिक प्रसंस्करण किया जाता था न ही ऐसे अधिक मात्रा में प्रसंस्कृत उत्पाद निर्मित किये जाते थे। छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयासों के फलस्वरूप सिर्फ इमली का प्राथमिक प्रसंस्करण करते हुए इसका डीसिडिंग कार्य राज्य में ही क्षेत्रीय स्तर पर कराया गया, जिसमें 21 हजार 582 हितग्राहियों को 2 करोड़ 69 लाख रूपए की अतिरिक्त आय हुई। इसके अलावा अन्य लघु वनोपजों के प्राथमिक प्रसंस्करण से एक करोड़ 91 लाख रूपए की अतिरिक्त आमदनी संग्राहकों को हो रही है। प्राथमिक प्रसंस्करण के फलस्वरूप वनोपज का मूल्य-संवर्धन भी हुआ है, जिससे लघु वनोपज के विक्रय से वनोपज का उचित मूल्य भी प्राप्त हुआ।

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लघु वनोपज के प्राथमिक प्रसंस्करण के साथ-साथ हर्बल उत्पादों का निर्माण भी 50 प्रसंस्करण केंद्रों द्वारा किया जा रहा है, जिसमें 1324 महिला स्व-सहायता समूह शामिल हैं। इन समूहों के अंतर्गत 17 हजार 424 महिला हितग्राही लघु वनोपज के प्रसंस्करण का कार्य कर रही हैं तथा त्रिफला, महुआ लड्डू, च्यवनप्राश, चिरौंजी, सेनेटाईजर, भृगराज तेल, 3 शहद, काजू इत्यादि के हर्बल उत्पाद तैयार किया जा रहा है। वर्ष 2020-21 में 111 प्रकार के हर्बल उत्पादों को तैयार किया गया, जिसका विक्रय मूल्य 7 करोड़ 50 लाख रूपए है। इन समूहों को प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान जैसे आई.आई.टी कानपुर के माध्यम से उद्यमिता एवं प्रसंस्करण हेतु प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है, जिससे ये स्व-सहायता समूह प्रसंस्करण कार्य हेतु आत्म-निर्भर बन सकें, इन प्रसंस्करण केंद्रों द्वारा तैयार किये गये हर्बल उत्पादों को छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा छत्तीसगढ़ हर्बल्स ब्रांड नाम से मार्केटिंग करते हुए विक्रय का कार्य किया जा रहा है। वर्ष 2020-21 में 10 करोड़ रूपए से अधिक राशि के हर्बल उत्पादों के विक्रय का लक्ष्य रखा गया है।

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हर्बल उत्पाद के डिमांड को देखते हुए अमेजन जैसे प्लेट फार्म ई-कामर्स पर भी इन उत्पादों का आनलाईन विक्रय प्रारंभ किया जा चुका है। छत्तीसगढ़ हर्बल्स के उत्पाद शासकीय संजीवनी स्टोर के अलावा प्रदेश में अन्य निजी विक्रय केंद्रों में भी संवितरक के माध्यम से उपलब्ध कराया जा रहा है। लघु वनोपजों के प्रसंस्करण के सीधा लाभ वनोपज सग्राहकों, महिला स्व-सहायता समूहों तथा अन्य व्यक्तियों को हो रहा है। इन प्रयासों के फलस्वरूप न केवल संग्राहकों की आय में वृद्धि हुई है, अपितु महिला स्व-सहायता समूहों की क्षमता में वृद्धि के साथ-साथ आत्मनिर्भर होने की ओर अग्रसर हुए हैं।

छत्तीसगढ़ में इन प्रसंस्करण केन्द्रों के अलावा लघु वनोपज के व्यापक उत्पादन को देखते हुए तथा राज्य के अंतर्गत ही बड़े प्रसंस्करण केंद्र भी स्थापित करने की दिशा में निर्णय लिया गया है। इस संबंध में जहां क्षेत्रीय स्तर पर ट्राइफूड योजना के अंतर्गत कटहल एवं शहद के प्रसंस्करण केंद्र स्थापित करने की योजना तैयार की गयी हैं। वहीं केंद्रीय स्तर पर केंद्रीय प्रसंस्करण इकाई की स्थापना दुर्ग जिले में की जा रही है, इसके अंतर्गत 78.11 करोड़ रूपए लागत की आयुर्वेदिक निर्माण इकाई की स्थापना की जाएगी। जिसमें छत्तीसगढ़ में उपलब्ध औषधि पौधों का उपयोग करते हुए विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण किया जाएगा। इसके साथ ही 50 करोड़ रूपए के इमली, महुआ, लाख, जूस एवं औषधि सत्त के उत्पादन हेतु प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना की जाएगी। उद्योग विभाग द्वारा भी हर्बल फूड पार्क विकसित कर निजी निवेशकों को लघु वनोपज आधारित उद्योग स्थापित करने हेतु प्लॉट उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे राज्य में औद्योगिक नीति का फायदा उठाते हुए अधिक से अधिक उद्योगों की स्थापना संभव हो।

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राज्य द्वारा वनोपज संग्रहण एवं प्रसंस्करण संबंधी लिए गए महत्वपूर्ण निर्णय

छत्तीसगढ़ में इसके तहत अनुसूचित क्षेत्र में कोदो, कुटकी एवं रागी का राज्य लघु वनोपज संघ के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्रय का निर्णय लिया गया है। इसी तरह लाख उत्पादन को कृषि का दर्जा देकर धान की तरह ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराने का भी निर्णय लिया गया। इसके अलावा राज्य में वनोपज आधारित उद्योगों की स्थापना को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ऐसे उद्योगों को उच्चतम प्राथमिकता के श्रेणी में रखा गया है। साथ ही वनांचल योजना लागू कर 5 करोड़ रूपए तक के वनोपज आधारित उद्योगों की स्थापना हेतु विशेष पैकेज लागू किया गया है।