ब्लैक फंगस के मरीज एंडोस्कोपी के जरिए हो रहे ठीक, 49 मरीजों को किया गया डिस्चार्ज, नहीं पड़ी एम्फोसिटीरिन- बी इंजेक्शन की जरूरत

ब्लैक फंगस के मरीज एंडोस्कोपी के जरिए हो रहे ठीक, 49 मरीजों को किया गया डिस्चार्ज, नहीं पड़ी एम्फोसिटीरिन- बी इंजेक्शन की जरूरत

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  • Publish Date - May 29, 2021 / 01:36 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:38 PM IST

इंदौर ।  ब्लैक फंगस को लेकर अब राहत भरी खबरें सामने आना शुरू हो गई है।  एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन ने जानकारी दी है कि जिन मरीजों को ब्लैक फंगस का संक्रमण नाक तक आया था, उन्हें एंडोस्कोपी कर ठीक कर दिया गया है । राहत की बात यह है कि इन मरीजों को एम्फोसिटीरिन- बी इंजेक्शन की जरूरत ही नहीं पड़ी और यह मरीज टेबलेट लेकर ही ठीक हो रहे हैं । इससे प्रशासन ने भी अब राहत की सांस ली है, क्योंकि इंजेक्शन की उपलब्धता प्रशासन के लिए चुनौती बनी हुई थी।  हालांकि फिलहाल गंभीर मरीजों के लिए इंजेक्शन को उपलब्ध कराना अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है ।

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 इंदौर शहर में अभी तक 49 मरीजों को ब्लैक फंगस से ठीक होकर अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है । यह मरीज शहर के एमवाय हॉस्पिटल में ब्लैक फंगस का इलाज करा रहे थे । यह वह मरीज थे जिन्हें बिना इंजेक्शन लगाए अस्पताल के द्वारा ठीक किया गया है । इन मरीजों में फंगस का संक्रमण नाक या मुंह तक ही पहुंचा था, जिसके बाद अस्पताल ने इन्हें एंडोस्कोपी की मदद से ही ठीक किया है।

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 फिलहाल इन मरीजों को छुट्टी कर 5 दिन का पोसोकोनाजोल टेबलेट का डोज दिया गया है, एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन के मुताबिक ब्लैक फंगस के इलाज के लिए एम्फोसिटीरिन बी इंजेक्शन उन मरीजों के लिए जरूरी है, जिनमें संक्रमण ज्यादा है । लेकिन वे मरीज जिन्हें फंगस के संक्रमण का शुरुआती दौर है और उनमें लक्षण पहचाने जाकर उनका इलाज शुरू कर दिया गया है, तो वह मरीज बिना इंजेक्शन के भी ठीक हो सकते हैं ।

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इसी को ध्यान में रखकर अब प्रशासन ने भी पोस्ट कोविड मरीजो में फंगस की पहचान करना शुरू कर दी है,  ताकि समय रहते ही मरीजों को चिन्हित कर उन्हें बिना इंजेक्शन के ही ठीक कर दिया जाए । इन मरीजों के ठीक होने पर राहत की सांस भी ली जा रही है । फिलहाल ब्लैक फंगस को लेकर यह भ्रांतियां थी, कि हर मरीज को एम्फोसिटीरिन बी इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है,लेकिन इंदौर के एमवाय हॉस्पिटल में ठीक किए गए मरीजों के कारण अब प्रदेश भर में शुरुआती स्टेज में पहचाने जाने वाले मरीजों का इलाज टेबलेट से किया जा सकेगा फिलहाल 3000 से अधिक टैबलेट प्रशासन के पास मौजूद है इन मरीजों को शुरुआती दौर में ही पहचानने पर दवा का डोज भी कम लगता है

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