रायपुर: बस्तर के घोर नक्सल प्रभावित इलाकों में से एक सिलगेर में पुलिस कैंप का विरोध लगातार जारी है। मई महीने में ग्रामीणों के विरोध के दौरान पुलिस ने जब उन्हें वहां से हटाने का प्रयास किया तो, इस दौरान हुए संघर्ष में 3 की मौत हो गई जिनकी पहचान बाद में नक्सिलयों के तौर पर की गई। पुलिस कहती है इस विरोध के पीछे नक्सली साजिश है, दूसरी तरफ विपक्ष इसे सरकार की नाकामी के तौर पर देखता है। भाजपा ने मामले की जांच के लिए एक टीम बनाई, जिसके 6 सदस्य तमाम प्रयास के बाद भी सिलगेर तक नहीं पहुंच पाए। अहम बात तो ये है कि मामले में प्रशासनिक टीम के जांच अधिकारी डिप्टी कलेक्टर तक घटनास्थल तक पहुंच नहीं सके। भाजपा का आरोप है कि शासन-प्रशासन सच को दबा रही है, तो वहीं सत्ता पक्ष के अपने तर्क हैं।
बीजापुर के सिलगेर कैंप में 12 मई से सुरक्षाबल और स्थानीय आदिवासी आमने-सामने हैं, हालात सुधरने के बजाय हर दिन तनाव बढ़ता जा रहा है। 17 मई को हुई गोलीबारी और 3 ग्रामीणों की मौत को लेकर अब सियासत भी शुरू हो गई है। इनकाउंटर मामले की जांच के लिए गठित बीजेपी की की छह सदस्यीय टीम और पूर्व जन जाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय सिलगेर पहुंचे। लेकिन सुरक्षाबलों ने उन्हें बासागुड़ा थाने में ही रोक लिया, जिसके बाद बीजेपी जांच दल को आदिवासियों से मिले बगैर ही वापस लौटना पड़ा। बीजेपी नेताओँ ने आरोप लगाया कि सरकार नहीं चाहती कि इस मामले की सच्चाई सामने आए। इसीलिए उन्हें घटनास्थल जाने से रोका जा रहा है।
सिलगेर में प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों से बगैर लौटी बीजेपी जांच दल शासन प्रशासन को आड़े हाथों ले रही है, तो वहीं आईजी बस्तर सुंदरराज पी ने इसके पीछे कोरोना संक्रमण को वजह बताई है। दरअसल नरसापुरम में कुल 52 लोगों का कोरोना टेस्ट किया गया था। इनमें एक साथ 28 लोग संक्रमित मिले हैं।
सिलगेर कैंप के विरोध में प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों ने साफ कर दिया है कि कैंप के हटने तक वो इसी तरह अपना विरोध जताते रहेंगे और मौक़े पर डटे रहेंगे। हालांकि शासन-प्रशासन मामले को संभालने में जुटा है, लेकिन सिलगेर में जो मौजूदा हालात हैं। उसे लेकर विपक्ष सरकार की नक्सल नीति पर सवाल खड़े कर रहा है। दूसरी ओर राज्य सरकार एंटी नक्सल मोर्चे पर मजबूत घेराबंदी और सड़कों की सुरक्षा के लिए ऐसे कैम्प जरूरी बता रही है।
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कुल मिलाकर पुलिस ये दावा कर चुकी है कि सिलगेर और आसपास के गांवों में आदिवासी नक्सलियों के प्रभाव में हैं, उन्हीं के दबाव में कैम्प का विरोध किया जा रहा है। बहरहाल सिलगेर मे पिछले 20 दिन का घटनाक्रम कई सवाल खड़े कर रहा है, लेकिन हर बार सवाल का जवाब सवाल के रूप में ही सामने आता है। अब देखना ये है कि सिलगेर में जारी तनाव कब खत्म होगा? अगर यही हालात रहे तो एक तरफ नक्सली अपने प्रोपेगेंडा में कामयाब तो होंगे ही, तो दूसरी ओर बीजापुर के गांवों में कोरोना का खतरा भी मंडराएगा।