बाबा घासीदास जयंतीः ’जैतखाम’ प्रतीक है शांति, एकता और भाईचारे का, जानिए क्या है महत्व

बाबा घासीदास जयंतीः ’जैतखाम’ प्रतीक है शांति, एकता और भाईचारे का, जानिए क्या है महत्व

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  • Publish Date - December 18, 2020 / 11:44 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:58 PM IST

रायपुरः ’मनखे-मनखे एक समान’ का संदेश देने वाले बाबा गुरु घासीदास की 267 जयंती छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों में भी धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस अवसर पर सतनाम पंथ को मानने वाले लोग ’जैतखाम’ की पूजा कर सफेद झंडा चढ़ाते हैं। साथ ही जैतखाम में ठेठ छत्तीसगढ़िया रोटी-पिठा (मिठाई) भी चढ़ाया जाता है। बाबा की जयंती पर सतनामियों द्वारा एक खास नृत्य किया जाता है, जिसे ’पंथी नृत्य’ कहा जाता है। बता दें कि गुरु घासीदास के घासीदास की जन्मस्थली गिरौदपुरी में एशिया का सबसे बड़े जैतखाम की स्थापना की गई है, जो दिल्ली में स्थित कुतुब मिनार से भी उंचा है। 

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बाबा कौन हैं गुरुघासीदास बाबा
बाब घसीदास सतनामी धर्म के प्रवर्तक माने जाते हैं। बाबा घसीदास ने जाति-धर्म, समाजिक आर्थिक विसमता और शोषण को समाप्त कर आपसी सदभावना और प्रेम का संदेश दिया। बाबा घसीदास का समाधी स्थल बलौदाबाजार जिले के गिरौधपुरी में स्थित है, यहां हर साल हजारों लोग आते हैं।

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बाबा घसीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 को गिरौद नामक गांव में मंहगू दास तथा माता का नाम अमरौतिन के घर हुआ था। वे बचपन से कई चमत्कार दिखाए, जिसका लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा। ऐसा कहा जाता है कि गुरु घसीदास को ज्ञान की प्राप्ति रायगढ़ जिले के सारंगढ़ तहसील के एक गांव के बाहर पेड़ के नीचे तपस्या करते हुए थी। आज यहां बाबा घासीदास की स्मृति में पुष्प वाटिका का निर्माण किया गया है।

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गुरु घासीदास ने लोगों जात-पात की भावना को दूर कर समाज के बीच एकता का संदेश दिया। छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद वीर नारायण सिंह भी उनके सिद्धांतों से प्रभावित थे। साल 1901 के जनगणना के अनुसार लगभग 4 लाख लोग सतनाम पंत से जुड़ चुके थे, लेकिन आज बाबा घसीदास को आदर्श मानने वालों की संख्या करोड़ों में है।

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जैतखाम क्या है?
जैतखाम सतनामियों के सत्य नाम का प्रतीक जयस्तंभ है साथ ही यह सतनाम पंथ की विजय कीर्ति को प्रदर्शित करने वाली आध्यत्मिक पताका है। आमतौर पर सतनाम समुदाय के लोगों द्वारा अपने मोहल्ले, गांव में किसी चबूतरे या प्रमुख स्थल पर खम्बे में सफेद झंडा लगा दिया जाता है, जिसे जैतखाम कहा जाता है। यहां कई तरह के धार्मिक क्रियाकलाप भी किए जाते है। जैतखाम शांति, एकता और भाईचारे का प्रतीक है। गिरौदपुरी में जो जैतखाम बनाया गया यह सामान्यतौर पर जो जैतखाम बनाया जाता है, उससे बिलकुल अलग है। यह बहुत भव्य है साथ ही इसे बनाने के लिए आधुनिक तकनीकां का इस्तेमाल किया गया है।

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बाबा घासीदास के आदर्शों से शहीद वीर नारायण सिंह भी थे प्रभावित

1.सतनाम के ऊपर विश्वास रखना है
2. जीव हत्या नहीं करना है
3. मांस का सेवन नहीं करना है
4. चोरी, जुआ से दूर रहना
5. नशा पान करना मना है
6. जात-पात के प्रपंच में नहीं पड़ना है
7. व्याभिचार नहीं करना है