आखिर ये ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री का बतंगड़ क्या है? सीएम बघेल के बयान के बाद इस चर्चा पर विराम लगेगा या इसे मिलेगी नई हवा

आखिर ये ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री का बतंगड़ क्या है? सीएम बघेल के बयान के बाद इस चर्चा पर विराम लगेगा या इसे मिलेगी नई हवा

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  • Publish Date - December 11, 2020 / 06:26 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:46 PM IST

रायपुरः प्रदेश में मुख्यमंत्री के ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले पर बिलासपुर में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव से पूछे गए सवाल के बाद लगातार बढ़ते घटनाक्रम से छत्तीसगढ़ का सियासी पारा गरमा गया है। कांग्रेस की सरकार बनते ही इस फॉर्मूले का शिगुफा रह-रह के सामने आता रहा है, लेकिन शुक्रवार को सीएम भूपेश बघेल ने बेबाकी के साथ शिगुफा छोड़ने वालों को सख्त लहजे में चेता दिया। ऐसे में सवाल ये है कि आखिर ये ढाई-ढाई साल का बतंगड़ क्या है। मुख्यमंत्री के बयान के बाद इस चर्चा पर विराम लगेगा या फिर इसे नई हवा मिलेगी।

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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का ये बयान उस सवाल पर आया है, जिसकी चर्चा इन दिनों की सूबे की सियासी गलियारों में सबसे ज्यादा है। जी हां पिछले कुछ महीनों सत्ता से जुड़े लोगों के बीच चर्चा होती रही है कि राज्य में मुख्यमंत्री का पद ढाई-ढाई साल के लिए दो नेताओं को देने का फॉर्मूला हाईकमान ने तय किया था। इसे लेकर विपक्ष भी लगातार सीएम और कांग्रेस हाईकमान से लगातार सवाल पूछ रहा था, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसका तीखा जवाब देते हुए ऐसे लोगों को छत्तीसगढ़ के विकास का विरोधी बताया..और गलतफहमी पैदा करने वाले लोगों को सचेत रहने की चेतावनी तक दे डाली।

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इधर, कांग्रेस में अंदरूनी कलह की बातों को हवा देती आई बीजेपी को ढाई साल के सीएम फॉर्मूले के सवाल पर, मुख्यमंत्री के तीखे रिएक्शन के बाद फिर लगता है कि इस बयान के बाद पार्टी में खींचतान बढ़ेगी। इस पर कांग्रेस आलाकमान को स्थिती साफ करनी चाहिए, जिस पर कांग्रेस ने पलटवार करते हुए खुद के घर में झांकने की नसीहत दी।

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एक तरफ भूपेश सरकार अपने 2 साल का कार्यकाल पूरा करने का जश्न मनाने की तैयारी में जुटी है। मंत्रियों को सरकार के कामों को जनता तक पहुंचाने की जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री के ढाई-ढाई साल वाले फार्मूले पर बहस छिड़ गई है। इस बहस में कई सवाल हैं, मसलन ढाई साल के फॉर्मूले की बात कौन याद दिला रहा है। क्या वाकई ऐसा कोई फार्मूला अमल में आएगा? क्या पार्टी के भीतर वाकई इसे लेकर कोई अंतरकलह है? क्या कोई है जो पार्टी को भीतर से कमजोर करना चाहता है? इस बहस का पटाक्षेप कब, कौन और कैसे करता है? ये सबसे अहम सवाल है…?

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