ऐसा गांव जहां है रावण का विशाल मंदिर, होती है पूजा, वाहनों, दुकानों और हाथों में लोग लिखवाते हैं ‘जय लंकेश’

ऐसा गांव जहां है रावण का विशाल मंदिर, होती है पूजा, वाहनों, दुकानों और हाथों में लोग लिखवाते हैं 'जय लंकेश'

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  • Publish Date - October 25, 2020 / 04:25 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:57 PM IST

विदिशा: देशभर में आज दशहरा का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। पूरे देश में ‘बुराई पर अच्छाई की जीत’ के इस पर्व पर रावण का पुतला दहन किया जा रहा है। वहीं, जब पूरा देश विजयादशमी पर जय श्रीराम के नारों से गूंजेगा, तो विदिशा का एक ऐसा गांव है जहां कल मातम मनाया जाता है, ये जानकर आपको थोड़ी हैरानी होगी। जी हां, यहां न सिर्फ रावण का मंदिर बनाकर उनको पूजा जाता है बल्कि लोग शरीर पर गेदना से जय लंकेश लिखवाते हैं। गांव के लोग अपने वाहनों और दुकानों पर भी जय लंकेश लिखवाते हैं। हैरान करने वाली बात यह भी है कि यहां कोई भी शुभ कार्य बिना रावण की पूजा के संपन्न नहीं होती।

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दरअसल ऐसी परंपरा विदिशा के नटेरन तहसील के रावण गांव में है। यहां के अधिकतर रहवासी कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं और रावण भी कान्यकुब्ज ब्राह्मण ही थे। इसलिए यहां के लोग रावण को अपना कूल देवता मानकर उनकी पूजा करते हैं। यहां ग्रामीणों ने रावण का एक मंदिर भी बनवाया है, जिसमें उनकी विशाल मूर्ति स्थापति की है। रावण गांव के लोग सदियों से रावण को पूजते आए हैं। रावण को यहां रावण बाबा कहा जाता है और बरसों से चली आ रही इस परम्परा को ग्रामीण निभाते चले आ रहे हैं। गांव में कोई भी सुभ कार्य या मांगलिक कार्य हो बिना रावण बाबा की पूजा के अधूरी मानी जाती है। विवाह के बाद वर वधु भी बिना रावण बाबा को प्रणाम किए घर में प्रवेश नहीं करते। इतना ही नहीं जो लोग गांव छोड़ कर चले गए हैं, वह भी कोई भी शुभ कार्य बिना रावण की आराधना के शुरू नहीं करते।

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रावण गांव निवासी माधवी का कहना है कि यहां पर रावण बाबा को कुलदेवता के रूप में माना जाता है। वह गांव के प्रथम पूज्य देवता भी है। शादियां होती हैं तो सबसे पहले तेल की रूई का फोहा उन्हीं को चढाया जाता हैं। अगर उन्हें नहीं पूजा जाता है तो विघ्न बाधा भी आ जाती है। यहां पर जो भी नया सामान चाहे कोई भी वाहन आदि खरीदते हैं उन सभी पर जय लंकेश लिखा जाता है। जबकि लोग नए सामान पर श्रीगणेश:नमः लिखते हैं, लेकिन हम लोग जय लंकेश लिखते हैं।

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रावन बाबा मंदिर के पुजारी पंडित नरेश तिवारी ने बताया कि यह सिद्ध मूर्ति है, जो चेतन अस्वथा में है। इनके बिना हामारा कोई सा भी काम पूरा नहीं होता है और इनके बिना कार्य करेंगे, तो वह काम सफल होता ही नहीं है। कोई सा भी वाहन खरीदे, तो यहां रखेंगे उसकी पूजा होगी तभी गांव मे उसका प्रवेश होगा। ऐसा ही शादी मे होता है, जब पहले यहां तेल नरियल अगरबत्ती से पूजा होगी। इनसे ही बोलकर शादी संपन्न होती हैं और अगर नहीं बोला तो शादी की कढ़ाई भट्टी तक गर्म नहीं होती है।

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