रायपुर: केंद्र में मोदी सरकार के 7 साल पूरे हो गए हैं। इसी के साथ वो देश के ऐसे चौथे प्रधानमंत्री बन गए हैं, जिन्होंने ये आंकड़ा पार किया और वो देश के पहले ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने हैं, जिन्होंने कार्यकाल के 7 साल पूरे किए। इस दौरान पीएम मोदी ने कई मील के पत्थर पार किए लेकिन आने वाला वक्त उनके सामने चुनौतियों के पहाड़ भी दिखा रहा है। मोदी सरकार के लिए कोरोना संकट से निपटना सबसे बड़ी चुनौती होगी। जाहिर है इस अहम पड़ाव पर सरकार के कामकाज की समीक्षा स्वाभाविक है। सवाल है कि कामकाज पर सरकार को कितने नंबर मिलेंगे? इस दौरान कितना बदला देश? साथ ही 7 साल में सरकार के लिए कितनी बदली चुनौतियां?
26 मई 2014 को नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने प्रधानमंत्री पद के लिए पहली बार शपथ ली, तो दूसरी बार 30 मई 2019 को शपथ ली। यानी मोदी सरकार को सत्ता में आए सात साल पूरे हो गए। जाहिर सी बात है कि बीजेपी के लिए ये गर्व की बात है। मोदी सरकार के सात साल पूरे होने पर बीजेपी ने जश्न तो नहीं मनाया, लेकिन पार्टी ने सेवा दिवस के रूप में इस मनाने का फैसला लिया।
मोदी सरकार के सात बरस, बेशक सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए ये उपलब्धियों और संतुष्टि से भरा वक्त है, लेकिन विपक्ष इससे कतई इत्तेफाक नहीं रखता। वो केंद्र की नीतियों पर लगातार सवाल उठा रहा है, कामकाज को लेकर आरोप मढ़ रहा है। पहले मन की बात में पीएम नरेंद्र मोदी को सुनिये..उन्होंने अपने सात साल पूरे होने पर क्या कहा। मन की बात में पीएम मोदी ने पूरे मन से अपने सरकार की सात साल की उपलब्धियों का जिक्र किया, तो दूसरी ओर कांग्रेस ने मोदी सरकार को देश के लिए हानिकारक बता दिया।
पिछले सात सालों में देश ने बहुत कुछ देखा, परखा और समझा, जिसे मोदी सरकार अपने पक्ष में कर रही है, तो विपक्ष इसे देश के लिए नाकामी बता रहा है। हालांकि इसका अंतिम फैसला करने का हक देश की जनता के पास है। बहरहाल एक ओर बीजेपी सात साल को उपलब्धि मानकर अपना पीठ थपथपा रही है तो विपक्ष इसे विरोध दिवस तो काला दिवस के तौर पर मना रहा है। भोपाल और इंदौर में कांग्रेस सड़कों पर उतरी, तो रायपुर में पोस्टर लगाकर केंद्र सरकार से हिसाब मांगने का अभियान कांग्रेस ने शुरू किया। इसके अलावा भूपेश सरकार के 6 मंत्रियों ने प्रेस कान्फ्रेंस कर मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा।
मोदी सरकार के कार्यकाल पर कांग्रेस ने सवाल उठाए तो, बीजेपी ने भी मोर्चा खोलने में देरी नहीं लगाई। कुल मिलाकर मामला अपनी ढपली, अपना राग वाला है। हकीकत तो ये है कि मोदी सरकार अपने सात साल का सफर पूरा कर चुकी है। इस दौरान उसने अच्छे दिन से आत्मनिर्भर भारत का नारा देकर कई मील के पत्थर पार किए, लेकिन साल साल के आगे कई चुनौतियां भी हैं। कोरोना की दूसरी लहर के प्रबंधन को लेकर घिरी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी तीसरी लहर से निपटने की। गलवान घाटी में भले उसने अपनी कूटनीति का परिचय दिया, लेकिन रोजगार, महंगाई और इकॉनमी के मोर्चे पर वो विपक्ष के निशाने है। बंगाल में बीजेपी की हार ने भी मोदी की लोकप्रियता और उनकी क्रेडिबिलिटी को लेकर सवाल खड़े किए, लेकिन दूसरी ओर विपक्ष को भी ये सच्चाई माननी होगी कि जनता ने दूसरी बार प्रचंड बहुमत देकर सत्ता की बागडोर सौंपी थी। हालांकि मोदी सरकार को विपक्ष के उन चुभते सवालों का जवाब भी देना होगा जिसके प्रति वो उत्तरदायी है।