रिपोर्ट- राजेश राज के साथ सौरभ सिंह परिहार, रायपुर: Truth of Jhiram Kand जीरम नक्सल हमले का सच आखिर है क्या? क्या इसमें कोई सियासी षडयंत्र भी था? क्या इसमें वाकई सभी दोषियों पर शिकंजा कस सका है? क्योंकि जब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिलेगा तब तक पूरे इंसाफ की उम्मीद करना बेमानी है। एक बार फिर जांच को लेकर कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने हैं।
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Truth of Jhiram Kand छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री शिव डहरिया ने प्रेस कांफ्रेस कर भाजपा पर बड़ा और गंभीर आरोप लगाया कि भाजपा चाहती ही नहीं है कि जीरम का सच सामने आए। शुरू में भाजपा ने NIA जांच में रोड़ अटकाया और अब जब राज्य सरकार जस्टिस मिश्रा आयोग का कार्यकाल आगे बढ़ाकर 8 नए बिंदुओं पर जांच कराना चाहती है, तो नेता प्रतिपक्ष हाईकोर्ट जाकर जांच रुकवाने में लग गए।
इधर, मंत्री डहरिया के आरोपों पर नेता प्रतिपक्ष कौशिक ने पलटवार में कहा है कि आखिर भाजपा के कोर्ट जाने से कांग्रेस में इतनी घबराहट क्यों हैं? भाजपा का आरोप है कि राज्य सरकार ने आयोग के प्रतिवेदन का परीक्षण ही नहीं किया है तो किस आधार पर जांच अधूरी बताई जा रही है।
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दरअसल, 25 मई 2013 को झीरम नक्सली हमला हुआ था। 28 मई को जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग बना, जिसे 3 महीने में जांच रिपोर्ट देनी थी लेकिन 9 साल बाद आयोग ने जो रिपोर्ट सौंपी उसे अधूरा माना गया। 21 जनवरी 2021 में कांग्रेस सरकार ने 8 नए जांच बिंदु के साथ जांच आगे बढ़ाई, फिर 9 नवंबर को आयोग ने अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को सौंप दी। इसे भूपेश सरकार ने अधूरी रिपोर्ट मानकर जस्टिस अग्निहोत्री और जस्टिम मिन्हाजुद्दीन को सदस्य बनाकर 8 बिंदुओं पर जांच जारी रखवाने का ऐलान किया। सरकार के इसी कदम को नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने असंवैधानिक बताते हुए हाइकोर्ट में इसके खिलाफ अपील की है, जिस पर संग्राम छिड़ गया है। बड़ा सवाल ये कि आखिर सच है क्या और कौन इसे छिपाना चाहता है?
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