रायपुर: आज ही के दिन ठीक 10 साल पहले 25 मई 2013 को माओवादी अपना इतिहास बदलने वाले थे। माओवादियों का पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एक ऐसे हमले को अंजाम देने वाला था जिसकी गूंज न सिर्फ भारत में बल्कि दुनियाभर में सुनाई देने वाले थी। नापाक मंसूबो के साथ नक्सलियों ने अपनी इस साजिश को पूरी तरह अंजाम भी दिया। (Jhiram Ghati Naxal Attack madavi hidma) उन्होंने कांग्रेस की टॉप स्टेट लेडरशियप को ही छत्तीसगढ़ राज्य से ख़त्म कर दिया। इस तरह माओवादियों के लाल किताब में एक और खूनी कहानी हमेशा के लिए दर्ज हो गई।
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25 मई 2013 को सुकमा के झीरम घाटी में माओवादियों ने देश के सबसे नक्सल घटना को अंजाम दिया था। उन्होंने प्रवर्तन यात्रा से लौट रहे कांग्रेस के काफिले को अपना निशाना बनाया। बीच जंगल में उनका रास्ता रोका और हर किसी पर अंधाधुन गोलियां बरसाईं। इस हमले में 30 लोगों ने अपनी जान गँवा दी। नक्सलियों नेबस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा, तब के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल और वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल की भी हत्या कर दी। इसके अलावा बड़ी संख्या में पुलिस के जवान और स्थानीय कांग्रेस नेता भी इस हमले में शहीद हुए थे।
माड़वी हिड़मा था मास्टरमाइंड
हिड़मा जिसका पूरा नाम माड़वी हिड़मा है। कई और नामों से भी जाना जाता है ,हिड़मा उर्फ संतोष उर्फ इंदमुल उर्फ पोडियाम भीमा। मोस्ट वांटेड की सूची में टॉप इस नक्सली की कद काठी कोई खास आकर्षक नही। बल्कि यह कद में नाटा और दुबला-पतला है, जैसा कि सुरक्षा बलों के पास उपलब्ध पुराने फोटो में दिखाई देता है। ये बात अलग है कि बस्तर के माओवादी आंदोलन में शामिल स्थानियों की तुलना में उसका माओवादी संगठन में कद काफी बड़ा है… (Jhiram Ghati Naxal Attack madavi hidma) वर्ष 2017 में अपने बलबूते और रणनीतिक कौशल के साथ नेतृत्व करने की क्षमता के कारण सबसे कम उम्र में माओवादियों की शीर्ष सेन्ट्रल कमेटी का मेम्बर बन चुका है। माओवादियों के इस आदिवासी चेहरे को छोड़कर नक्सलगढ़ दण्डकारण्य में बाकी कमाण्डर्स आंध्रप्रदेश या अन्य राज्यों के हैं।
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हालाँकि माड़वी हिड़मा ने अपने युद्ध कौशल की परीक्षा तभी पास कर ली थी जब उसने करीब तीन सौ नक्सलियों के साथ झीरम के नरसंहार को अंजाम दिया था। जी हाँ ख़ुफ़िया सूत्रों, पुलिस और आत्मसमर्पित नक्सलियों की माने तो झीरम हमले का मास्टरमाइंड कोई और नहीं बल्कि खुद माड़वी हिड़मा था। उसके ही नेतृत्व में इस पूरी साजिश को अंजाम दिया गया।
कौन हैं हिड़मा?
आखिर हिड़मा कैसे यहां तक पहुंचा ,इस सवाल का जबाब वो इलाका है ,जहां से वो आता है। हिड़मा का गांव पुवर्ती बताया जाता है, जो सुकमा जिले के जगरगुण्डा जैसे दुर्गम जंगलों वाले इलाके में स्थित है। यह गांव जगरगुण्डा से 22 किलोमीटर दूर दक्षिण में है, जहां पहुंचना बहुत मुश्किल है। ये वो इलाका है,जहां पिछले 15-20 सालों से स्कूल नहीं लगा है। यहां सिर्फ नक्सलियों की जनताना सरकार का शासन चलता है। नक्सलियों ने यहां अपने तालाब बनवाये हैं, जिनमें मछली पालन होता है, गांवों में सामूहिक खेती होती है। हिड़मा की उम्र यदि 40 साल के आसपास भी मान ली जाए, तो वो ऐसे समय और स्थान पर पैदा हुआ,जहां उसने सिर्फ माओवादियों और उनके शासन को देखा और ऐसे ही माहौल में वो पला-बढ़ा और पढ़ा। (Jhiram Ghati Naxal Attack madavi hidma) हालांकि वो सिर्फ 10 वीं तक ही पढ़ा है,लेकिन अध्ययन की उसकी आदत ने उसे फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने में अभ्यस्त बना दिया, अंग्रेजी साहित्य के साथ माओवादी और देश-दुनिया की जानकारी हासिल करने में उसकी खासी रुचि है।
वर्ष 1990 में मामूली लड़ाके के रुप में माओवादियों के साथ जुड़ने वाला यह आदिवासी सटीक रणनीति बनाने और तात्कालिक सही निर्णय लेने की क्षमता के कारण बहुत ही जल्दी एरिया कमाण्डर बन गया था। वर्ष 2010 में ताड़मेटला में सीआरपीएफ को घेरकर 76 जवानों की जान लेने में भी हिड़मा की मुख्य भूमिका रही। इसके 3 साल बाद 2013 में जीरम हमले में कांग्रेस के बड़े नेताओं सहित 31 लोगों की जान लेने वाली नक्सली घटना में भी हिड़मा शामिल था। वर्ष 2017 में बुरकापाल में हमला कर सीआरपीएफ के 25 जवानों की शहादत का जिम्मेदार भी इसी ईनामी नक्सली को माना जाता है। खुद ए के -47 रायफल लेकर चलने वाला हिड़मा चार चक्रों की सुरक्षा से घिरा रहता है।