रायपुरः छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण के मामले कम होने का नाम नहीं ले रहा है। बस्तर-सरगुजा के साथ-साथ अब मैदानी इलाकों से ही ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। चंगाई सभा करके मतांतरण के प्रयासों में तेजी आ गई है। इससे भाई-भाई में मनमुटाव और सास-बहू के बीच झगड़े की नौबत आ गई है। धर्मांतरण के चक्कर में धमतरी और बालोद जैसे जिलों में लोगों की मौत तक हो गई है। लगातार बढ़ते मामलों के बाद छत्तीसगढ़ सरकार धर्म स्वातंत्र्य कानून बनाने जा रही है। इसमें धर्मांतरण रोकने के लिए कई अहम प्रावधान किए जा रहे हैं। इस कानून के ड्राप्ट को अब अंतिम रूप देने की तैयारी की जा रही है।
प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से मानता हूं कि कठोर कानून बनने चाहिए। धर्म व्यक्ति की अर्जित संपत्ति नहीं है। यह पीढ़ियों से प्राप्त संस्कार, आस्था ,जीवन जीने की पद्धति है। धर्मांतरण रोकने कड़े कानून बनने चाहिए। बता दें कि वर्तमान में बस्तर-सरगुजा जैसै आदिवासी इलाकों में आर्थिक प्रलोभन लेकर धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। आदिवासी इलाकों के लोग भी आसानी से धर्मांतरण कराने वालों की बात में आकर अपना धर्म बदल रहे हैं, लेकिन अब प्रदेश में ऐसा करना आसान नहीं होगा। दरअसल, साय सरकार धर्म स्वातंत्र्य कानून बनाने जा रही है। धर्मांतरण की पूरी प्रक्रिया को एक नियम के दायरे में लाया जा रहा है। इस नियम के बाहर जाकर कोई धर्म बदलेगा तो उसको कानूनी मान्यता नहीं दी जाएगी। इसके अलावा प्रलोभन या दबाव डालकर धर्म परिवर्तन करने वाले को दोषी मानते हुए उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों में धर्मांतरण को लेकर पहले ही कानून बनाया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार अपने कानून के प्रावधानों को लेकर दूसरे राज्यों के कानून का भी अध्ययन कर रही है। उत्तर प्रदेश में 2020 और उत्तराखंड में 2018 में धर्मांतरण रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं, दोनों ही राज्यों में धोखे या लालच के जरिए धर्म परिवर्तन करवाने पर 10 साल की कैद और 15 से 50 हजार जुर्माने की व्यवस्था की गई है, ओडिशा पहला राज्य है जहां धर्मांतरण के खिलाफ सबसे पहले 1967 में कानून बनाए गए थे, वहीं झारखंड में 3 साल कारावास या 50000 रुपए जुर्माना या दोनों हो सकता है, ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार इन राज्यों के प्रावधानों का अध्ययन कर रही है।
छत्तीसगढ़ में इससे पहले भी धर्मांतरण रोकने कानून बनाने की कोशिश की गई, लेकिन सफलता नहीं मिली। 2006 में तत्कालीन गृहमंत्री रामविचार नेताम ने विधानसभा में धर्मांतरण पर कानून लाया था लेकिन उस समय के राज्यपाल ने इसको मंजूरी नहीं दी और पूरे विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज दिया था। यह कानून अभी भी राष्ट्रपति के पास है। इस कारण राज्य में नए सिरे से धर्मांतरण पर अंकुश के लिए कानून बनाने की प्रक्रिया हाथ में ली गई है।