रायपुर। सरगुजा क्षेत्र में धर्मांतरण हमेशा से एक बड़ी समस्या रहा है, इसे रोकना हमेशा से प्रशासन के लिए एक चैलेंज रहा है। पहले धर्मांतरण को लेकर बीजेपी, कांग्रेस सरकार पर गंभीर आरोप लगाती रही है लेकिन अब सरकार बदलने के बाद भी धर्मांतरण थमा नहीं है। नतीजा, दो समुदाय एक दूसरे के सामने खड़े दिख रहे हैं। सरगुजा के एक गांव में एक चर्च के निर्माण को लेकर ग्रामीण विरोध में सड़कों पर उतरे हैं। ज्ञापन देकर निर्माण रोकने की मांग कर रहे हैं। ऐसा ना हुआ तो आगे बड़े विरोध की तैयारी है। सवाल है क्या इलाके में वाकई धर्मांतरण को लेकर परदे के पीछे बड़ा खेल जारी है ? क्या धर्मांतरण पर प्रशासन का, सरकार का अंकुश नहीं है ?
सरगुजा जिले का दूरस्थ गाव अरगोती में ग्रामीणों ने गांव में बन रहे चर्च के विरोध में मोर्चा खोलते हुए, इस पर रोक लगाने उदयपुर SDM को ज्ञापन सौंपा। इस मुखर विरोध के पीछे ठोस वजह भी है। दरअसल, जनजाति सुरक्षा मंच का दावा है कि अरगोती गांव में आधिकारिक तौर पर एक भी ईसाई नहीं है, बावजूद इसके गांव में पहले से 3 चर्च हैं और चौथा निर्माणाधीन है। सवाल ये कि जब इसाई समुदाय का कोई निवासी ही नहीं है तो फिर 4-4 चर्च क्यों? दूसरा जिस विशप सैम्युल मैथ्यू के नाम जमीन खरीदकर चर्च बन रही है वो गांव, ब्लाक, जिला या प्रदेश तक का निवासी नहीं है तो फिर वो सरगुजा के इस वनांचल में चर्च क्यों बनवा रहा है।
सबसे बड़ी बात ये कि पांचवी अनुसूचि क्षेत्र में आने वाले इस इलाके में इस धार्मिक निर्माण के लिए नियम के मुताबित ग्राम सभा अनिवार्य अनुमति भी नहीं ली गई। चर्च का विरोध कर रहे ग्रामीणों का कहना है कि अगर SDM स्तर पर रोक ना लगी तो वो कलेक्टर-कमिश्नर दफ्तर तक घेराव करेंगे। मामले पर सियासत भी शुरू हो चुकी है। कांग्रेस का आरोप है कि धर्मांतरण पर पिछली कांग्रेस सरकार को घेरने वाली बीजेपी के शासनकाल में स्वयं मुख्यमंत्री के इलाके में ग्रामीणों को धर्मांतरण रोकने मोर्चा संभालना पड़ रहा है। जवाब में भाजपा का आरोप है कि ये सब कांग्रेस शासनकाल की ही दे है।
वैसे, ये सच है कि अरगोती गांव के अलावा लखनपुर, लुंड्रा, उदयपुर, सीतापुर इलाकों में भी लगातार धर्मांतरण के मामले सर्वाधिक सामने आते रहे हैं, जिसके खिलाफ प्रशासन वक्त-वक्त पर कार्रवाई के दावे करता है। लेकिन, अरगोती में बने हालात से साफ है कि अब भी लोगों को बड़े स्तर पर धर्मांतरण का डर है। इसके लिए फिर से कड़े कानून बनाने की दलील दी जा रही है। लेकिन, सवाल ये है कि अगर इतनी सख्ती, इतनी मुस्तैदी है तो फिर ग्रामीणों को धर्मांतरण का खौफ क्यों है, क्यों उन्हें मुठ्ठियां तानकर, सड़क पर उतरकर खुद मोर्चा संभालना पड़ रहा है।