Nandkumar Sai latest News: भाजपा के दिग्गज आदिवासी नेता नंदकुमार साय को कौन नहीं जानता? छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण से लेकर अब तक नंदकुमार साय हमेशा से सियासी सुर्ख़ियों में बने रहे हैं। अपनी बेबाकी और अलग अंदाज के लिए पहचान बनाने वाले नंदकुमार हमेशा से विपक्षी नेताओं के लिए चुनौती पेश करते रहे हैं। राजनीती में उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंदी रहने वाले नेताओ में शुमार थे छत्तीसगढ़ राज्य के पहले मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी। हालांकि ऐसा नहीं हैं की वह प्रतिद्वंदियों के लिए ही मुश्किल खड़ा करते रहे हैं। नंदकुमार की पहचान एक बगावती नेता के रूप में रही। उनके बगावती तेवर की चर्चा इसलिए क्योंकि अक्सर वो अपनी ही पार्टी भाजपा और उनके नेताओं के खिलाफ भी आवाज उठाते रहे हैं। राज्य निर्माण के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव में वह मुख्यमंत्री के दावेदार भी रहे लेकिन तकदीर ने उनका साथ नहीं दिया। शायद नंदकुमार को हमेशा से इस बात की टीस भी रही। बहरहाल आज हम जानेंगे नंदकुमार साय के बारे में कुछ ऐसी बातें जिससे आज भी लोग अंजान हैं।
Nandkumar Sai latest News: नंदकुमार साय का जन्म मौजूदा जशपुर जिले के भगोरा में किसान परिवार में 1 जनवरी 1946 को हुआ था। नंदकुमार का झुकाव हमेशा से साहित्य की तरफ रहा। हिंदी लेखन, पठन में उनकी विशेष रूचि रही हैं। नंदकुमार साय उन नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने मुख्यधारा की सियासत से पहले छात्र राजनीति की और इसी के जरिये वह आदिवासियों के बड़े नेता भी बने। बताया जाता हैं की कॉलेज के दिनों में नंदकुमार साय छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे हैं। इसके बाद उन्होंने सरकारी नौकरी की तैयारी की और 1973 में नायब तहसीलदार के पद पर चयनित भी हुए लेकिन नौकरी पर नहीं गए। इसकी जगह उन्होंने समाज सेवा के जरिए राजनीति में जाना चुना। 1977 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीते, 1985 दूसरी बार और तीसरी बार 1998 में विधानसभा चुनाव जीते।
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Nandkumar Sai latest News: नंदकुमार सहाय 1989 में लोकसभा सांसद बने और 1996 में दूसरी बार और 2004 में राज्य गठन के बाद तीसरी बार लोकसभा सांसद बने। इसके बाद नंदकुमार साय का सियासी सफर आगे बढ़ा और 2009 में राज्यसभा के सांसद के लिए चुने गए। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में नंदकुमार साय को 2017 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। यह नंदकुमार के राजनीतिक जीवन का नया उभार था क्योंकि राज्य की राजनीति में अब वह उतने प्रासंगिक नहीं रह गए थे।
इन सबके अलावा आनंदकुमार अविभाजित मध्यप्रदेश में भी भाजपा के कई बड़े पदों पर रहे। 1996 में मध्यप्रदेश अनुसूचित जनजाति के प्रदेश अध्यक्ष बने इसके बाद पार्टी ने 1997 से 2000 के बीच मध्यप्रदेश बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी उन्हें सौंपी गई। यह पार्टी के भीतर उनके कद का ही कमाल था की 2000 में जब छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश से अलग हुआ तो नंदकुमार साय राज्य के विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता भी बने।