Mahamaya Mandir: अनसुलझे रहस्यों से भरा है यहां का चमत्कारी महामाया मंदिर, नवरात्र में देश ही नहीं विदेशों से भी दर्शन आते हैं भक्त... | Mahamaya Temple

Mahamaya Mandir: अनसुलझे रहस्यों से भरा है यहां का चमत्कारी महामाया मंदिर, नवरात्र में देश ही नहीं विदेशों से भी दर्शन आते हैं भक्त…

Mahamaya Temple: अनसुलझे रहस्यों से भरा है यहां का चमत्कारी महामाया मंदिर, नवरात्र में देश ही नहीं विदेशों से भी दर्शन आते हैं भक्त...

Edited By :   Modified Date:  April 10, 2024 / 04:28 PM IST, Published Date : April 10, 2024/4:28 pm IST

Mahamaya Temple: सुप्रिया पांडेय/रायपुर। सनातन धर्म में माता दुर्गा जिन्हें आदिशक्ति जगत जननी जगदम्बा भी कहा जाता है, भगवती के नौ मुख्य रूप है जिनकी विशेष पूजा व साधना की जाती हैं। नवरात्रि के दौरान मां की विशेष आराधना से भक्तों को मनचाहा फल भी मिलता है। मां दुर्गा को पापों की विनाशिनी कहा जाता है। भक्तों के पापों की मुक्ति मां महामाया के दर्शन से भी मिलती हैं। रायपुर के पुरानी बस्ती में मां महामाया का मंदिर करीब 1300 साल पुराना हैं। सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि विदेशों से भी भक्तों की आस्था इस मंदिर से जुड़ी हैं।

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देश के दूसरे जागृत देवी स्थलों की तरह महामाया मंदिर के साथ भी चमत्कारों की कई बातें जुड़ी हुई हैं। यहां विशेष मौकों पर कई बार ऐसी घटनाएं होती रही हैं, जिन्हें सामान्य अर्थों में अलौकिक कहा जा सकता है। भक्तों का मानना है कि जो मां महामाया के दरबार में आता है। देर-सबेर उसकी फरियाद मां जरूर सुनती है। मंदिर में कई ऐसे भी श्रद्धालु हैं जो कई सालों से मंदिर में दर्शन के साथ ही अपने दिन की शुरुआत करते हैं। महामाया मंदिर में आस्था रखने वाले मानते हैं कि मंदिर परिसर में पैर रखने के साथ ही लोग यहां के आध्यात्मिक माहौल से ओत-प्रोत हो जाते हैं। यहां की फिजाओं में ऐसा आध्यात्म घुला है जिससे दुख-तकलीफ और तनाव यहां आते ही छूमंतर हो जाता है।

मंदिर का निर्माण छत्तीसगढ़ के हैहयवंशी राजाओं के साम्राज्य में हुआ था। मां महामाया देवी हैहयवंशी राजवंश की कुल देवी हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ में इन्होंने 36 किले का निर्माण कराया जहां-जहां राजा किले का निर्माण कराते गए। वहां पर शक्तिपीठ मां महामाया देवी के मंदिर का भी निर्माण करवाया। कहा जाता है कि एक बार राजा मोरध्वज अपनी रानी कुमुद्धती देवी के साथ राज्य भ्रमण पर निकले शाम होने पर राजा अपनी सेना के साथ खारून नदी के तट पर रूक गए। जब रानी अपनी दासियों के साथ स्नान करने नदी पहुंची तो उन्होंने देखा कि एक पत्थर का टिला पानी में तैर रही है तीन विशालकाय सांप फन काढ़े उस टिले की रक्षा कर रहे थे। ये देखकर रानी और दासियां डर गई और चिल्लाते हुए पड़ाव में लौट आईं। जब राजा मोरध्वज को ये बात पता चली तो उन्होंने अपने राज ज्योतिषों से विचार करवाया। ज्योतिषों ने उन्हें बताया कि ये कि ये कोई टिला नहीं बल्कि देवी की मूर्ति है।

राजा ने पूरे विधि विधान से पूजा-पाठ कर मूर्ति को बाहर निकाला। जब मूर्ति नदी से बाहर निकली तो लोग ये देखकर आश्चर्य हो गए कि ये कोई साधारण मूर्ति नहीं बल्कि सिंह पर खड़ी हुई मां भगवती की मूर्ति है। मंदिर को लेकर यह भी कहा जाता है कि स्वयं मां महामाया ने ही राजा से कहा कि मुझे कंधे पर उठाकर मंदिर तक ले जाया जाए और मंदिर में मेरी स्थापना कराई जाए। राजा ने अपने पंडितों, आचार्यों व ज्योतिषियों से विचार विमर्श किया। सभी ने सलाह दी कि भगवती माँ महामाया की प्राण-प्रतिष्ठा की जाए तभी जानकारी मिली कि पुरानी बस्ती क्षेत्र में एक नये मंदिर का निर्माण किया गया है। राजा ने उसी मंदिर को तैयार करवाकर महामाया शक्तिपीठ की प्राण प्रतिष्ठा करवाई।

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Mahamaya Temple: मंदिर के समृद्ध पौराणिक इतिहास और मान्यताओं के साथ ही इसकी बनावट की भव्यता और कारीगरी भी बेजोड़ है। तंत्र-मंत्र साधना के लिए भी राजधानी के इस मंदिर का प्रदेश के शक्तिपीठों में विशेष स्थान है। मंदिर प्रांगण में एक यज्ञ कुंड है। मंदिर के दूसरे हिस्से की तरह ही इस कुंड का भी अपना इतिहास है। ऐसी मान्यता है कि कई साल पहले इस कुंड की जगह पर ही मंदिर के पुजारी के ऊपर बिजली गिर गई थी। लेकिन पुजारी को कुछ नहीं हुआ। लोग इसे मां महामाया की कृपा मानते है।

 

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