रायपुर। शारदीय नवरात्रि के नौ दिन पूरे हो चुके हैं। अब वो वक्त आ गया है जब लोगों माता के नम आंखों से विदाई देंगे। हालांकि कई जगहों पर नवें दिन ही माता का विसर्जन किया जाता है। लेकिन कई जगहों पर दशहरे के दिन माता की विदाई की जाती है। आज दशहरा का पावन पर्व है। आज के दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में माना जाता है। इसी बीच आज हम एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो सिर्फ दशहरे के दिन ही खुलता है। हम बात कर रहे हैं रायपुर स्थित प्राचीन कंकाली मठ की।
मां कंकाली का दरबार सिर्फ एक दिन के लिए खुलता है। यहां दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। मठ की ख्याति की वज़ह उसकी स्थापना और उसके पीछे जुडी कहानीयां है। शहर को बेहतर जानने वाले बुजुर्गों के मुताबिक कंकाली मठ में 13वीं से 17वीं शताब्दी तक माँ कंकाली की पूजा अर्चना की जाती थी। इस मठ में देवी कंकाली की पूजा अर्चना केवल नागा साधु करते थे। बताया ये भी जाता है कि नागा साधुओं ने ये मठ और देवी की स्थापना विशेष तंत्रसाधना के लिए ही की थी।
17वीं शताब्दी में माँ कंकाली के भव्य मंदिर का निर्माण हुआ, जिसके बाद कंकाली माता की प्रतिमा को मंदिर में स्थापित किया गया। हालांकि मठ में देवी माँ के और नागा साधुओं के हज़ारों साल पुराने अस्त्र-शस्त्र भी रखे है। यहाँ रखे गए शस्त्रों में तलवार, फरसा, भाला, ढाल, चाकू, तीर-कमान है, जो की हजारों साल पुराने हैं। कंकाली मठ के पुजारीयों ने बताया ऐसी किवदंती है कि “शारदीय नवरात्र में माँ कंकाली असुरों का संहार करने और अपने भक्तों की विभिन्न स्वरूपों में दर्शन देती है। दसवें दिन यानी नवमी की देर रात से ही वे कंकाली मठ में पहुंचकर विश्राम करतीं है। इस लिहाज़ से भी केवल विजयदशमी के दिन ही कंकाली मठ के दरवाजे सभी भक्तों के लिए भी खोले जाते है।