Chhattisgarhi Olympic Games in Hareli festival

कका बनीस सियान… हरेली तिहार ल मिलिस पहिचान! भूपेश सरकार ने दिलाई छत्तीसगढ़ के सबसे पहले त्योहार ‘हरेली’ को पहचान

Chhattisgarhi Olympic Games in Hareli festival मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की विशेष पहल पर लोक महत्व के हरेली पर्व पर सार्वजनिक अवकाश

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Modified Date: July 16, 2023 / 11:48 AM IST
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Published Date: July 16, 2023 11:48 am IST

Chhattisgarhi Olympic Games in Hareli festival : रायपुर। अति सूंदर और मनमोहक छत्तीसगढ़ राज्य प्राकृतिक सुंदरता से सराबोर है और यहां शहरी और ग्रामीण जीवन का एक अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है। छत्तीसगढ़ मध्य भारत की सांस्कृतिक भव्यता का केंद्र है और ये यहां के लोगों की सभ्यता और प्रदेश के हरेली एवं तीज त्यौहार में झलकता है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति और लोक परंपराओं को संरक्षित करने की दिशा में भूपेश सरकार लगातार प्रयास किए जा रही है। जैसा कि आप सभी जानते हैं छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है। यहां ग्रामीण अपने फसलों को देवता की तरह पूजते हैं। किसान अपने कृषि कार्य, फसलों की उपज और अन्न के सम्मान के लिए विशेष तरह की पूजा करते हैं। देखा जाए तो किसानों के लिए ये किसान लोक हरेली पर्व नए वर्ष का प्रथम तिहार होता है।

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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की विशेष पहल पर लोक महत्व के हरेली पर्व पर सार्वजनिक अवकाश भी घोषित किया गया है। इससे छत्तीसगढ़ की संस्कृति और लोक पर्वों की महत्ता भी बढ़ी है। लोक संस्कृति इस पर्व में अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने के लिए छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की भी शुरूआत की जा रही है। सीएम बघेल हरेली पर्व के दिन से ही छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वकांक्षी योजना गोधन न्याय योजना की शुरुआत की थी। इस हरेली तिहार से छत्तीसगढ़ को नई पहचान मिली है। ये तिहार प्रदेश का लोकप्रिय त्यौहार है। इस दिन पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में विभिन्न एवं अनेक कार्यक्रम भी देखने को मिलते हैं। सीएम भूपेश बघेल की पहल से छत्तीसगढ़ की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए खेलकूद को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।

हरेली पर्व पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की विशेष पहल

भूपेश सरकार इस पर्व के लिए विशेष सुविधांए उपल्बध कराई है। जहां पहले प्रदेश के गांव में अक्सर हरेली तिहार के पहले बढ़ई के घर में गेड़ी का ऑर्डर रहता था और बच्चों की जिद पर अभिभावक जैसे-तैसे गेड़ी भी बनाया करते थे। शहरों तक इस गेड़ी की पहुंच नहीं हो पा रही थी लेकिन अब भूपेश सरकार द्वारा वन विभाग के सहयोग से सी-मार्ट में गेड़ी किफायती दर पर उपलब्ध कराया गया है, ताकि बच्चे, युवा गेड़ी चढ़ने का अधिक से अधिक आनंद ले सके। मुख्यमंत्री की पहल पर पिछले वर्ष शुरू की गई छत्तीसगढ़िया ओलंपिक को काफी लोकप्रियता मिली। इसको देखते हुए इस बार हरेली तिहार के दिन शुरू होने वाली छत्तीसगढ़िया ओलंपिक 2023-24 को और भी रोमांचक बनाने के लिए एकल श्रेणी में दो नए खेल रस्सीकूद एवं कुश्ती को भी शामिल किया गया है।

हरेली पर्व के दिन से ही प्रदेश में छत्तीसगढ़िया ओलंपिक खेल की शुरूआत भी होने जा रही है, जो सितंबर के अंतिम सप्ताह तक जारी रहेगा। हरेली पर्व के दिन पशुधन के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए औषधियुक्त आटे की लोंदी खिलाई जाती है। गांव में यादव समाज के लोग वनांचल जाकर कंदमूल लाकर हरेली के दिन किसानों को पशुओं के लिए वनौषधि उपलब्ध कराते हैं। गांव के सहाड़ादेव अथवा ठाकुरदेव के पास यादव समाज के लोग जंगल से लाई गई जड़ी-बूटी उबाल कर किसानों को देते हैं। इसके बदले किसानों द्वारा चावल, दाल आदि उपहार में देने की परंपरा रही हैं।

सीएम भूपेश ने छत्तीसगढ़िया ओलंपिक खेलों को दिया महत्व

भूपेश सरकार की विशेष पहल से हरेली तिहार के दिन शुरू होने वाली छत्तीसगढ़िया ओलंपिक 2023-24 को और भी रोमांचक बनाने के लिए एकल श्रेणी में दो नए खेल रस्सीकूद एवं कुश्ती को भी शामिल किया गया है। इस बार 16 तरह की खेलों में स्पर्धाएं आयोजित होंगी, जिसमें दलीय एवं एकल श्रेणी में छत्तीसगढ़िया लोक-संस्कृति मंच रचे-बसे 8-8 तरह के खेलों को शामिल किया गया है। लगभग 2 महीने 10 दिन तक चलने वाली इस प्रतियोगिता का समापन 27 सितंबर को होगा।

छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक में दलीय श्रेणी में गिल्ली डंडा, पिट्टूल, संखली, लंगड़ी दौड़, कबड्डी, खो-खो, रस्साकसी और बांटी (कंचा) जैसी खेल विधाएं शामिल की गई हैं। वहीं एकल श्रेणी की खेल विधा में बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी दौड़, भंवरा, 100 मीटर दौड़, लम्बी कूद, रस्सी कूद एवं कुश्ती शामिल हैं। विशेष रूप से गेड़ी खेल को ज्यादा महत्व दिया जाता है। इसे काफी हर्षोल्लास के साथ खेला जाता है।

छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की शुरूआत

लोक संस्कृति और कला को बढ़ावा देने के बाद अब छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खेलों को वैश्विक पहचान दिलाने की कवायद शुरू हो गई है। इसके लिए छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़िया ओलंपिक की शुरूआत हुई है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति, सभ्यता और विशिष्ट पहचान यहां की ग्रामीण परंपराओं और रीति रीवाजों से है। इसमें पारंपरिक खेलों का विशेष महत्व है। पिछले कुछ वर्षों में छत्तीसगढ़ के इन खेलों को लोग भूलते जा रहे थे। खेलों को चिरस्थायी रखने, आने वाली पीढ़ी से इनको अवगत कराने के लिए छत्तीसगढ़ियां ओलंपिक खेलों की शुरूआत की गई है।

हरेली तिहार से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

हरेली प्रति वर्ष सावन महीने के अमावस्या में मनाया जाता है। हरेली का मतलब हरियाली होता है। यह तिहार प्रकृति को और खेती को समर्पित है। वर्षा ऋतु में धरती हरा चादर ओढ़ लेती है। वातावरण चारों ओर हरा-भरा नजर आने लगता है। हरेली पर्व आते तक खरीफ फसल आदि की खेती-किसानी का कार्य लगभग हो जाता है। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धोकर, धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ का चीला भोग लगाया जाता है। गांव के ठाकुर देव की पूजा की जाती है और उनको नारियल अर्पण किया जाता है।

हरेली तिहार के पहले तक किसान अपनी फसलों की बोआई या रोपाई का काम पूरा कर लेते हैं और इस दिन नागर, कोपर, गैंती, कुदाली, रांपा समेत कृषि के काम आने वाले अन्य औजारों एवं यंत्रो की साफ-सफाई कर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं, और किसान खेतों में भेलवा के पेड़ की डाली लगाते है। इसी के साथ घरों के प्रवेश द्वार पर नीम के पेड़ की शाखाएं भी लगाई जाती हैं।

किसान परिवार के साथ बड़ी धूमधाम से इस तिहार को मनाते हैं। वहीं कहीं-कहीं मुर्गे और बकरे की बलि देने की भी परम्परा है। इसके साथ भैंस और बैलों को नमक और बगरंडा की पत्ती भी खिलाई जाती है ताकि वह बीमारी से बचे रहें। इस दिन कई लोग अपने कुलदेवता की भी पूजा परंपरा अनुसार करते हैं।

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हरेली पर्व में गेड़ी खेल का विशेष महत्व

Chhattisgarhi Olympic Games in Hareli festival : हरेली में गेड़ी का एक विशेष स्थान है। हरेली के दिन लोग बांस से गेड़ी बनाते है जिसमें पैर रखने के खांचे होते है जिसमें बांस से ही बने पैरदान लगाए जाते है पैर रखने के लिए, जिसे बांस को फाड़ कर के बनाया जाता है। इस पैरदान को पउवा कहा जाता है। इसमें चढ़कर बच्चे खेत के चक्कर लगाते हैं। पहले कुछ लोग पउआ में मिट्टीतेल डाला करते थे जिससे चलाने पर आवाज आती थी। ध्वनि निकालने के लिए गेड़ी को मच कर चलाया जाता है। गेड़ी पर चलते समय रच-रच की ध्वनि निकलती हैं, जो वातावरण को औैर आनंददायक बना देती है। गांव में पौनी-पसारी जैसे राऊत व बैगा हर घर के दरवाजे पर नीम की डाली खोंचते हैं। गांव में लोहार अनिष्ट की आशंका को दूर करने के लिए चौखट में कील लगाते हैं। यह परम्परा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान है। छत्तीसगढ़ी भाषा, खानपान, लोक कला, संस्कृति, खेलकूद को बढ़ावा देने और उसे छत्तीसगढ़ के बाहर भी पहचान दिलाने के लिए भूपेश सरकार पूरी तरह से प्रयासरत है।

 

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