CG Ki Baat: ‘डिग्री’ पर भारी.. ‘डिप्लोमाधारी’? पुराने नियम की नाइंसाफी, प्रदेश के डिग्रीधारी इंजीनियरों का आखिर क्या है दोष?

CG Ki Baat: 'डिग्री' पर भारी.. 'डिप्लोमाधारी'? पुराने नियम की नाइंसाफी, प्रदेश के डिग्रीधारी इंजीनियरों का आखिर क्या है दोष?

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  • Publish Date - March 18, 2025 / 10:26 PM IST,
    Updated On - March 18, 2025 / 10:26 PM IST
CG Ki Baat| Photo Credit: IBC24

CG Ki Baat| Photo Credit: IBC24

CG Ki Baat: रायपुर। आज हम बात करेंगे प्रदेश के युवाओं की, प्रदेश के युवा इंजीनियर्स की, जिनके सामने सरकारी नौकरी की वैकेंसी तो है, लेकिन वो एप्लाई नहीं कर सकते। क्योंकि, नौकरी के लिए 3 साल के इंजीनियरिंग डिप्लोमाधारियों को ही पात्रता है। यानि ज्यादा पढ़े लिखें हैं तो किसी सरकारी पद के लिए अयोग्य हो जाएंगे और ये सब हो रहा है एक 1977 के पुराने नियम के तहत।

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इस पर आपत्ति जताई है प्रदेश के पक्ष-विपक्ष के सीनियर विधायकों ने। सरकार ने इस पर सफाई में जवाब भी दिया, लेकिन विपक्ष ने असंतुष्ट होकर सदन से वॉकआउट किया। सियासी पैंतरों से सवाल ये है कि सरकारी सिस्टम को तर्कहीन और लाचार बनाने वाले पुराने नियमों में सुधार कब होगा, अब तक क्यों नहीं हुआ ? जी हां, सुनने में अजीब है लेकिन है सत्य.. छत्तीसगढ़ लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (PHE) में सब इंजीनियर्स के लिए 118 पोस्ट पर वैकेंसी निकाली गईं।

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तय योग्यता के मुताबिक, सिविल इंजीनियरिंग में 3 साल के डिप्लोमा करने वाले अभ्यर्थी ही इस पद के लिए एप्लाई कर सकते हैं, लेकिन अगर कोई सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री किए हुए है तो वो पोस्ट के लिए अप्लाई तक नहीं कर सकता। इस घोर अनियमिततता के मामले को विधानसभा में उठाया बीजेपी के सीनियर विधायक, पूर्व मंत्री राजेश मूणत और नेताप्रतिपक्ष डॉ चरणदास महंत ने दोनों ने मुद्दे पर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जरिए बात रखते हुए, इसे डिग्रीधारी युवा इंजीनियनियर्स के साथ अन्याय बताया। इसे सरासर ज्यादा समय लगाकर, ज्यादा पढ़कर बड़ी डिग्री लेने वाले युवाओं से धोखा बताया। पक्ष-विपक्ष के विधायकों ने इसे फौरन दुरूस्त करने की मांग की।

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भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने सदन को बताया कि, 2016-2017 में PWD विभाग में सब-इंजीनियर्स पोस्ट के लिए इंजीनियरिंग की डिग्रीधारियों को मौका दिया गया, तो फिर अब उसी प्रदेश में, उसी पार्टी की सरकार के वक्त PHE विभाग की वैकेंसी में इंजीनियर्स की डिग्री को अयोग्य कैसे माना जा रहा है। मूणत ने सवाल उठाया कि, समान्य प्रशासन विभाग ने ऐसा करने के लिए बनाए पुरानी और गैरजरूरी नियमों का परीक्षण क्यों नहीं किया। पक्ष-विपक्ष के आरोप और सवालों पर PWD और PHE मंत्री अरुण साव ने बताया कि, भर्ती नियमों में डिग्री के जगह डिप्लोमा की शर्त 1977 से तय नियम के तहत चली आ रही है, उसी मुताबिक वैकेंसी निकाली गई।

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प्रदेश में करीब 30 पॉलिटेक्निक संस्थाएं हैं, जिससे करीब 8000 बच्चे पास आउट होकर नौकरी का इंतजार कर रहे हैं, सो उनके लिए ये नौकरी पाने का है। नेता प्रतिपक्ष डॉ. महंत ने सुप्रीम कोर्ट के एक जजमेंट का हवाला देते हुए कहा कि, बड़ी योग्यता वालों को किसी भी तरह आवेदन करने से वंचित नहीं किया जा सकता। वैसे, इस तहर नियुक्ति में एक पैंच और है, जिन डिप्लोमाधारियों को भर्ती किया जा रहा है, उसके 75 प्रतिशत पद प्रमोशन वाले हैं, जिसके लिए डिग्री अनिवार्य है वर्ना वो प्रमोट नहीं हो पाएंगे। ऐसे में सरकार के सामने फिर नया संकट खड़ा होगा।

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दूसरी तरफ एक तथ्य ये भी है कि प्रदेश में 42 इंजीनियरिंग कॉलेज में हर साल करीब 500 सिविल इंजीनियर्स पास आउट होते हैं। ऐसे में उनके सामने भी नौकरी के कम विकल्प में से एक को बंद करना उनके साथ नाइंसाफी होगा। बड़ा सवाल यही है कि, क्या ऐसे अतर्कसंगत और पुराने नियमों की समीक्षा कर उन्हें बदलने का वक्त नहीं आ गया है।