CG Assembly Election: रायपुर, 27 अक्टूबर । छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उन नौ सीट पर अधिक जोर लगा रही है जहां वह इस राज्य के गठन के बाद कभी भी नहीं जीत सकी है।
छत्तीसगढ़ में सीतापुर, पाली-तानाखार, मरवाही, मोहला-मानपुर, कोंटा, खरसिया, कोरबा, कोटा और जैजैपुर ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां 15 वर्ष तक शासन करने के बाद भी भाजपा को कभी सफलता नहीं मिली। इनमें से सीतापुर, पाली-तानाखार, मरवाही, मोहला-मानपुर और कोंटा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है, जबकि अन्य चार सामान्य वर्ग की सीट हैं।
वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ का गठन होने के बाद राज्य में 2003 में विधानसभा का पहला चुनाव हुआ था। तब भाजपा ने अजीत जोगी की सरकार को पराजित कर सरकार बनाई थी। बाद में पार्टी ने 2008 और 2013 में भी जीत हासिल की।
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के विजय रथ को रोककर रमन सिंह के 15 साल के शासन को समाप्त कर दिया। कांग्रेस ने इस चुनाव में 90 सदस्यीय विधानसभा में से 68 सीट जीती थी।
अब पांच वर्ष बाद एक बार फिर चुनाव का बिगुल बज चुका है और मुख्यत: दोनों दल आमने-सामने हैं। विधानसभा के लिए दो चरणों में सात और 17 नवंबर को मतदान होगा।
भाजपा को इस बार उम्मीद है कि वह इन नौ सीट को जरूर जीतेगी। पार्टी ने इनमें से छह सीट पर नए चेहरों को अपना उम्मीदवार बनाया है।
भाजपा सांसद और पार्टी की चुनाव अभियान समिति के संयोजक संतोष पांडे ने शुक्रवार को कहा, ‘‘भाजपा ने उन सीट पर उम्मीदवारों के चयन पर विशेष ध्यान दिया है जिन पर वह कभी नहीं जीती है। सभी उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्रों में पूरे उत्साह के साथ प्रचार कर रहे हैं और उन्हें लोगों से भारी समर्थन मिल रहा है।’’
इन नौ सीट में से बस्तर क्षेत्र का नक्सल प्रभावित कोंटा क्षेत्र भी है जहां से राज्य के उद्योग मंत्री कवासी लखमा विधायक हैं। लखमा एक बार फिर कांग्रेस की ओर से चुनाव मैदान में हैं। लखमा क्षेत्र के प्रभावशाली आदिवासी नेता हैं तथा 1998 से लगातार पांच बार इस सीट से जीत चुके हैं।
भाजपा ने इस सीट से नए चेहरे सोयम मुक्का को मैदान में उतारा है। मुक्का माओवादियों के खिलाफ लड़ाई लड़ चुके ‘सलवा जुडूम’ के पूर्व कार्यकर्ता हैं। सलवा जुडूम को 2011 में भंग कर दिया गया था।
कोंटा सीट पर ज्यादातर कांग्रेस, भाजपा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होता आया है। 2018 के विधानसभा चुनाव में लखमा को 31,933 वोट मिले, जबकि भाजपा के धनीराम बारसे और सीपीआई के मनीष कुंजाम को क्रमशः 25,224 और 24,549 वोट मिले थे।
राज्य के उत्तर क्षेत्र सरगुजा संभाग की सीतापुर सीट भी एक ऐसी सीट है जहां से भाजपा कभी नहीं जीती। कांग्रेस के एक और प्रभावशाली आदिवासी नेता तथा भूपेश बघेल सरकार में मंत्री अमरजीत भगत राज्य के गठन के बाद से ही सीतापुर सीट से जीतते रहे हैं।
भाजपा ने इस सीट से नए चेहरे राम कुमार टोप्पो (33) को मैदान में उतारा है। टोप्पो हाल ही में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की नौकरी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं।
‘पीटीआई-भाषा’ से बात करते हुए टोप्पो ने कहा, ”सीतापुर के लोगों ने उन्हें चुनाव लड़ने के लिए कहा है। वह भगत को चुनौती के रूप में नहीं देखते हैं।”
टोप्पो ने कहा, ”मैंने कभी नेता बनने की कल्पना नहीं की थी। मुझे सीतापुर के लोगों से लगभग 15 हजार पत्र मिले, जिसमें उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर मेरी मदद मांगी और मुझसे चुनाव लड़ने के लिए कहा। इनमें से एक पत्र यौन शोषण की शिकार एक महिला ने खून से लिखा था। मैं उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सका और हाल ही में जब मैं दिल्ली में तैनात था तब सेवा से इस्तीफा दे दिया।”
उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से मिले समर्थन की सराहना करते हुए कहा, ”मैं कांग्रेस उम्मीदवार को एक चुनौती के रूप में नहीं देखता क्योंकि यह मैं नहीं, बल्कि सीतापुर की जनता है जो उनके (भगत) खिलाफ चुनाव लड़ रही है।”
इसी तरह कांग्रेस सरकार में एक और मंत्री उमेश पटेल खरसिया सीट से लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। 1977 में अस्तित्व में आने के बाद से ही यह सीट कांग्रेस का गढ़ रही है।
उमेश पटेल के पिता नंद कुमार पटेल, प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे। 2013 में बस्तर में झीरम घाटी नक्सली हमले में पटेल की मृत्यु हो गई थी। वह इस सीट से पांच बार चुने गए थे।
खरसिया सीट से भाजपा ने नए चेहरे महेश साहू को मैदान में उतारा है।
राज्य की मरवाही और कोटा सीट भी कांग्रेस का गढ़ रही है, इससे पहले 2018 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने दोनों सीट पर जीत हासिल की थी।
वर्ष 2000 में राज्य के गठन के बाद कांग्रेस सरकार के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने 2001 में मरवाही से उपचुनाव जीता था। बाद में उन्होंने 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर दो बार इस सीट से जीत हासिल की।
वर्ष 2013 में उनके बेटे अमित जोगी ने इस सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 2018 में अजीत जोगी ने अपने नवगठित राजनीतिक दल जेसीसी (जे) के टिकट पर इस सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। बाद में 2020 में अजीत जोगी की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने यह सीट जीत ली।
इसी तरह अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी ने 2006 में कांग्रेस विधायक राजेंद्र प्रसाद शुक्ला की मृत्यु के बाद कोटा सीट पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल की थी। इसके बाद रेणु जोगी ने 2008 और 2013 के चुनावों में दो बार कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में तथा 2018 में जेसीसी (जे) उम्मीदवार के रूप में इस सीट से जीत हासिल की।
भाजपा ने कोटा और मरवाही सीट से नए चेहरे प्रबल प्रताप सिंह जूदेव और प्रणव कुमार मरपच्ची को मैदान में उतारा है।
युवा मोर्चा के पूर्व उपाध्यक्ष जूदेव भाजपा के दिग्गज नेता दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव के बेटे हैं, जबकि मारपच्ची ने भारतीय सेना में काम किया है।
कांग्रेस ने मरवाही से अपने वर्तमान विधायक केके ध्रुव और कोटा से छत्तीसगढ़ पर्यटन बोर्ड के अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव को मैदान में उतारा है।
चार अन्य सीट कोरबा, पाली-तानाखार, जैजैपुर और मोहला-मानपुर पर भाजपा कभी नहीं जीती, और ये सीट 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थीं।
राज्य में पाली-तानाखार सीट पर दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है। यहां भाजपा ने राम दयाल उइके को मैदान में उतारा है, जो 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में लौट आए थे।
उइके 1998 में मरवाही सीट से भाजपा की टिकट पर विधायक चुने गए थे। बाद में वह कांग्रेस में शामिल हो गए। जब अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने तब उइके ने जोगी के लिए अपनी सीट खाली कर दी थी।
कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उइके ने 2003 में तानाखार (जो परिसीमन के बाद पाली तानाखार बन गया) और उसके बाद 2008 और 2013 में पाली तानाखार सीट पर जीत हासिल की।
उइके 2018 में भाजपा में लौट आए और पाली-तानाखार से चुनाव लड़ा। लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार से हार गए। उइके को भाजपा ने पाली तानाखार से फिर से उम्मीदवार बनाया है, जहां कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक को टिकट नहीं देकर महिला दुलेश्वरी सिदार को मैदान में उतारा है।
बघेल सरकार के एक अन्य मंत्री जयसिंह अग्रवाल परिसीमन के बाद अस्तित्व में आए कोरबा सीट पर 2008 से अजेय हैं। भाजपा ने कोरबा से कांग्रेस के अग्रवाल के खिलाफ अपने पूर्व विधायक लखनलाल देवांगन को मैदान में उतारा है।
राज्य का जैजैपुर (जांजगीर-चांपा जिला) सीट वर्तमान में दो बार के बहुजन समाज पार्टी के विधायक केशव चंद्रा के पास है। कांग्रेस ने अपने जिला युवा कांग्रेस के प्रमुख बालेश्वर साहू और भाजपा ने अपने जिला इकाई के प्रमुख कृष्णकांत चंद्रा को मैदान में उतारा है।
राज्य के नक्सल प्रभावित मोहला-मानपुर सीट पर कांग्रेस ने अपने वर्तमान विधायक इंद्रशाह मंडावी को मैदान में उतारा है, वहीं पूर्व विधायक संजीव शाह भाजपा के उम्मीदवार हैं।
भाजपा की तरह सत्ताधारी दल कांग्रेस ने भी राज्य की तीन सीट रायपुर शहर दक्षिण, वैशाली नगर और बेलतरा में कभी भी जीत हासिल नहीं की। ये तीनों सीट राज्य गठन के बाद (2008 में परिसीमन के बाद) अस्तित्व में आईं।
रायपुर शहर दक्षिण एक शहरी निर्वाचन क्षेत्र है जो भाजपा के प्रभावशाली नेता और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के पास है। अग्रवाल सात बार से विधायक हैं। कांग्रेस ने अपने पूर्व विधायक और रायपुर के प्रसिद्ध दूधाधारी मठ के महंत राम सुंदर दास को अग्रवाल के खिलाफ मैदान में उतारा है।
वैशाली नगर सीट भाजपा विधायक विद्यारतन भसीन के निधन के बाद से रिक्त है। भाजपा और कांग्रेस ने इस सीट से रिकेश सेन और मुकेश चंद्राकर को मैदान में उतारा है।
बेलतरा में भाजपा ने मौजूदा विधायक रजनीश सिंह को टिकट नहीं दिया है तथा नए चेहरे सुशांत शुक्ला को मैदान में उतारा है। जबकि कांग्रेस की ओर से बिलासपुर ग्रामीण इकाई के अध्यक्ष विजय केसरवानी पार्टी के उम्मीदवार हैं।
राज्य में कांग्रेस संचार शाखा के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने दावा किया कि उनकी पार्टी इस बार भाजपा के कुछ तथाकथित गढ़ों में सफलतापूर्वक सेंध लगाएगी।
शुक्ला ने कहा, ”छत्तीसगढ़ हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां कुछ समय तक भाजपा की सरकार रही, लेकिन पिछले चुनाव में जनता ने भाजपा को पूरी तरह से नकार दिया था। विपक्षी दल इस बार उन सीट पर भी संघर्ष कर रहा है जहां उसने पिछली बार जीत हासिल की थी।”
कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में 68 सीट जीती थी और सरकार बनाई थी। भाजपा ने 15 सीट हासिल की थी। वहीं जेसीसी (जे) को पांच और बसपा को दो सीट मिली थी। राज्य विधानसभा में वर्तमान में कांग्रेस के 71 विधायक हैं। पार्टी नेताओं के मुताबिक, कांग्रेस ने इस बार 75 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है।
read more: गेहूं, आटे की कीमतों को स्थिर करने के लिए ओएमएसएस गेहूं के तहत बोली की मात्रा बढ़ी