कांकेर: 16 अप्रैल की दोपहर कांकेर के छोटा बैठिया के जंगल में हुई मुठभेड़ पर आज तीसरे दिन बड़ा खुलासा हुआ हैं। नक्सली इतनी बड़ी संख्या में किसलिए कांकेर के इस इलाके में बैठक करने पहुंचे थे इसका खुलासा हो गया हैं। (Kanker Police-Naxalites encounter ground reporting) हालांकि यह बैठक पूरी हो पाती इससे पहले ही डीआरजी और बीएसएफ के तक़रीबन 200 जवानों ने धावा बोल दिया।
जानकारी के मुताबिक कांकेर के छोटा बैठिया का इलाका जहां एनकाउंटर हुआ वह पूरी तरह से नक्सलियों का इलाका हैं। यहाँ नक्सलियों की जनताना सरकार चलती हैं। इसकी पुष्टि जगंल में जगह-जगह लगे बोर्ड और उनमें लिखे सन्देश कर रहे हैं। आईबीसी24 ने एनकाउंटर की जगह की ग्राउंड रिपोर्टिंग की है। मुठभेड़ के बाद घटनास्थल पर सबसे पहले पहुँचने वाली टीम में आईबीसी24 ही अकेली थी।
लेव्ही वसूलने पहुंचे थे नक्सली!
बताया जा रहा हैं कि छोटा बैठिया के माड़ इलाके में नक्सली 16 अप्रैल को तेंदूपत्ता संग्राहको और ठेकेदारो से लेवी लेने पहुंचे थे। यह दक्षिण डिवीजन का कांकेर ग्रुप था। माओवादियों के इस बैठक में सेंट्रल कमेटी मेंबर विजय रेड्डी और अबूझमाड़ एरिया कमेटी इंचार्ज लक्ष्मण राव, शंकर राव और ललिता जैसे खूंखार नक्सली समेत करीब 50 से ज्यादा नक्सली मौजूद थे। दावा यह भी किया जा रहा हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव के दौरान बस्तर में गड़बड करने की आखिरी प्लानिंग पर होने वाली बैठक में शामिल होने यह सभी नक्सली कमांडर पहुंचे थे।
तीन तरफ से घेराबंदी
लेकिन नक्सली अपने इस बैठक को अंजाम दे पाते इससे पहले ही डीआरजी और बीएसएफ की टीम मौके पर आ धमकी। पुलिस के सामने जंगल और फिर पीछे पहाड़ की चुनौती थी। (Kanker Police-Naxalites encounter ground reporting) इलाके की भौगोलिक स्थिति पुलिस के लिए प्रतिकूल थी लिहाजा पुलिस ने अपनी रणनीति बदली और फिर तीन अलग-अलग हिस्सों में बंटकर नक्सलियों की घेराबंदी शुरू की गई।
भागकर नक्सलियों ने बचाई जान
पुलिस के इस घुसपैठ को रोकने नक्सलियों ने अपने कैम्प के आसपास बड़े पैमाने पर आईईडी भी प्लांट किये थे जिनेम धमाका किया गया, लेकिन पुलिस को नक्सलियों का यह पैंतरा मालूम था और वो इस जाल में नहीं फंसे। एनकाउंटर के दौरान नक्सली पहाड़ की तरफ भागने लगे थे लेकिन जवानों की एक बड़ी टीम यहाँ उनका इंतज़ार कर रही थी। ताबड़तोड़ हुई फायरिंग से नक्सलियों को सँभलने का मौका नहीं मिला और वो ढेर होते चले गए। यहाँ नक्सलियों की संख्या करीब 50 थी लिहाजा कुछ माओवादी भागने में कामयाब हुए। पुलिस ने उनके संभावित ठिकानों तक नक्सलियों का पीछा किया। यहाँ रास्ते में खून के धब्बे देखें गए जिससे सम्भावना जताई जा रही हैं कि गोली से बचे नक्सली गंभीर तौर पर घायल हुए हैं।
45 सालों की सबसे बड़ी कामयाबी
गौरतलब हैं कि मुठभेड स्थल से करीब ही अबुझमाड के जंगलो में कई बड़े नक्सली ट्रैनिंग कैंप चलते है। इन दिनों हर साल तेंदुपत्ता संग्राहको और ठेकेदारो से बड़ी रकम वसूल करते है। आकड़ा यह भी हैं कि मध्यप्रदेश से अलग राज्य बनने के बाद करीब 45 सालो में अबतक की सबसे बड़ी सफलता फोर्स को मिली हैं। पुलिस की घेरो, पकड़ो, छिपकर मारो नीति को कामयाबी मिली और जवानों ने एक साथ 29 नक्सलियों को ढेर कर दिया। हालाँकि यह पूरी खबर सूत्रों के हवाले से हैं। आईबीसी24 इसकी पुष्टि नहीं करता हैं।