रायपुरः Jhiram’s investigation 25 मई 2013 को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के काफिले पर झीरम घाटी में हुए हमले को आज 9 बरस हो गए। इन सालों में केंद्र और राज्य दोनों जगह सरकारें बदल गईं। इस दौरान जांच करने वाली एजेंसी, आयोग , जांच बिंदु सब पर सवाल उठे बार-बार उठे लेकिन इस सब से जुड़ा एक मूल सवाल कि आखिर 25 मई का झीरम कांड क्या केवल एक नक्सली हमला या बड़ा सियासी षड़यंत्र? और उसके पीड़ितों का इंतजार आखिर कहां जाकर थमेगा?
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Jhiram’s investigation झीरम हमले की 9वीं बरसी पर सीएम भूपेश बघेल ने हमले में शहीद हुए कांग्रेस नेताओं को श्रद्धांजलि दी और कहा कि हमले के षड्यंत्रकारी बाहर घूम रहे हैं। सीएम जल्द बेगुनाह शहीदों को न्याय मिलने की बात भी कही। वहीं रायगढ़ में पिता नंदकुमार पटेल और भाई दिनेश पटेल की समाधि पर श्रद्धांजलि देने के बाद मंत्री उमेश पटेल ने भी केंद्र पर जांच में अड़ंगा डालने का आरोप लगाया।
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9 साल बाद भी झीरम इंसाफ के लिए गुहार लगा रहा है। दरअसल कई जांच के बाद भी घटना की वास्तविकता सामने नहीं आई। जीरम का खूनी कांड राजनीति के मकड़जाल में उलझकर रह गया है। हमले को लेकर कांग्रेस जहां केंद्र और तत्कालीन बीजेपी सरकार पर निशाना साधती रही है। तो बीजेपी उन आरोपों पर काउंटर अटैक करती रही।
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साल बदला, सरकार बदली लेकिन अब तक जीरम के पर्दे के पीछे का सच सामने नहीं आया है. ऐसे में सवाल है कि 9 साल बाद भी घटना की असलियत सामने क्यों नहीं आ पाई? हमला सिक्यूरिटी फैल्योर था या राजनीतिक साजिश ? क्या केंद्र और राज्य की सियासत में उलझ गई है जांच? सवाल ये भी कि झीरम कांड के शहीद परिवारों को आखिर न्याय कब तक मिलेगा ? ऐसे तमाम सवाल हैं, जिनका जवाब अभी फिलहाल किसी के पास नहीं है। लेकिन इस घटना में अपनों को गंवाने वाले परिवार और घायलों को अभी भी न्याय का इंतजार है और उनका दर्द आज भी उनकी आंखों और बातों में झलकता है।