रायपुर: CG ki Baat चुनाव खत्म होते ही प्रदेश में एक बार फिर आदिवासी आरक्षण के मुद्दे पर बहस गरमाई हुई है। साय सरकार ने आरक्षण प्रावधानों के अध्ययन और इसके क्रियान्यवयन के लिए मंत्री रामविचार की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी बनाई है। जिसे दो सालों के भीतर प्रदेश में आरक्षण प्रावधानों पर ऐसे तर्क ढूंढने हैं जो कोर्ट को संतुष्ट कर पाएं। इधर, कांग्रेस इस कमेटी गठन के औचित्य पर सवाल उठा रही है। इसे सीधे-सीधे राज्य की जनता से छल बता रही है।
CG ki Baat 2024 के चुनाव निपटते ही साय सरकार ने राज्य में आरक्षण को लेकर एक 5 सदस्यीय कमेटी बना दी है। सीनियर आदिवासी नेता और मंत्री रामविचार नेताम कमेटी के अध्यक्ष हैं जबकि आदिवासी विधायक गोमती साय, पूर्व IAS और वर्तमान विधायक नीलकंठ टेकाम, SC वर्ग से गुरु खुशवंत साहेब, OBC वर्ग से विधायक गजेंद्र यादव, इसी वर्ग से कांग्रेसी विधायक संगीता सिन्हा को इसका सदस्य बनाया गया है। ये कमेटी छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग अधिनियम 1994, यानी ST,SC और OBC के लिए आरक्षण अधिनियम का अध्य्यन करेगी, साथ ही ये भी देखेगी कि आरक्षण नियमों को लागू करने में क्या व्यवहारिक दिक्कतें हैं, उन्हें दूर करने के लिए समिति सुझाव भी देगी।
इधऱ, विपक्ष ने सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी पर तीखा हमला बोला। कांग्रेस का आरोप है कि जब छत्तीसगढ़ विधानसभा से आरक्षण संशोधन विधेयक सर्वसम्मति से पारित है। जिसमें भाजपा की भी सहमति थी तो फिर अब राजभवन से बिल पास कराने के बजाय नई समिति का गठन क्यों।
दरअसल, साल 2012 में तत्कालीन रमन सरकार ने प्रदेश में 50 फीसदी आरक्षण कोटा बढ़ाते हुए 58 फीसदी कर दिया, जो कि तय आरक्षण की अंतिम सीमा 50 फीसदी से ज्यादा था, सरकार ने ऐसा क्यों किया इसे जस्टिफाई करने का काम अदालत में दो दशक तक पेंडिंग रहा, केस चलता रहा 2018 में सरकार भी बदल गई लेकिन सितंबर 2022 तक राज्य सरकार ये बताने में नाकाम रही कि आरक्षण की सीमा क्यों बढ़ाई गई, नतीजतन हाईकोर्ट ने 58 फीसदी आरक्षण को रद्द करते हुए इसे फिर से 50 फीसदी कर दिया। जिसका सीधा असर आदिवासी वर्ग पर पड़ा। ST का आरक्षण 32 फीसदी से घटकर 20 फीसदी हो गया। जिससे भड़के आदिवासी समाज का आक्रोश सरकारों के लिए सिरदर्द बन गया। सुप्रीम कोर्ट से सरकारी नौकरियों की भर्ती में 58 फीसद आरक्षण जारी रखने फौरी राहत तो मिली लेकिन संवैधानिक संकट ज्यों का त्यों बना रहा। साफ है मुद्दे पर सियासी आरोपों की पॉलिटिक्स से इतर अगर प्रदेश में 50 फीसद से उपर आरक्षण जारी रखना है तो फिर सरकार को कर्नाटक सरकार की तरह कोर्ट में मजबूती से तर्क रखते हुए कोर्ट को संतुष्ट करना होगा। सवाल है क्या कमेटी तय 2 साल के भीतर इसका समाधान ढूंढ पाएगी?