रायपुर: death of elephants छत्तीसगढ़ में हाथियों की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा। हाथियों को बचाने के नाम पर करोड़ रुपये खर्च हुए, दर्जनों योजनाएं बनाई गईं, सैकड़ों पहल और घोषणाएं कर ली गईं। लेकिन प्रदेश में असमय हाथी की जान जा रही। अभी दो दिन पहले सूरजपुर जिले के प्रतापपुर में हाई टेंशन वायर की चपेट में आकर एक हथिनी की मौत हो गई। साथ ही उसके गर्भ में पल रहे 17 माह के शावक की भी मौत हो गई। सवाल है, आखिर कब तक हाथियों की मौत का सिलसिला जारी रहेगा? और कब तक वन और विद्युत विभाग की ऐसी लापरवाहियां सामने आती रहेगी? आखिर हाथी को लेकर चली रही सालों पुरानी समस्या का समाधान क्या है?
death of elephants छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में 11 हजार केवी लाइन की चपेट में आकर दम तोड़ने वाली गर्भवती हथिनी की ये तस्वीर कई गंभीर सवाल खड़े कर रही है। ये सवाल हर उस तंत्र और विभाग से है, जो कहीं ना कहीं हाथियों को बचाने और उसकी सुरक्षा करने की जिम्मेदारियों की जद में आते हैं। हाथियों के आवाजाही के रास्ते में बिजली के तार इतनी कम उंचाई से जाए कि उसकी चपेट में आकर हथिनी की मौत हो जाए, ये अपने आप में बेहद गंभीर और संगीन मामला है। जिले के डीएफओ कह रहे हैं कि बिजली विभाग को एक महीना पहले ही तार की उंचाई बढ़ाने के लिए पत्र लिख दिया गया था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब सरकार से लेकर विभाग के अधिकारी तक, बस सफाई देते नजर आ रहे हैं तो दूसरी ओर विपक्ष को एक बार फिर सरकार पर आरोप लगाने का मौका मिल गया।
बीजेपी भले आरोप लगाए, लेकिन सच ये भी है कि रमन सिंह के 15 साल के कार्यकाल में हाथी समस्या का कोई कारगर कदम नहीं निकला। बल्कि हुल्ला पार्टी, सोलर फेंसिंग और कुमकी हाथी के इस्तेमाल पर करोड़ों फूंक डाले। बहरहाल करंट से हाथी की मौत का ये पहला मामला नहीं है और जिस तरह की लापरवाही बरती जा रही है, उसे देखकर लगता नहीं कि ये आखिरी मामला होगा। बिजली विभाग के खिलाफ 2018 में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी। तब बिजली विभाग ने उचित कार्रवाही करने का भरोसा दिया था। लेकिन कार्रवाई के नाम पर यही हुआ कि उसने वन क्षेत्र से गुजरने वाली झुकी लाइन को उठाने और कवर्ड कंडक्टर लगाने के लिए वन विभाग को पत्र लिखकर 1674 करोड़ देने की मांग की, तो वन विभाग ने इसे भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग पर थोप दिया, और आखिर में भारत सरकार ने बिजली लाइन सुधार को विद्युत विभाग की स्ट्रिक्ट लायबिलिटी बताकर इसका जिम्मा राज्य सरकार पर थोप दिया। पिछले तीन सालों से यही खेल जारी है, और हाथियों पर करंट का कहर भी। जनहित याचिका लगाने के बाद से ही 15 हाथियों की मौत करंट लगने से हो चुकी है। एक जानकारी के मुताबिक, राज्य बनने से लेकर अब तक प्रदेश में 175 से ज्यादा हाथियों की मौत हुई है। इनमें से 30 फीसदी से ज्यादा 60 हाथियों की मौत सिर्फ बिजली की चपेट में आने से।
हाथियों को बचाने की तमाम कवायद, तमाम दावे तब तक खोखले साबित होते रहेंगे, जब तक अपनी जिम्मेदारियों को यूं ही दूसरे विभाग और एजेंसी पर थोपा जाता रहेगा। जबकि विशेषज्ञ बताते हैं कि नुकसान फसल का तुरंत मुआवजा देकर हाथी विचरण क्षेत्र में पक्के मकान बनाकर और बिजली के तारों को ऊपर कर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
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