कोरबा, 22 जनवरी (भाषा) छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले की अदालत ने पहाड़ी कोरबा जनजाति की 16 वर्षीय बालिका से सामूहिक बलात्कार और उसके समेत परिवार के तीन सदस्यों की हत्या के आरोप में पांच लोगों को फांसी और एक व्यक्ति को
आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस वारदात से संपूर्ण समाज की सामूहिक चेतना को आघात पहुंचा है।
कोरबा जिले में विशेष लोक अभियोजक सुनील कुमार मिश्रा ने बताया कि अपर सत्र न्यायाधीश डॉक्टर ममता भोजवानी की अदालत ने 16 वर्षीय बालिका से सामूहिक दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या करने के अलावा उसके परिवार के दो अन्य सदस्यों (पीड़िता के लगभग 60 वर्षीय पिता और उसकी करीब चार वर्षीय भतीजी) की हत्या करने के आरोप में संतराम मंझवार (45), अनिल कुमार सारथी (20), आनंदराम पनिका (26), परदेशी राम (35) तथा अब्दुल जब्बार (21) को फांसी की सजा सुनाई है।
अदालत ने इस मामले के अन्य आरोपी उमाशंकर यादव (22) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। लोक अभियोजक ने बताया कि अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आरोपियों का यह अमानवीय एवं निर्दयता पूर्वक किया गया कृत्य अत्यधिक विकृत, वीभत्स, पाशविक एवं कायरतापूर्ण है।
मिश्रा ने बताया कि अदालत ने आरोपियों को भारतीय दंड संहिता और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो)अधिनियम के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया और उन्हें सजा सुनाई। 208 पन्नों के आदेश की प्रति सोमवार को उपलब्ध कराई गई।
लोक अभियोजक ने बताया कि उन्होंने सभी छह आरोपियों के लिए मौत की सजा की मांग की थी, लेकिन यादव को चिकित्सा आधार पर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। यादव की मेडिकल जांच से पता चला था कि एक दुर्घटना के बाद उसकी सर्जरी हुई थी जिसमें उसका प्राइवेट पार्ट क्षतिग्रस्त हो गया था।
मिश्रा ने बताया कि बलात्कार में यादव की संलिप्तता स्थापित नहीं हुई थी, लेकिन साजिश और हत्या में उसकी भूमिका पाई गई, जिसके बाद उसे धारा 302 के तहत दोषी ठहराया गया।
उन्होंने बताया कि 29 जनवरी 2021 को जिले के लेमरू थाना क्षेत्र के अंतर्गत गढ़-उपरोडा गांव में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह के अंतर्गत आने वाले पहाड़ी कोरवा परिवार के तीन सदस्यों की हत्या का मामला सामने आया था।
मिश्रा ने बताया कि जांच के दौरान पुलिस को जानकारी मिली कि आरोपियों ने परिवार की 16 वर्षीय बालिका, उसके 60 वर्षीय पिता और उनकी लगभग चार वर्षीय पोती (दुष्कर्म पीड़िता की भतीजी) को जंगल में ले जाकर पत्थरों से कुचलकर मार डाला था। इससे पहले उन्होंने 16 वर्षीय बालिका के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया था।
मिश्रा ने बताया कि पुलिस की जांच में यह भी खुलासा हुआ था कि मुख्य आरोपी संतराम मंझवार, जो पीड़ित परिवार को अपने यहां काम पर रखा था, ने 16 वर्षीय बालिका को अपनी दूसरी पत्नी बनाने के लिए दबाव डाल रहा था। जब बालिका के परिवार ने इसका विरोध किया तब संतराम ने अपने पांच साथियों के साथ मिलकर तीन लोगों की हत्या कर दी। घटना से पहले उन्होंने बालिका के साथ सामूहिक बलात्कार किया।
उन्होंने बताया कि पुलिस की जांच में जानकारी मिली कि बरपानी गांव निवासी बालिका का पिता जुलाई 2020 से मुख्य आरोपी मंझवार के घर पर मवेशी चराने का काम कर रहा था। 29 जनवरी, 2021 को मंझवार ने उस व्यक्ति, उसकी बेटी (16) और पोती (चार) को अपनी मोटरसाइकिल से उनके गांव तक पहुंचाने की पेशकश की।
रास्ते में वे कोराई गांव में रुके और मंझवार ने शराब पी, जिसके बाद अन्य आरोपी भी उसके साथ शामिल हो गए। आरोपी तीनों पीड़ितों को गढ़-उपरोड़ा गांव के करीब जंगल से घिरी एक पहाड़ी की तलहटी में ले गए, जहां आरोपियों ने कथित तौर पर 16 वर्षीय लड़की के साथ उसके पिता के सामने बलात्कार किया।
लोक अभियोजक ने बताया कि बाद में आरोपियों ने पिता, बेटी और पोती को पत्थरों तथा डंडों से पीटा और उन्हें जंगल में फेंक दिया। बाद में सभी आरोपी वहां से भाग गए।
उन्होंने बताया कि घटना के चार दिन बाद, जब मृतक के बेटे ने लेमरू पुलिस थाने में उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई, तब पुलिस ने कार्रवाई की और दो फरवरी को छह आरोपियों को पकड़ लिया।
मिश्रा ने बताया कि आरोपियों के बयानों के आधार पर पुलिस दो फरवरी को घटनास्थल पर पहुंची, जहां उन्होंने घायल बलात्कार पीड़ित बालिका को जीवित और दो अन्य को मृत पाया।
उन्होंने बताया कि पुलिस ने लड़की को तुरंत स्थानीय अस्पताल पहुंचाया लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई। पीड़ित पहाड़ी कोरवा आदिवासी समुदाय से थे, जो विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह (पीवीटीजी) है।
मिश्रा ने बताया कि घटना की जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने 24 घंटे के भीतर सभी छह आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया और इसके बाद उन्हें अदालत में पेश किया गया था।
उन्होंने बताया कि दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद अदालत ने इस महीने की 15 तारीख को अपना फैसला सुनाया।
मिश्रा ने बताया कि अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि आरोपियों का यह अमानवीय एवं निर्दयता पूर्वक किया गया कृत्य अत्यधिक विकृत, वीभत्स, पाशविक एवं कायरतापूर्ण है, क्योंकि उन्होंने अपनी वासना को पूरा करने के लिए तीन निर्दोष और कमजोर व्यक्तियों की हत्या की है। इससे संपूर्ण समाज की सामूहिक चेतना को आघात पहुंचा है।
अदालत ने कहा है कि आरोपियों द्वारा एक ही आदिवासी परिवार के तीन सदस्यों (जिनमें 16 वर्ष की एक लड़की, साढ़े तीन साल की एक बच्ची और लगभग 60 वर्षीय एक पुरुष शामिल है) की हत्या की गई तथा 16 साल की बच्ची की हत्या से पहले उससे सामूहिक बलात्कार किया गया। इसलिए आजीवन कारावास के सामान्य नियम की अपेक्षा मृत्युदंड के अपवाद का चयन करने के अतिरिक्त इस न्यायालय के पास और कोई विकल्प नहीं बचा है।
अदालत ने कहा है कि उमाशंकर को छोड़कर बाकी आरोपियों के संबंध में यह निष्कर्ष अवश्य निकलता है कि वर्तमान वीभत्स घटनाक्रम के प्रमाणित होने के बावजूद यदि उन्हें समाज में प्रवेश दिया जाता है (जेल भी समाज का अंग है) तो वे पुनः किसी भी प्रकार का अपराध कर सकते हैं और इस कारण उनके पुनर्वास या सुधार की कोई संभावना नहीं दिखती है।
अदालत ने कहा है कि यह घटना छत्तीसगढ़ के पहाड़ी कोरवा जनजाति के एक गरीब परिवार के साथ घटी, जिसे भारत के महामहिम राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र घोषित किया गया है। इस वीभत्स घटना की खबर फैलते ही न केवल राज्य में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर इस घटना के खिलाफ व्यापक विरोध और आक्रोश फैल गया। इस घटना ने मानवीयता को झकझोर दिया है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आरोपियों द्वारा किए गए कृत्य के अनुपात में सजा न्याय की मांग है क्योंकि न्याय केवल अपराधी को ध्यान में रखकर नहीं किया जाता है बल्कि उस अपराध से पीड़ित व्यक्ति पर भी समान ध्यान देना आवश्यक है। इसलिए वर्तमान मामले में इस अदालत का मानना है कि आरोपियों (आरोपी उमाशंकर को छोड़कर) को मौत की सजा देना आवश्यक है।
भाषा सं संजीव
संतोष
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