बिलासपुर: छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित अभिषेक मिश्रा हत्याकांड में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का एक महत्वपूर्ण फैसला आया हैं। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल के बेंच ने इस हत्याकांड में संदेह का लाभ देते हुए हत्याकांड के आरोपी रहे विकास और उसके चाचा अजीत सिंह को बरी कर दिया हैं। इससे पहले मामले की अभियुक्त किस्मी जैन को भी बरी किया जा चुका हैं। इस फैसले के विरोध में मृतक अभिषेक के पिता ने याचिका दायर की थी जिसे ख़ारिज कर दिया गया पिछले साल के दिसंबर में हुई सुनवाईं के बाद चीफ जस्टिस की डबल बेंच ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस तरह इस हत्याकाण्ड के सभी दोषी बरी ही चुके हैं।
इससे पहले दुर्ग जिला न्यायालय ने इस मामले में 10 मई 2021 को फैसला सुनाया था। जिला न्यायालय के फैसले को दोनों आरोपितों ने बिलासपुर उच्च न्यायालय में चुनौती थी। उच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा एवं रविद्र कुमार अग्रवाल ने की। आरोपितों की ओर से उच्च न्यायालय में प्रकरण की पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं ने बताया कि यह पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर टिका हुआ था। अभियोजन पक्ष सुनवाई के दौरान घटना की कड़ियों को जोड़ नहीं पाया। जिसका लाभ आरोपितों को मिला। वहीं अभिषेक मिश्रा के पिता आई.पी. मिश्रा ने किम्सी जैन की रिहाई को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। किम्सी के मामले में उच्च न्यायालय ने जिला न्यायालय के फैसले को उचित ठहराते हुए आई.पी. मिश्रा के आवेदन को खारिज कर दिया।
दरअसल शंकराचार्य ग्रुप आफ कालेज जुनवानी के डायरेक्टर अभिषेक मिश्रा के मर्डर का मामला 9 नवंबर 2015 यानी 9 साल पुराना हैं। अभिषेक इसी तारीख को अपने घर से निकला था। 10 नवंबर 2015 को दुर्ग के जेवरा चौकी अभिषेक मिश्रा की गुमशुदगी दर्ज कराई गई थी। 22 दिसंबर 2015 को पुलिस ने संदेह के आधार पर स्मृति नगर निवासी विकास जैन, उसके चाचा अजीत सिंह को हिरासत में लेकर पूछताछ की। 23 दिसंबर 2015 को पुलिस ने स्मृति नगर निवासी अजीत सिंह के मकान स्थित परिसर में अभिषेक के शव को बरामद किया। 24 दिसंबर 2015 को विकास की पत्नी किम्सी जैन को भी पुलिस ने इस मामले में गिरफ्तार किया था।