सियासत की ‘कर्ज’ कथा! कर्ज की लड़ाई.. GST क्षतिपूर्ति पर आई! छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ में कर्ज को लेकर जारी है सियासत

सियासत की 'कर्ज' कथा! कर्ज की लड़ाई.. GST क्षतिपूर्ति पर आई! Debt battle in Chhattisgarh now comes on GST compensation!

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  • Publish Date - March 28, 2022 / 11:08 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:59 PM IST

(रिपोर्टः सौरभ सिंह परिहार) battle in Chhattisgarh रायपुरः प्रदेश में इन दिनों कर्ज के मुद्दे पर लगातार सियासी बयानबाजी हो रही है। विधानसभा के बजट सत्र में मामला गूंजने के बाद कर्ज के मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला सा चल पड़ा है। छत्तीसगढ़ बीजेपी एक तरफ राज्य सरकार पर ज्यादा कर्ज लेने का आरोप लगा रही है, तो दूसरी ओर उसी के सांसद राज्य सरकार को केंद्र के सहयोग से लोन लेने की स्कीम बता रहे हैं। जिस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि बेहतर होगा कि केंद्र सरकार खुद कर्ज लेकर राज्यों को दे। साथ ही कहा कि छग को केंद्र सरकार से अलग अलग मदों का लगभग 32 हजार करोड़ रुपए लेना है। अगर सरकार वो राशि दे दे तो छत्तीसगढ़ को लोन लेने की जरुरत ही नही पड़ेगी।

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battle in Chhattisgarh सीएम भूपेश बघेल ने GST क्षतिपूर्ति नहीं मिलने पर भी केंद्र पर निशाना साधा है। दरअसल वन नेशन वन टैक्स का नारा देकर मोदी सरकार ने जुलाई 2017 में GST लागू की। तब गैर बीजेपी शासित राज्यों ने राजस्व कम होने का मुद्दा उठाया। इसकी भरपाई के लिए केन्द्र सरकार ने जुलाई 2022 तक GST क्षतिपूर्ति देने की घोषणा की। अब इसकी अवधि जुलाई महीने में खत्म हो रही है। इससे राज्य को नुकसान होगा। इसमें छत्तीसगढ़ भी शामिल है जिसे 5 हजार करोड़ जीएसटी क्षतिपूर्ति नहीं मिलेगी। इसलिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 17 राज्य के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर GST क्षतिपूर्ति अगले 10 साल तक जारी रखने की मांग की है। जिसे लेकर प्रदेश में सियासत गरमा गई है।

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बहरहाल प्रदेश में कर्ज के मुद्दे पर शुरू हुई सियासी लड़ाई GST क्षतिपूर्ति पर आ गई है। राज्य सरकार का तर्क है कि केंद्र के वित्तीय कुप्रबंधन की वजह राज्यों को राजस्व में भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। जनहित और विकास कार्यों की रफ्तार पर भी असर पड़ेगा जबकि बीजेपी आरोप लगा रही है कि जब सरकार ये दावा करती है कि राज्य सरकार की आर्थिक स्थिति अच्छी है तो फिर कर्ज का रोना क्यों रो रही है। कर्ज को लेकर जारी आरोप-प्रत्यारोप के बीच सवाल ये कि आखिर उस जनता की कौन सुनेगा जो पेट्रोल-डीजल की आसमान छूती कीमत और बढ़ती महंगाई से हलाकान है।