जगदलपुर: Controversial statement of Raja Ram Toden, बस्तर में अवैध चर्चों के निर्माण को लेकर सर्व आदिवासी समाज नेता राजा राम तोड़ेंम का विवादित बयान सामने आया है। जिसमें उन्होंने कहा कि बस्तर में बन रहे अवैध चर्चों को तोड़ा जाएगा। जिसके बाद उस जगह पर बजरंग बली या बूढ़ा देव की प्रतिमा की स्थापना की जाएगी।
बता दें कि बस्तर में धर्मांतरण को लेकर एक बार फिर हिंदूवादी संगठनों और सर्व आदिवासी समाज लामबंद होता नजर आ रहा है। बुधवार को जगदलपुर के पत्रकार भवन में धर्मांतरण को लेकर हिंदूवादी संगठनों और सर्व आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने संयुक्त पत्रवार्ता की। इस दौरान उन्होंने धर्मांतरण के खिलाफ नाराजगी जाहिर करते हुए धर्मांतरण के खिलाफ अभियान चलाने की बात कही।
इसी दौरान सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष राजा राम तोड़ेंम ने विवादित बयान दिया। उन्होंने कहा बस्तर में अवैध तरीके से बनाए गए चर्चों को तोड़ा जाएगा। उन्होंने कहा अगले 3 से 4 महीने में समाज अभियान चलाएगा। राजा राम तोड़ेंम ने दावा किया कि उनके द्वारा आदिवासियों की जमीन में बनाए गए चर्चों को चिन्हित कर लिया गया है। उन्होंने कहा कि ग्राम सभा के जरिए चर्चों को हटाने का प्रस्ताव रखा जाएगा, जिसके बाद उस जगह पर बजरंग बली या बूढ़ा देव की स्थापना की जाएगी।
बता दें कि छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण का मुद्दा लगातार छाया हुआ है। धर्मांतरण को लेकर आए दिन भाजपा और कांग्रेस के नेता भी आमने सामने आते रहते हैं। वहीं अक्सर ईसाई मिशनरियों की सभा को लेकर विवाद होता रहा है, वहीं अब बात चर्चों को हटाने तक की बात पहुंच गई है, जाहिर है कि यह जंग जल्द रुकने वाली नहीं है।
सर्व आदिवासी समाज ने धर्मांतरण के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। उनके नेता राजा राम तोड़ेंम ने कहा है कि अवैध चर्चों को हटाकर उनकी जगह पर बजरंग बली या बूढ़ा देव की प्रतिमा स्थापित की जाएगी।
बस्तर में धर्मांतरण के मुद्दे पर हिंदूवादी संगठन और सर्व आदिवासी समाज दोनों ही सक्रिय हैं। ये संगठन धर्मांतरण के खिलाफ अभियान चलाने की तैयारी कर रहे हैं।
राजा राम तोड़ेंम ने बताया है कि अवैध चर्चों को हटाने के लिए ग्राम सभाओं में प्रस्ताव रखा जाएगा। इस प्रक्रिया के तहत चिन्हित चर्चों को हटाने की योजना बनाई जाएगी।
हां, बस्तर में धर्मांतरण का मुद्दा राजनीतिक भी है। भाजपा और कांग्रेस के नेता इस मुद्दे पर लगातार आमने-सामने रहते हैं।
यह मुद्दा इसलिए विवादित है क्योंकि यह आदिवासी समाज की संस्कृति, परंपरा, और धार्मिक अधिकारों से जुड़ा हुआ है। साथ ही, इसे राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी संवेदनशील माना जाता है।