Cherchera Festival: छेरछेरा.. माई कोठी के धान ला हेरहेरा, अन्नदान का महापर्व छेरछेरा आज, सीएम साय ने प्रदेशवासियों को दी बधाई

छेरछेरा.. माई कोठी के धान ला हेरहेरा, अन्नदान का महापर्व छेरछेरा आज, Chherchhera festival is today, CM Sai congratulated the people of the state

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  • Publish Date - January 13, 2025 / 06:56 AM IST,
    Updated On - January 13, 2025 / 08:02 AM IST

रायपुरः Cherchera Festival मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने प्रदेशवासियों को छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोक पर्व छेरछेरा की बधाई और शुभकामनाएं दी है। इस अवसर पर उन्होंने प्रदेशवासियों की सुख, समृद्धि और खुशहाली की कामना की है। साय ने छेरछेरा पर्व की पूर्व संध्या पर जारी अपने शुभकामना संदेश में कहा है कि छेरछेरा पर्व नई फसल के घर आने की खुशी में पौष पूर्णिमा के दिन छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं होती।

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Cherchera Festival साय ने कहा कि महादान और फसल उत्सव के रूप में मनाया जाने वाला छेरछेरा त्योहार हमारी सामाजिक समरसता, दानशीलता की और समृद्ध गौरवशाली परम्परा का संवाहक है। इसी दिन मां शाकम्भरी जयंती भी मनाई जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान शंकर ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी, इसलिए लोग धान के साथ साग-भाजी, फल का दान भी करते हैं।

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छेरछेरा पर्व क्या है?

छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध लोक पर्व है, जिसे पौष पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह पर्व नई फसल की खुशी में धूमधाम से मनाया जाता है और दान की परंपरा से जुड़ा होता है।

छेरछेरा पर्व किसे समर्पित है?

छेरछेरा पर्व मुख्य रूप से मां शाकम्भरी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। साथ ही, यह भगवान शंकर और माता अन्नपूर्णा से जुड़ी एक पौराणिक कथा से संबंधित है।

छेरछेरा पर्व में क्या विशेष होता है?

इस दिन लोग धान के साथ-साथ साग-भाजी और फल का दान करते हैं। यह पर्व सामाजिक समरसता और दानशीलता का प्रतीक है, जिसमें घरों में धन-धान्य की प्रचुरता की कामना की जाती है।

छेरछेरा पर्व क्यों मनाया जाता है?

छेरछेरा पर्व को नई फसल के घर आने की खुशी में मनाया जाता है। इसे महादान और फसल उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा है, जो समृद्ध गौरवशाली परंपराओं का प्रतीक है।

छेरछेरा पर्व से जुड़ी पौराणिक मान्यता क्या है?

पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शंकर ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी, और तभी से इस दिन पर दान देने की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है।