रायपुरः लोकतंत्र में जनता को अपना प्रतिनिधि चुनने का पूरा अधिकार है। जनता के चुने हुए प्रतिनिधि आमजन की सेवा के लिए शपथ भी लेते हैं और जनसेवा का दावा भी करते हैं, लेकिन इन दिनों सत्तापक्ष के कुछ चुनिंदा विधायकों पर कर्मचारी और आमजन से मारपीट और बुरा बर्ताव करने की शिकायत की गई है। शिकायत पर जांच भी शुरू हुई है, लेकिन एक्शन को लेकर विपक्ष सत्ता पक्ष पर हमलावर है। बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेसी विधायक दबंगई दिखाने लगे हैं। यहां सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या जनसेवक वाकई जनता की सेवा की शपथ पूरी कर रहे हैं या फिर निरंकुश हो रहे हैं।
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महासमुंद जिले के आबकारी कार्यालय में कर्मचारी से मारपीट का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। साहू समाज ने कलेक्ट्रेट का घेराव करते हुए आरोपी विधायक के खिलाफ जमकर नारेबाजी करते हुए कलेक्टर-एसपी को ज्ञापन सौंपा और घटना में शामिल आरोपियों पर FIR दर्ज करने की मांग की।
जाहिर है लीलाराम साहू नाम के क्लर्क ने संसदीय सचिव और विधायक विनोद सेवनलाल चंद्राकर पर मारपीट करने का आरोप लगाया है। पीड़ित ने विधायक चंद्राकर, बबलू हरपाल और दीपक ठाकुर के खिलाफ थाने में लिखित शिकायत की है। जिसके बाद मामलें में दो आरोपियों की गिरफ्तारी हो गई है। हालांकि पुलिस का कहना है कि शुरुआती जांच में विधायक के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है। वहीं विधायक विनोद चंद्राकर ने भी खुद पर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया है।
महासमुंद के कांग्रेस विधायक पर मारपीट का आरोप लगा है तो वहीं राजनांदगांव जिले के एक कांग्रेस विधायक पर भी दिव्यांग युवक ने दुर्व्यवहार करने का आरोप है। इससे पहले रामानुंजगंज से कांग्रेस विधायक बृहस्पत सिंह के खिलाफ भी कई बार धमकी देने के आरोप लग चुके है। बहरहाल महासमुंद और राजनांदगांव की घटना ने बीजेपी को बैठे-बिठाए सत्तारूढ़ कांग्रेस को घेरने का मुद्दा दे दिया है। पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि सत्तापक्ष के लोगों की दबंगई बढ़ती जा रही है। आए दिन ये अधिकारियों, कर्मचारियों और आम जनता के साथ मारपीट करते हैं, लेकिन इनके खिलाफ रिपोर्ट भी नहीं लिखी जा रही है।
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महासमुंद और राजनांदगांव में जो कुछ भी घटा..फिलहाल उसकी जांच की जा रही है। जांच के बाद ही परदे के पीछे का सच सामने आएगा। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि लोकतंत्र में जो जनता अपना नेता चुनती है। सत्ता में आने के बाद वही जनसेवक अगर कर्मचारियों और आमजन को अपनी धौंस दिखाएं तो क्या मैसेज जाएगा। सवाल ये कि इन मामलों में सच्चाई कितनी है और कब तक सामने आएगी और क्या जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई हो पाएगी? क्या सत्तापक्ष के विधायक होने के कारण इन्हें टारगेट किया जा रहा है।