रायपुर: when will the system be systematic हर वो शख्स जो सरकारी दफ्तर गया है वो इस समस्या को झेलता है, उससे जूझता है। सरकारें योजना बनाकर जनता को राहत मिलने का दावा करती हैं। जनता उनके अमल में आने से लाभान्वित होने की उम्मीद करती है, लेकिन इन दोनों को अक्सर निराश होना पड़ता है। लचर सरकारी सिस्टम से कोई शहर हो, गांव हो, दफ्तर हो। हर जगह सबसे बड़ी दिक्कत है शासकीय कामों की पेंडेंसी। सरकारी तंत्र की लेटतलीफी और ये भला क्यों ना हो जब सरकारी दफ्तरों की ऐसी तस्वीर दिखे।
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when will the system be systematic छत्तीसगढ़ सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को 5 डेज वर्किंग यानि हफ्ते में सिर्फ 5 दिन काम और 2 दिन अवकाश का तोहफा दिया है। इस आदेश के साथ कि दफ्तरों में अधिकारी-कर्मचारी ठीक 10 बजे दफ्तर पहुंच जाएं और शाम को पांच बजे उनकी छुट्टी हो जाएगी। आदेश सबको पता है, जाने का समय खासी पाबंदी दिखती है, लेकिन आने का टाइम, साहब हों, बाबू हों या चपरासी कोई भी तय वक्त पर दफ्तर नहीं आता। बाकायदा IBC24 ने इसका रियलिटी चैक किया।
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शहर अलग-अलग दफ्तर अलग-अलग कलेक्ट्रेट मुख्यालय हो या PWD या फिर और कोई दफ्तर सुबह 10 से साढ़े 10 बजे तक बमुश्किल से 15 कर्मचारी-अधिकारी ही नजर आए। कई कार्यालय के तो ताले तक नहीं खुले मिले जहां खुल गए थे, वहां पर कोई मिला नहीं। शुरूआती ड्यूटी ऑवर में ऐसी घोर लापरवाही। भला आमजनता के काम क्यों नां पेंडिग हों। इससे साफ है कि सरकार बदल गई, लेकिन सिस्टम नहीं बदला। सरकारें लाख कोशिश कर लें कि उनकी जनहितैषी योजनाएं लोगों को लाभान्वित करें लेकिन उन्हें जमीन पर अमलीजामा पहनाने वाला सरकारी अमला,अफसर और दफ्तर का अगर ऐसा हाल होगा तो जाहिर है। सरकार को भी सख्ती दिखानी होगी। कोई अचरज नहीं कि प्रदेशभर में भेंट-मुलाकात में आमजनता की अधूरे कामों को लेकर मुख्यमंत्री को लापरवाह अफसरशाही पर कार्रवाई की लगाम कसनी पड़ रही है। लेकिन सवाल ये है आखिर सिस्टम चलाने वाले खुद कब सिस्टेमैटिक होंगे?
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