Aap Ki Baat: आज की तारीख इतिहास में दर्ज हो गई…देश ने देखा कि नए संसद भवन में दिए गए अपने पहले संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश किया, जिसके तहत लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओँ को 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान है…ये विधेयक ऐसे वक्त लाया गया है जिस समय 2023 में 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और फिर 2024 में देश के आमचुनाव होने हैं…तो क्या ये मोदी का वो मास्टरस्ट्रोक है जिसका लाभ बीजेपी को मिलेगा, क्या विधेयक का विरोध करना विपक्षियों को भारी पड़ेगा…क्या इस विधेयक के कानून बनने की राह में कोई और रोड़ा है, इसके लिए और क्या संशोधन पहले करने होंगे…?
नई संसद का पहला दिन। पहली कार्यवाही का पहला उद्बोधन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस उद्घोषणा के साथ ही नई संसद में पेश होने वाले सरप्राइजिंग एजेंडे का अटकलबाजी पर विराम लग गया। नारी शक्ति वंदन अधिनियम नाम के इस विधेयक में महिलाओं को लोकसभा और विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने इस बिल को लोकसभा में पेश किया। लेकिन इसे पेश करते ही सदन में हंगामा हो गया। नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस सांसद अधीर रंजन ने इसे नया बिल बताने पर आपत्ति जताते हुए इसे राजीव गांधी सरकार में पेश किए गया बिल बताया। अधीर रंजन के इस दावे को पहले गृहमंत्री अमित शाह और बाद में कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने भी खारिज किया।
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फिलहाल नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल पेश हो गया है और उस पर कल से सदन में बहस शुरू होगी। सदन में बहस तो कल से शुरू होगी लेकिन सदन के बाहर महिला आरक्षण का क्रेडिट लेने को लेकर दावे-प्रतिदावदारी शुरू हो चुकी है।
इस साल मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, लिहाजा आधी आबादी के वोट पर अपनी दावेदारी जताने के लिए क्रेडिट लेने की ये होड़ मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी देखी गई।
नेताओं के बीच चल रही ये बयानबाजी ये बताती है कि वो आज खुद को महिला हितैषी साबित करने का कोई मौका नहीं चूकना चाहते। लेकिन इतिहास गवाह है कि इन सियासी दलों के निहित सियासी स्वार्थ के चलते ही महिलाएं पिछले 27 सालों से देश और राज्य की सर्वोच्च पंचायत में अपनी मौजूदगी को असरदार बनाने की राह तक रही है। देश की महिलाओं ने इन्हीं सियासी दलों को महिला आरक्षण के खिलाफ कैसी-कैसी दलीलें देतें और हरकत करते देखा है।
बहरहाल बदले सियासी हालात में आज जबकि सभी दल अपनी सियासी मजबूरी के चलते विधेयक को पारित करने के लिए राजी हो गए हैं, ये विधेयक आधी आबादी को उनका वाजिब अधिकार दिलाने में मील का पत्थर साबित होगा।
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