नई दिल्ली । यूजीसी ने काम के प्रेशर के चलते पीएचडी नहीं कर पाने वाले पेशेवरों को बड़ी राहत दी है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने कई अहम बदलाव किए है। जिसके चलते पीएचडी पूरी करने की प्रक्रिया पहले से सरल हो गई है। पीएचडी प्रोग्राम में छह माह का कोर्स वर्क रेगुलर और थीसिस समेत अन्य प्रक्रिया पार्ट टाइम मोड में होगा। इसके अलावा यदि पीएचडी की नेट और जेआरएफ से भरी जाने वाली 60 फीसदी सीटें खाली रहती हैं तो 40 फीसदी सीट (विश्वविद्यालय या एनटीए की संयुक्त दाखिला प्रवेश परीक्षा से भरी जाने वाली ) में जोड़ने पर भी विचार चल रहा है।
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13 जून को आयोजित यूजीसी काउंसिल बैठक में संशोधित यूजीसी पीएचडी रेगुलेशन-2022 को मंजूरी मिल गई है। नए सत्र में सीएसआईआर, आईसीएमआर, आईसीएआर आदि में इन्हीं नियमों के तहत पीएचडी में दाखिले होंगे। पीएचडी सीटों का ब्योरा संबंधित संस्थानों को अपन आधकारिक वेबसाइट पर अपलोड करना होगा। पीएचडी में प्रवेश के लिए उम्मीदवारों को 70 अंक लिखित और 30 अंक साक्षात्कार के लिए रहेंगे। इस पूरे प्रोग्राम में 12 क्रेडिट और अधिक से अधिक 16 क्रेडिट होने अनिवार्य रहेंगे।
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पहले पीएचडी वाइना ऑफलाइन मोड पर होता था। लेकिन अब देशकाल और परिस्थिति के अनुसार वाइवा ऑनलाइन भी होगा। नए रेगुलेशन में पीएचडी वाइवा ऑनलाइन पर प्रमुखता से लागू करने को लिखा गया है। इसका मकसद छात्र और विश्वविद्यालय के समय और आर्थिक बचत करना है। इसमें पहले ऑनलाइन वाइवा देना होगा। यदि छात्र को किसी प्रकार की दिक्कत हो तो वाइवा ऑफलाइन दिया जा सकता है।
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पीएचडी छह साल में पूरी करनी होगी। कोई भी संस्थान दो साल से अधिक अतिरिक्त समय नहीं देगा। वहीं, महिला उम्मीदवारों और दिव्यांगजनों (40 फीसदी से अधिक) को छह साल के अलावा दो साल अतिरिक्त समय देने का प्रावधान किया गया है।
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नए नियम के अनुसार अब दो कॉलेज मिलकर अब डिग्री प्रोग्राम की पढ़ाई करवा सकते हैं। इसके लिए दोनों संस्थानों को समझौता करना होगा। इसमें कमेटी तय करेगी कि रिसर्च एरिया और सुपरवाइजर (गाइड) और को-सुपरवाइजर(दो गाइड) मिलकर कैसे पीएचडी करवाएंगे। इसमें कोई भी सुपरवाइजर तय नियमों के तहत ही पीएचडी स्कॉलर्स रख सकेगा।