नयी दिल्ली, 12 दिसंबर (भाषा) भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) वार्ता को एक दूसरे की संवेदनशीलताओं को समझते हुए व्यावसायिक रूप से सार्थक सौदे तक पहुंचाने के लिए राजनीतिक दिशा की भी आवश्यकता है। एक आधिकारिक बयान में यह जानकारी दी गई।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और यूरोपीय आयोग के प्रतिनिधिमंडल के राजदूतों के बीच बातचीत के दौरान इस समझौते पर चर्चा हुई।
गोयल ने कहा कि दोनों पक्षों का लक्ष्य एक संतुलित, महत्वाकांक्षी, व्यापक तथा पारस्परिक रूप से लाभकारी एफटीए है।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने कहा, ‘‘ नौ दौर की गहन बातचीत के बाद एफटीए वार्ता को एक दूसरे की संवेदनशीलता को समझते हुए वाणिज्यिक रूप से सार्थक समझौते पर पहुंचाने के लिए राजनीतिक दिशा की भी आवश्यकता है।’’
मंत्री ने कहा कि किसी भी स्थिरता संबंधी चर्चा में सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारी (सीबीडीआर) के सिद्धांत को ध्यान में रखा जाना चाहिए और ऐसे उपायों को लागू करने में प्रगति के विभिन्न मार्गों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
ये टिप्पणियां इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत ने कुछ क्षेत्रों पर यूरोपीय संघ के कार्बन कर और वनों की कटाई संबंधी कानून पर अपनी चिंताएं जाहिर की हैं।
उन्होंने कहा कि अगले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था के सात से आठ प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ने की उम्मीद है, जिससे यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। इसके बाद तीव्र वृद्धि से भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को 2047 तक 35 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाने में मदद मिलेगी।
दोनों पक्षों ने भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद के तहत भी चर्चा की। अमेरिका के अलावा भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसके साथ यूरोपीय संघ का ऐसा तंत्र है।
वित्त वर्ष 2023-24 में यूरोपीय संघ के साथ भारत का द्विपक्षीय वस्तु व्यापार 137.41 अरब डॉलर था, जिससे यह वस्तुओं के लिए भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।
इसके अलावा, 2023 में भारत तथा यूरोपीय संघ के बीच सेवाओं में द्विपक्षीय व्यापार 51.45 अरब अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है।
यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौते से भारत को मूल्य शृंखलाओं को सुरक्षित रखते हुए वस्तुओं तथा सेवाओं के अपने निर्यात का विस्तार करने और उसमें विविधता लाने में मदद मिलेगी।
इसमें कहा गया है, ‘‘ भारत वैश्विक व्यापार में अपनी बाजार हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए प्रमुख विश्व अर्थव्यवस्थाओं के साथ संतुलित समझौते करने की कोशिश कर रहा है।’’
भाषा निहारिका मनीषा
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